छोटी-छोटी बातों पर केंद्र से भिड़ने के लिए हमेशा तैयार रहने वाली ममता बनर्जी अपने ही राज्य में मांस के बाज़ारों पर प्रतिबंध लगाने में विफल साबित हो रही हैं। इतना ही नहीं, वे अपने राज्य में विशेष धर्म के लोगों को धार्मिक क्रियाओं के लिए इकट्ठा होने से रोकने में भी नाकाम रही हैं। यही कारण है कि अब अमित शाह के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने चिट्ठी लिखकर पश्चिम बंगाल की सरकार को चेताया है कि इस तरह की ढील लॉकडाउन के समय बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी और बंगाल सरकार को तुरंत सख्ती दिखाने के लिए कदम उठाने होंगे।
बताया जा रहा है कि राज्य में लॉकडाउन के नियमों का जमकर उल्लंघन हो रहा है। कहीं मछली बाजार सजा है तो कहीं मिठाई की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाकर लोग भीड़ लगाए खड़े हैं। जिस पुलिस पर नियमों को सख्ती से लागू कराने की जिम्मेदारी उसी पर धार्मिक आयोजनों के लिए छूट देने का आरोप है। बंगाल में अभी कोरोना के लगभग 120 मामले सामने आ चुके हैं और अगर ऐसे ही राज्य में ढील दिखाई जाती रही, तो यह संख्या तेजी से बढ़ेगी।
गृह मंत्रालय ने भी अपने पत्र में यह भी कहा है कि राज्यों का इन बाज़ारों पर कोई नियंत्रण नहीं है क्या? पत्र में आगे लिखा है “कोलकाता में नारकेल डांगा, टोपसिया, राजबाजार, गार्डेनरीच, मेतियाबुर्ज, इकबालपुर और मुनिकटला जैसी जगहों पर सब्जी, मछली और मांस बाजारों में कोई भी नियंत्रण नहीं है। इन जगहों पर लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रखकर बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। ऐसे में परेशान करने वाली बात यह है कि नारकेल डांगा जैसी जगहों पर कोविड-19 के कथित तौर पर अधिक मामले नजर आये हैं”।
बीते शुक्रवार को मुस्लिम धर्म के लोग बड़ी संख्या में मस्जिदों में नमाज़ पढ़ते नज़र आए थे, और यह भी चिंता का विषय है। तबलिगी जमात कांड का बोझ पूरा देश सह रहा है, ऐसे में देश में और तबलीगी जमात को जन्म नहीं दिया जा सकता, लेकिन लगता है कि बंगाल सरकार तो इसी मूड में हैं।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद शहर में शुक्रवार की नमाज़ के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए, और नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए भीड़ भी इकट्ठा की। इसके अलावा वे अफसरों की बातों तक को अनसुना कर रहे थे। अब सरकार अगर इन लोगों पर इतनी ढील दिखाएगी तो अगले शुक्रवार को भी यही लोग मस्जिदों में इकट्ठा होंगे और नियमों और क़ानूनों को ठेंगा दिखाएंगे।
गृह मंत्रालय की ओर से लिखे पत्र में धार्मिक कार्यक्रमों का ही ज़िक्र था। पत्र में लिखा था “यह भी सामने आया है कि पुलिस धार्मिक कार्यक्रमों की इजाजत देती रही है। इसके अलावा मुफ्त राशन संस्थागत आपूर्ति प्रणाली के माध्यम से नहीं बांटे जा रहे, बल्कि नेताओं की तरफ से बांटे जा रहे। हो सकता है कि इसकी वजह से कोविड-19 संक्रमण बढ़ा हो”। इसके बाद पत्र में इन सभी लोगों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने को कहा गया है जो लॉकडाउन के नियमों को ताक पर रखकर घर से बाहर निकलते हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार शुरू से ही कोरोना को लेकर काफी निराशाजनक रवैया दिखा रही है। कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को PPE के पीले रंग से आपत्ति होती है, तो कभी उन्हें टेस्टिंग किट्स को लेकर परेशानी होती है, लेकिन अपने राज्य में कोरोना के रोकथाम को लेकर वे कोरोना के मौत के आंकड़ों को कम करके दिखाने में व्यस्त रहती हैं।
जी हाँ। बंगाल से अभी सिर्फ लगभग 120 मामले ही सामने आए हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि यह आंकड़ा इतना कम तब है, जब यह बात सिद्ध हो चुकी है कि तब्लीगी जमात वाले भी बंगाल गए हुए हैं। इसके पीछे स्वप्न दासगुप्ता ने भी सवाल उठाए हैं, और वे पूछ रहे हैं कि आखिर सरकार के वेब पोर्टल पर मामले अपडेट क्यों नहीं हो रहे हैं। विवादों के घेरे में एक कमिटी है जो यह तय करती है कि किसी व्यक्ति की मौत वुहान वायरस से हुई या फिर अन्य किसी बीमारी से, अब शक है कि यही कमिटी कोई गड़बड़ कर रही है।
बंगाल सरकार ने जल्द ही अगर कोई सख्त कदम नहीं उठाया, तो राज्य का दूसरा महाराष्ट्र बनना तय है जहां पर कोरोना के मामले रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रहे हैं। बंगाल सरकार को राजनीति से ऊपर उठकर जल्द से जल्द सख्त कदम उठाने होंगे और इस लॉकडाउन को सफल करना होगा, इसी में हम सब की भलाई है।