कोरोना के दौरान पूरी दुनिया इस बात को देख चुकी है कि कैसे चीन ने WHO का अपने फायदे के लिए भरपूर इस्तेमाल किया है। चीन पर कोरोना को लेकर झूठ बोलने के आरोप लगे तो WHO हमेशा उसके बचाव के लिए आगे आया, और वह चीन की कही बातों को ही दोहराने में लगा रहा। सिर्फ WHO को ही नहीं, चीन ने पिछले कई सालों में योजनाबद्ध तरीके से UN को हाईजैक करने के प्रयास किए हैं जिनमें वह काफी हद तक सफल भी रहा है।
चीन के नागरिक अभी UN के 15 विशेष संगठनों में से 4 संगठनों की अध्यक्षता करते हैं और वे चीन के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं। चीन अभी UN के कुल बजट का 12 प्रतिशत हिस्सा उसे प्रदान करता है और इस प्रकार वह अमेरिका के बाद UN में सबसे बड़ा योगदान करता है, लेकिन इस मोटी रकम के बदले चीन UN के माध्यम से अपने निजी हितों को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ता है।
चीन ने पिछले कई वर्षों में कैसे अपने निजी हितों को UN के माध्यम से बढ़ावा दिया है, पहले इस पर नज़र डाल लेते हैं। वर्ष 2007 से लेकर अब तक चीन के राजदूत ही United Nations Department of Economic and Social Affairs यानि DESA के under-secretary जनरल का पद संभालते आए हैं। अब चीन कैसे DESA के माध्यम से अपने महत्वाकांक्षी BRI प्रोजेक्ट को बढ़ावा देता आया है, यह किसी ने छुपा नहीं है। DESA ने BRI को UN के Sustainable Development Goals में शामिल कर सभी देशों को इसका हिस्सा बनने के लिए उत्साहित किया और वो भी चीन के कहने पर।
आज हम देख चुके हैं कि कैसे दक्षिण एशिया से लेकर, मध्य एशिया और अफ्रीका तक, सभी देश BRI के कारण अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आए दिन कमजोर होता देख रहे हैं। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि वर्ष 2017 में यूएन के मौजूदा चीफ एंटोनियो गुटेरेस ने BRI को बढ़िया बताते हुए कहा था कि इसकी मदद से यूएन को अपने Sustainable Development Goals हासिल करने में आसानी होगी।
वह UN में चीन का प्रभुत्व ही है, जिसके बल पर चीन अपने यहाँ होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दों को दबाता आया है। DESA में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए चीन महत्वपूर्ण सम्मेलनों से वर्ल्ड ऊईगर कांग्रेस के सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखाने में सफल रहा है, ताकि उसकी पोल ना खुल जाये। इसके अलावा चीन दुनिया के अन्य सत्तावादी शासकों देश जैसे सऊदी अरब, रूस के साथ मिलकर ह्यूमन राइट्स के मुद्दे पर अपनी जवाबदेही से किनारा करता आया है।
अब यह भी देख लेते हैं कि कैसे चीन अपने प्रभाव और पैसे का इस्तेमाल कर UN में चुनाव जीतता आया है। पिछले वर्ष यानि 2019 में UN के Food and Agriculture Organization यानि (FAO) के चुनाव हुए थे, जिसमें केमरून देश का एक प्रत्याशी चीन के प्रत्याशी के खिलाफ खड़ा हुआ था। फिर क्या था, चीन ने कैमरून सरकार का लगभग 80 मिलियन डॉलर का कर्ज़ माफ किया और बदले में कैमरून ने अपने प्रत्याशी के नाम को withdraw कर लिया, और चीन की ही जीत हुई।
हम देख चुके हैं कि कैसे चीन ने टेड्रोस को WHO के अध्यक्ष पद तक पहुंचाया और वह आज बदलने में चीन के तोते की तरह काम कर रहा है। WHO चीन के कहने पर ताइवान को भी सदस्यता देने से इंकार करता आया है।
UN में चीन के सैकड़ों डिप्लोमैट दिन रात चीन के एजेंडे को ही बढ़ावा देते आए हैं। चीन का मूल मंत्र है-पैसे के बल पर सामने वाले को खरीदो और उससे अपने मतलब के काम करवाओ। सोचिए अगर कोरोना के मामले पर WHO और UN ने पक्षपाती रवैया न दिखाते हुए चीन को समय रहते फटकारा होता तो आज विश्व को इस महामारी का सामना न करना पड़ता। UN को चीन ने अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है और इसका जितना विरोध हो, उतना अच्छा है।