दिल्ली विधानसभा चुनावों को अब बस एक हफ्ते रह गए हैं और मुख्य मुक़ाबला आम आदमी पार्टी और BJP के बीच ही दिखाई दे रहा है। अगर जनता के मूड को देखें तो एक महीने पहले AAP को स्पष्ट जीत मिलती दिखाई दे रही थी लेकिन शाहीन बाग के प्रदर्शन ने कुछ विधानसभा सीटों पर आम आदमी के खिलाफ माहौल बनाया है। इन दोनों के बीच कांग्रेस कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा लगता है मानो कांग्रेस ने पहले ही हथियार डाल दिए हैं। परंतु अगर कांग्रेस का दिल्ली में रिकॉर्ड देखें तो यह पता चलेगा कि दिल्ली में कांग्रेस आज भी एक विशेष वर्ग में अपना जनाधार रखती है। इसके अलावा अगर पिछले 6 वर्षों के समीकरण को देखें तो इस वर्ष के विधानसभा चुनावों में कहीं न कहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक ही वोट बैंक पर आश्रित हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि AAP और BJP के बीच अगर कांग्रेस ने जरा सा भी ज़ोर लगा दिया तो आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत लाना नामुमकिन हो जाएगा।
कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से पहले 1998 से 2008 तक दिल्ली में राज किया है और शीला दीक्षित को अभी भी सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्रियों में गिना जाता है। कांग्रेस को वोट करने वाले अधिकतर वोटर्स आज AAP के पाले में खड़े हैं। लेकिन अगर कांग्रेस ने जरा सा ज़ोर लगाया तो वह कांग्रेस पर भरोसा करने से नहीं हिचकिचाएँगे क्योंकि केजरीवाल की साख गिरी है और केजरीवाल पर पैसे दे कर टिकट बांटने के आरोप भी लगे हैं जिससे जनता के बीच एक नकारात्मक माहौल बन चुका है। जरूरत है तो बस कांग्रेस को इन मुद्दों को जनता के बीच पहुंचाने की।
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध मारी थी और इसका परिणाम यह हुआ था कि वह दिल्ली में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।
सबसे महत्वपूर्ण मुक़ाबला दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों पर ,देखने को मिल सकता है जहां पर AAP और कांग्रेस एक ही वोट बैंक के लिए लड़ती नजर आ रहीं हैं। बीते चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि जो दल इन सीट को अपने पक्ष में करने में सफल रहा, वही सत्ता पर काबिज हुआ। इनमें अंबेडकर नगर, त्रिलोकपुरी, करोल बाग, पटेल नगर, सीमापुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुर माजरा, कादीपुर, गोपालपुर, बयाना, देवली और कोंडली सीट शामिल है। वर्ष 2008 तक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का इन पर कब्जा रहा। अब सभी सीटें आम आदमी पार्टी के कब्जे में हैं।
इसलिए कांग्रेस जनता के बीच पहुंच कर अपने वोट बैंक को बढ़ाती है तो इसका सीधा असर आम आदमी पार्टी पर होगा और इससे आम आदमी पार्टी को मिलने वाले वोट शेयर में भारी गिरावट आ सकती। इससे AAP की सीटें भी कम होंगी।
भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो पार्टी ने 2013 में 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी और 33.07 फीसदी वोट मिला था। जबकि 2015 के चुनाव में पार्टी सिर्फ 3 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी लेकिन वोट शेयर उसे 32.1 फीसदी रहा था जिससे यह पता चलता है कि BJP को वोट करने वालों ने BJP का साथ नहीं छोड़ा था। वर्ष 2015 से तो अभी तक कई चीजों में बदलाव आ चुका है और देश को पीएम मोदी के नेतृत्व में एक नई गति मिल चुकी है। इतने वर्षों में अब तक हुए विकास कार्य दिल्ली की जनता भी देख रही है। यह लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला था जब BJP ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। यानि इससे यह स्पष्ट होता है कि BJP का वोट शेयर कम तो नहीं होगा बल्कि बढ़ेगा।
अब कांग्रेस को दिल्ली में विधानसभा सीट जीतने के लिए अपने वोट शेयर बढ़ाने होंगे और वह तभी बढ़ेगा जब देश की यह सबसे पुरानी पार्टी केजरीवाल के वोट शेयर को वापस अपने पक्ष में करेगी। दिल्ली में जिस तरह का माहौल बनता जा रहा है उससे कांग्रेस के पास अपने वोट बैंक को वापस लेने का अच्छा मौका है।
इसकी एक बड़ी वजह है कि नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी के खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और मुसलमान वोटर जो केजरीवाल की नीतियों से परेशान है और BJP को वोट नहीं देना चाहते हैं, वे कांग्रेस पर ही दोबारा भरोसा करेंगे और उसे वोट कर सकते हैं। केजरीवाल को भी यही वर्ग समर्थन करता है इस वजह से कांग्रेस को वोट मिले पर आम आदमी पार्टी को भरी नुकसान होता दिख रहा है। इस वोट बैंक को साधने के लिए ही कांग्रेस ने राजद के साथ गठबंधन किया है। उसे उम्मीद है कि बिहारी वोट भी उसके पक्ष में आ सकता है जोकि दिल्ली में तकरीबन 4-5 सीटों पर अहम हैं।
इन सभी समीकरणों को देखें तो कांग्रेस कुछ नहीं करते हुए भी बहुत कुछ कर सकती है। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के वोट बैंक को वापस लेने से वे सरकार बनाने की रेस से बाहर हो जाएंगे और उस स्थिति में BJP के पास सरकार बनाने का सुनहरा मौका होगा। कांग्रेस जीत तो नहीं सकती लेकिन BJP को सत्ता में आने के लिए मदद जरूर कर सकती है।