कोरोना महामारी के समय में प्रवासी मजदूरों के साथ धोका करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब अन्य राज्य में रहने वाले छात्रों के साथ भी धोखा किया है। नीतीश कुमार ने कोटा में फंसे छात्रों को वापस बुलाने से इंकार कर दिया है। बता दें कि राजस्थान के कोटा में बिहार के करीब 11 हजार छात्र-छात्राएं फंसे हैं। अब उन्होंने घर वापसी के लिए धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
लॉकडाउन के कारण कोटा में अटके करीब 18 हजार कोचिंग छात्र अपने-अपने घर लौट चुके हैं। लॉकडाउन की घोषणा के बाद मेडिकल (नीट) और इंजीनियरिंग प्रवेश (जेईई) परीक्षा की कोचिंग ले रहे करीब 40 हजार छात्र कोटा में अटक गए थे। अब तक वहां से पांच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 18 हजार विद्यार्थी अपने-अपने घर जा चुके हैं। उनमें उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के करीब 12 हजार 500, मध्यप्रदेश के 2800, गुजरात के 350 और दादरा-नगर हवेली के 50 बच्चे शामिल हैं।
इसी प्रकार कोटा संभाग के दूसरे जिलों के 2200 बच्चों को भी सकुशल उनके घर पहुंचाया गया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 150 बसों का इंतजाम कर अपने छात्र-छात्राओं को वापस बुलाया है। लेकिन बिहार के CM नीतीश कुमार को इन छात्रों से कोई मतलब नहीं है। जिस तरह से उन्होंने दिल्ली तथा अन्य राज्यों में फसे प्रवासी मजदूरों को भटकने के लिए छोड़ दिया था उसी तरह अब उन्होंने इन युवाओं को भी छोड़ किया है।
17 लाख अप्रवासी बिहारी जहाँ फँसे है वहाँ की सरकारें उन्हें भेजना चाहती है लेकिन बिहार सरकार उन्हें लाना नहीं चाहती।क्या राज्य ने उन्हें मारने के लिए छोड़ दिया है?क्या यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा नहीं है?
नीतीश जी के MP VIP पास लेकर दिल्ली से बिहार पहुँच सकते है लेकिन मज़दूर नहीं
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) April 24, 2020
अपनी रसूख़ का इस्तेमाल कर विशेष VIP पास प्राप्त कर कोटा से बच्चों को लाने के जुर्म में नीतीश सरकार ने ऐतिहासिक फ़ैसला लेते हुए विधायक को शाबाशी और उनके ग़रीब ड्राइवर को सस्पेंड कर न्याय के साथ विकास का नायाब नमूना पेश किया है। ग़रीब के पेट पर लात मारने वाला यह है सुशासन राज। pic.twitter.com/iV4YiWMUng
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) April 23, 2020
बिहार के छात्रों को इस तरह से छोड़ देने पर बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) आक्रामक रुख अपनाए हुए है। तेजस्वी यादव हर दिन मुख्य मंत्री से एक नहीं कई सवाल करते दिख रहे हैं। सोमवार को उन्होंने ट्वीट कर पूछा कि बिहार सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैया देखिए, एक तरफ़ 13 अप्रैल को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कोटा के ज़िलाधिकारी की शिकायत करती है और दूसरी तरफ़ स्वयं कोटा के लिए पास जारी करती है। वहीं जनता दल यूनाइटेड के मंत्री जैसे अशोक चौधरी ने इस पास के जारी होने के मामले के खुलासे एक दिन पहले ही कहा था कि अगर आप कोटा से छात्रों को लाएंगे तो भुवनेश्वर या बेंगलुरु या अन्य राज्यों से क्यों नहीं। और अगर छात्रों को लाया जायेगा तो तो मज़दूरों को क्यों नहीं।
लेकिन नीतीश कुमार ने फंसे हुए प्रवासी मजदूरों और छात्रों को केवल सहायता देने से इनकार ही नहीं किया, बल्कि योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं से भी ऐसा करने के लिए सवाल किया है। उन्होंने यह भी कहा कि कोटा में पढ़ने वाले छात्र अमीर परिवारों से हैं इसलिए उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता नहीं है। सीएम नीतीश कुमार ने तंज़ कसते हुए कहा–
‘कोटा में पढ़ने वाले छात्र संपन्न परिवार से आते हैं। अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों के साथ रहते हैं, फिर उन्हें क्या दिक्कत है। जो गरीब अपने परिवार से दूर बिहार के बाहर हैं फिर तो उन्हें भी बुलाना चाहिए। लॉकडाउन के बीच किसी को बुलाना नाइंसाफी है। इसी तरह मार्च के अंत में भी मजदूरों को दिल्ली से रवाना कर लॉकडाउन को तोड़ा गया था।‘
अब ऐसे हृदयहीन नेता को पूरी दुनिया में ढूँढना नामुमकिन है जो अपने नागरिकों के प्रति इस प्रकार का उदासीनता रखता हो।
कोरोना वायरस के प्रकोप के बावजूद सभी मुख्यमंत्रियों ने बीमारी से लड़ने के लिए अपनी पूरी क्षमता लगा दी है। कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई नेताओं के चरित्र और नेतृत्व क्षमता को भी सामने ला दिया है। अभी तक ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ कोरोना खिलाफ लड़ाई में सबसे अच्छे नेताओं में से कुछ साबित हुए हैं और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने लगभग डेढ़ दशक के अनुभव के साथ सबसे खराब मुख्यमंत्री के तौर पर गिने जा रहे हैं।