मणिपुर शिक्षा बोर्ड की 12वीं की कक्षा में दो ऐसे सवाल पूछे गए थे जिसको लेकर कांग्रेस इन दिनों खूब हो हल्ला मचाई हुई है। सवाल थे- ”नेहरू की गलतियों पर विश्लेषण कीजिए।” ‘भाजपा के चुनाव चिन्ह पर विश्लेषण कीजिए।’ इस सवाल को लेकर कांग्रेस का कहना है कि भाजपा युवाओं के मन में किसी एक पार्टी के खिलाफ नफरत भरना चाहती है, किसी खास राजनीतिक विचारधारा को युवाओं में भरना चाहती है।
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हालांकि भाजपा ने इन प्रश्नों से खुद को अलग कर लिया है, भाजपा के प्रवक्ता चोंगथम बिजॉय का कहना है कि इससे भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है, संबंधित अधिकारियों ने पेपर तैयार किए हैं और उन्हीं से पूछा जाना चाहिए।
उधर कांउसिल ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन के चेयरमैन एल महेंद्र सिंह ने कहा है कि इस मुद्दे को किसी दल से जोड़कर न देखा जाए। यह प्रश्न राजनीति विज्ञान के ‘भारत में दलीय व्यवस्था’ नामक चैप्टर के तहत तैयार किया गया था। इसी तरह एक और अधिकारी ने कहा कि हमनें अतीत में भाकपा और अन्य दलों से संबंधित प्रश्नों को भी परीक्षा में शामिल किया था। यह चर्चा करने का विषय है क्योंकि ये छात्र राजनीति विज्ञान के हैं।
बता दें कि ये सवाल राजनीतिक विज्ञान की परीक्षा में पूछे गए थे। अब बात करते हैं कि राजनीति विज्ञान की, क्या राजनीति विज्ञान में हम अपने अतीत की चर्चा नहीं कर सकते? क्या हम अपने राजनेताओं की सफलताओं और असफलताओं की समीक्षा नहीं कर सकते? वास्तव में जब राजनीति विज्ञान की बात होती है तो सिर्फ राजनीति, राजनेता और उनके इतिहास-वर्तमान की बात होती है। ऐसा हम नहीं जेएनयू के तमाम बुद्धिजीवी छात्र और प्रोफेसर भी मानते हैं।
जेएनयू के इंटलेक्चुअल्स कहते हैं कि हम राजनीति, शासन और राजनेताओं पर इसलिए चर्चा करते हैं क्योंकि यह हमारे विषय से जुड़ा मसला है। लेकिन इनका झूठा प्रपंच उस वक्त धराशाई हो जाता है जब हम नेहरू की गलत नीतियों पर खुलकर चर्चा करने की बात करते हैं। जब इंदिरा के जमाने में लगी इमरजेंसी की चर्चा करते हैं तब यही कांग्रेसी और वामपंथी अपने मुंह पर फेविकोल गिरा लेते हैं। जब राजीव गांधी सरकार की गलतियों पर बात करते हैं तब इन्हें बुरा लग जाता है। आखिर कैसी पढ़ाई है जेएनयू की कि जब हम दूसरे पक्ष की बात करते हैं तो इनके राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा बदल जाती है।
सच कहें तो जब नेहरू की सफलताओं पर चर्चा की जाती है तो यही कांग्रेसी और वामपंथी एकजुट हो जाते हैं और जब उनकी असफलताओं पर चर्चा होती है तो गिड़गिड़ाने लगते हैं कि हमारे अराध्य देव पर सवाल न करो। इससे कई इतिहासकारों की किताब रद्दी में चली जाएगी, रॉयल्टी मिलना बंद हो जाएगा।
वास्तव में मणिपुर राज्य बोर्ड परीक्षा की 12वीं में जो सवाल पूछा गया था वह किसी दल या पार्टी का नहीं था वह सिर्फ उस विषय का था जिसे छात्र पढ़ रहे हैं। इस पर छात्रों को खुलकर चर्चा करनी चाहिए क्योंकि जब हम सफलताओं की बात कर सकते हैं तो उनकी असफलताओं पर क्यों नहीं। नेहरू-गांधी, शास्त्री और पटेल जैसे नेताओं पर खुलकर चर्चा करना हमारे शिक्षा प्रणाली की खूबसूरती को दिखाता है। इनके सफलताओं और असफलताओं पर हमारी युवा पीढ़ी को भी जानने और समीक्षा करने का अधिकार है।