चेन्नई में 14 जनवरी को तुग़लक मैगज़ीन के 50 वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक भव्य समारोह में रजनीकान्त प्रमुख अतिथि के तौर पर पधारे थे। उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा, “1971 में सेलेम में पेरियार ने एक रैली निकाली थी, जिसमें उन्होने न केवल भगवान श्री रामचन्द्र और माता सीता के मूर्तियों के वस्त्र उतारे, अपितु उन्हें चप्पलों की माला भी पहनाई, परंतु किसी भी अहम अखबार ने उसे प्रकाशित नहीं किया।”
लेकीन लगता है कि इस विवाद के जड़ काफी गहरे हैं और द हिन्दू के उस समय की रिपोर्ट में यह लिखा गया है कि, “झांकी में भगवान मुरुगा के जन्म की अश्लील तस्वीरें, ऋषियों की तपस्या और मोहिनी अवतार, भगवान राम की 10 फुट लंबी प्रतिमा एक वाहन पर रखी गई थी और दर्जनों लोग इसे चप्पलों से पीटते रहे थे।”
यही नहीं उस सभा के दौरान एक resolution भी पास हुआ था जिसमें हिन्दू विरोध के बारे में स्पष्ट लिखा था। स्वराज्य की एक रिपोर्ट के अनुसार उस कार्यक्रम के दौरान इससे भी भयानक प्लानिंग की गयी थी और कई बिन्दुओं के आधार पर भारत में और फूट डालने की कोशिश थी।
बिन्दु कुछ इस प्रकार थे:
- भारतीय दंड संहिता खंड को स्क्रैप करें जो किसी व्यक्ति को दूसरों की धार्मिक भावना को आहत करने के लिए दंडित करता है
- भगवान (मंदिरों) और धर्मों (जुलूस) की सुरक्षा नहीं
- ईश्वर, धर्म, जाति, भाषा और राष्ट्र के प्रति कोई लगाव नहीं होना चाहिए
- सुप्रीम कोर्ट हटाओ
- Parpanars (ब्राह्मणों के लिए द्रविड़ पार्टियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द) को ब्राह्मण नहीं कहा जाना चाहिए (तर्क: वे वर्ण व्यवस्था का समर्थन करता है।)
- तमिलनाडु के लोगों को ब्राह्मणों के स्वामित्व वाले समाचार पत्रों का बहिष्कार करना चाहिए
- हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं है
- हम हिंदू नहीं हैं। आने वाली जनगणना (1980) में, हमें (तमिलनाडु के लोगों) कहना चाहिए कि हम हिंदू नहीं हैं
- जाति हटाने का मतलब है कि हमे Parpans (ब्राह्मण) को ताना मारना चाहिए।
अब बता दें कि पेरियार वही व्यक्ति थे, जिसने दक्षिण भारत में dravidian politics विषैला बीज बोया था। ईवी रामास्वामी नायकर, जिन्हें पेरियार के नाम से भी जाना जाता है, Aryan Invasion Theory जैसे बेतुके सिद्धान्त के कट्टर समर्थक थे और कट्टर ब्राह्मण विरोधी भी थे। उनके झूठ के पुलिंदों में एक कहानी यह भी शामिल थी कि वे एक बार काशी गए थे तीर्थ यात्रा पर, जहां उन्हे सिर्फ इसलिए धर्मशाला में जगह नहीं मिली क्योंकि वे उच्च जाति के नहीं थे। परंतु यह कथा न केवल हास्यास्पद है, अपितु सफ़ेद झूठ भी, क्योंकि नाइकर समुदाय सदियों से उच्च जाति के रूप में जानी जाती है, और जिसे अंग्रेजों ने भी स्वीकारा था। ऐसे में ये सोचना भी एकदम illogical है कि पेरियार जैसे व्यक्ति के साथ काशी में जाति के आधार पर भेदभाव किया गया होगा।
वह चाहते थे कि सरकारें यह कहते हुए एक कानून पारित करें कि केवल अंतर-जातीय विवाह को कानूनी मान्यता दी जाएगी।
पेरियार भले ही नास्तिक थे, परंतु उनका मानना था कि तमिल नाडु पर केवल द्राविड़ समुदाय के लोगों का शासन होना चाहिए। इससे ज़्यादा हास्यास्पद बात क्या हो सकती है कि जिस द्रविड़ सभ्यता की आड़ में वे अपने अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा देते थे, वो स्वयं हिन्दू संस्कृति का प्रचार प्रसार करती थी, और उनके सबसे प्रभावशाली राजा चोला या पाण्ड्या साम्राज्य से संबंध रखते थे, जो महादेव के सबसे निष्ठावान भक्तों में से एक माने जाते थे।
पूरा द्रविड़ आंदोलन एक समुदाय और एक धर्म के खिलाफ नफरत पर आधारित है। शुरू में, यह कट्टरपंथी भारत के विभाजन और दक्षिण के राज्यों के लिए अलग राज्य का दर्जा देने के लिए के लिए पर्याप्त था। पेरियाराइट्स अभी भी बहुत हिंसक और कट्टरपंथी लोग हैं, जिन्होंने रजनीकांत को जगह देने और द्रविड़ राजनीति के लगातार मुखर होने के लिए तुगलक के संपादक एस गुरुमूर्ति के घर पर हमला किया था।