अमेरिका में कोरोना का तांडव जारी है। इस महामारी को रोकने की कोशिश न तो वहां की सरकार कर रही न लोग उसके पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। अकेले अमेरिका में कोरोना के पॉज़िटिव मामलों की संख्या 7 लाख 64 हजार पर कर चुकी है और इस महामारी से 40 हजार लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
अमेरिका किसी अन्य देश से अधिक मौतों का गवाह बन रहा है, और हाल ही में एक दिन में मरने वालों की संख्या 9/11 की कुल संख्या को भी पार कर गई। कोरोना वायरस की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां ग्राफ थमने का नाम नहीं ले रहा है और इसका कारण बस वहाँ के लोगों की मानसिकता है। उन्हें लगता है कि उनका देश महान है और वे फ़र्स्ट वर्ल्ड के देश हैं इस वजह से वे लॉकडाउन किए बीना भी बच जाएंगे लेकिन ठीक इसके विपरित हो रहा है और यही घमंड इनपर भारी पड़ रहा है। मौत का ग्राफ बढ़ने पर भी राष्ट्रपति ट्रम्प ने अर्थव्यवस्था को ढील देने की अनुमती दी थी।
15 pages of obituaries in The Boston Globe today. pic.twitter.com/DdcWiy2hvx
— Nancy Palmer (@npalmerrothman) April 19, 2020
जब कोरोना ने अमेरिका में अपना पाँव पसारना शुरू किया था तब अमेरिका में इसे खूब नज़रअंदाज़ किया गया था। व्हाइट हाउस ने भी किसी की नहीं सुनी और कोरोना वायरस को हल्के में लेते रहे। पिछले महीने ही ट्रम्प ने कोरोना वायरस की तुलना एक सामान्य फ्लू से की थी। एक तरफ जहां भारत में जनता कर्फ़्यू लगा था तो वहीं अमेरिका में इस वायरस को खत्म होने के लिए गर्मी का इंतज़ार किया जा रहा था। राष्ट्रपति ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया था। सिर्फ ट्रम्प ही नहीं अमेरिका की पूरी व्यवस्था ही इस वायरस को कमतर आंकती रही। मार्च के मध्य ही ट्रम्प अमेरिका की अर्थव्यवस्था को खोलना चाहते थे।
परंतु,अमेरिका का विपक्ष यानि डेमोक्रेट्स क्या कर रहे थे? उन्होंने ने भी इस महामारी की भयावहता को नहीं आँका। जब पूरा विश्व सोशल डिस्टेन्सिंग को अपना रहा था तब ये अपने यह देश अपने यहां भीड़ इकट्ठा कर रही थी। दूसरी तरह पूर्व उपराष्ट्रपति जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप के चीन के प्रति Xenophobia को एक्सपोज करने में लगे रहे।
किसी नेता ने अमेरिका में वुहान वायरस के खिलाफ बोलने की या लोगों को उससे बचने की हुंकार नहीं भरी, लेकिन राष्ट्रपति की निंदा करते रहे। अमेरिका के राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय भी देखने को नहीं मिला। लॉकडाउन में दी गयी ढील इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। राष्ट्रपति और गवर्नर जो भी कर रहे हैं वो वहीं मानसिकता सामान्य अमेरिकी का भी है।
अमेरिका में अभियक्ति की आजादी पर अधिक ध्यान दिया जाता है जिससे अक्सर ही प्रोटेस्ट और धरना की खबर आती रहती है। कोरोना के समय भी ये जारी है। मिनेसोटा, मिशिगन और वर्जीनिया जैसे राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इन सभी को डोनाल्ड ट्रम्प का समर्थन भी मिला, जिन्होंने ट्वीट में लिखा था LIBERATE MINNESOTA”, “LIBERATE MICHIGAN” और फिर “LIBERATE VIRGINIA”।
LIBERATE VIRGINIA, and save your great 2nd Amendment. It is under siege!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) April 17, 2020
अमेरिका के समाज को देखें तो यह एक विशेषाधिकार प्राप्त और कुछ हद तक अनुभवहीन समाज है जिसने कभी उस तरह का संकट नहीं देखा है जैसा कि अब देख रहा है। स्वतंत्रता के बाद से,इस देश ने केवल चेचक को ही महामारी के रूप में देखा था. तब जून 1865 से दिसंबर 1867 तक जब 49,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
उसके बाद जो भी संकट आए हैं वो सभी सैन्य संकट थे जैसे- द्वितीय विश्व युद्ध, वियतनाम, कोरिया, ईरान, इराक, सीरिया, लीबिया और अफगानिस्तान। ये सभी अमेरिका के बार्डर से बहुत दूर थे।
अमेरिका में टोर्नाडो या बवंडर भी आता रहता है लेकिन अमेरिका ने कोरोना जैसे भयंकर संक्रमण जैसी आपदा के लिए कोई तैयारी नहीं की है। यही कारण है कि बंदूक नियंत्रण और पुरातन बंदूक कानूनों की रक्षा जैसे मुद्दे संयुक्त राज्य में एक भावनात्मक मुद्दा है। अमेरिका जैसा समाज एक राई को भी पहाड़ बना देता है।
छोटे मुद्दों को बड़ा बनाने की प्रवृत्ति के कारण कोरोनोवायरस जैसे वास्तविक खतरे को किसी ने महत्व ही नहीं दिया।
अब, अमेरिका एक गंभीर संकट के बीच पूरी गंभीर संकट में खड़ा है जहां से लौटना मुश्किल है।