दिल्ली में चुनावी हार के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव होंगे। अगले साल होने वाले चुनाव भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहने वाले हैं। बिहार में भी इसी वर्ष चुनाव होने वाले हैं जहां पर भाजपा JDU के नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली है और बिहार में भाजपा की राह आसान रहने वाली है, लेकिन पश्चिम बंगाल के लिए भाजपा को पहले से ही कमर कसने की जरूरत है।
भाजपा पिछले कुछ समय से पश्चिम बंगाल पर कुछ ज़्यादा ही फोकस कर रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने बड़े ही प्रभावी तरीके से राज्य में प्रचार किया। अमित शाह और पीएम मोदी ने बंगाल में कई रैलियाँ की, जिसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में भाजपा की लोकसभा सीटों का आंकड़ा 2 से सीधा 18 पर पहुंच गया। वहीं ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को वर्ष 2014 में 34 सीटों के मुक़ाबले पिछले वर्ष सिर्फ 22 सीटें ही मिली थीं।
दिल्ली में हुए चुनावों में भाजपा का वोट शेयर वर्ष 2015 में 32 प्रतिशत के मुक़ाबले इस वर्ष 38 प्रतिशत तक पहुँच गया। हालांकि, ये वोट शेयर पार्टी के लिए सीटों में नहीं बदल सका। इसका सबसे बड़ा कारण रहा दिल्ली में भाजपा का कमजोर नेतृत्व। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष के रूप में लोगों ने मनोज तिवारी को सिरे से नकार दिया।
कमजोर नेतृत्व के चलते भाजपा ने दिल्ली में पीएम मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की रणनीति के तहत ही काम किया, लेकिन केंद्र के मुद्दों पर ये चुनाव पार्टी नहीं जीत पाई। यह दर्शाता है कि दिल्ली में भाजपा केंद्रीय नेतृत्व पर ज़रूरत से ज़्यादा आश्रित थी।
इससे यह भी सीख मिलती है कि जब तक राज्य में पार्टी की इकाइयों को मजबूत नहीं किया जाता है, तब तक पार्टी को बड़ी सफलता हासिल नहीं होने वाली है। पार्टी हर बार पीएम मोदी की लोकप्रियता के सहारे चुनाव नहीं जीत सकती।
पार्टी को चाहिए कि राज्य स्तर पर ही ऐसे नेता को तैयार किया जाए जो राज्य के बड़े मुद्दे उठाने में सक्षम हो, और उन मुद्दों पर ममता सरकार को घेर सके। उस नेता की यह ज़िम्मेदारी होगी कि पार्टी विधासभा चुनाव से पहले राज्य में अपनी मजबूत छाप छोड़ सके।
समस्या यह है कि दिल्ली की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी भाजपा के पास कोई बड़ा नेता या मजबूत नेतृत्व नहीं है। लोकसभा चुनावो में भाजपा ने जो शानदार प्रदर्शन किया था, वो प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह के कठोर परिश्रम के कारण हुआ था।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के पास हिमन्त बिस्वा सरमा जैसे कोई मजबूत नेता नहीं है जिसने अपने दम पर पूरे नॉर्थ ईस्ट को भगवा में रंग दिया है। इसीलिए, ऐसी स्थिति में भाजपा में पार्टी के अध्यक्ष की बूमिका बढ़ जाती है। हाल फिलहाल बंगाल में भाजपा के प्रमुख दिलीप घोष हैं, जो किसी भी सूरत में राज्य में भाजपा को जिताने में समर्थ नहीं हैं।
दिलीप घोष एक बेहद विवादित नेता हैं, और ऐसे में इस बात के आसार बेहद कम ही हैं कि वे ममता बनर्जी के हिन्दू-विरोध, पाखंड, नफरत की राजनीति को एक्सपोज कर इसका कोई राजनीतिक लाभ उठा पाएँ।
हाल ही में एक विवादित बयान देते हुए उन्होंने कहा था कि सीएए का विरोध कर रहे दंगाइयों को गोली मार देना चाहिए। उन्होंने कहा था “उत्तर प्रदेश के जैसे ही पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को गोली मार देंगे। क्या ये उनके पिता की संपत्ति है? वो लोग (प्रदर्शनकारी) टैक्स देने वालों के पैसों से बनी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान कैसे पहुंचा सकते हैं? उत्तर प्रदेश, असम और कर्नाटक सरकार ने देश विरोधी तत्वों पर गोली चलाकर बिल्कुल सही किया”।
इतना ही नहीं, पिछले वर्ष अगस्त में भी उन्होंने एक बेहद विवादित बयान में कहा था “अगर भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला होता है तो तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और पुलिस कर्मियों को पीट दीजिए। डरने की जरूरत नहीं । कोई भी दिक्कत होगी तो हम हैं ना, सब संभाल लेंगे। अगर पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम को जेल भेजा जा सकता है, तो तृणमूल कांग्रेस के ये नेता तो हमारे लिए मच्छर, कीड़े-मकोड़े की तरह हैं।’ घोष के बयान के बाद राज्य में राजनीतिक माहौल गर्मा गया था।
पश्चिम बंगाल को ममता बनर्जी के राज में जारी राजनीतिक हत्याओं से छुटकारा चाहिए। ऐसे में हिंसा करने की बातें करके भाजपा को कोई फायदा नहीं पहुंच सकता। भाजपा बंगाल में जारी हिन्दू विरोधी हिंसा का शुरू से ही विरोध करती आई है। यहाँ तक कि राजनीति से प्रेरित हत्याओं की संख्या के मामले में राज्य देश में टॉप पोजीशन हासिल कर चुका है। ऐसे में वोटर्स भी अब ममता राज से छुटकारा पाना चाहते हैं, और भाजपा को चुनाव जिताना चाहते हैं। लेकिन क्या दिलीप घोष जैसे विवादित नेता के रहते ऐसा हो सकेगा? उनके विवादित बयानों की वजह से भाजपा के प्रचार और मुहिम को एक बड़ा झटका लग सकता है।
दिल्ली से भाजपा को सबसे बड़ी सीख यही मिलती है कि भाजपा को बंगाल में जमीनी स्तर पर बड़े नेता को तैयार करना होगा, और दिलीप घोष को किनारे करना होगा। अगर भाजपा ऐसे करने में नाकाम होती है, तो ये भाजपा के लिए बंगाल में मनोज तिवारी साबित हो सकते हैं।