जब से लॉकडाउन हुआ है देश थोड़ा सा थम सा गया है। रोड पर रोज़ चलने वाले लाखों वाहन रुके हुए हैं और सिर्फ आवश्यक वस्तुओं की ही आवाजही हो रही है। देश कोरोना वायरस से लड़ने और कम से कम क्षति होने और संक्रमण फैलाव रोकने की कोशिश कर रहा जिससे कम लोगों को जान गंवानी पड़े। लेकिन कुछ ऐसे भी राज्य हैं जो मुनाफा कमाने के लिए लोगों की जान दांव पर लगा रहे हैं। केरल और छत्तीसगढ़ में जानबूझकर शराब से होने वाले revenue के लिए शराब की दुकाने खोलने का फैसला किया। हालांकि, केरल सरकार के फैसले पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। लेकिन The Wire की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में शराब की बिक्री को नियंत्रित करने वाली Chhattisgarh State Marketing Corporation Limited, ने एक आदेश जारी कर राज्य में अपने स्टोर फिर से खोलने का फैसला किया है, जो 25 मार्च को बंद कर दिया गया था। इन दुकानों को खोलने का कारण यह दिया जा रहा है कि मीडिया रिपोर्ट्स में शराब के बिना लोगों की मृत्यु हो रही है इसीलिए मेडिकल कारणों से शराब की बिक्री आवश्यक है।
परंतु, इसका असली कारण लोगों का हित नहीं बल्कि शराब पर मिलने वाले tax revenues या कर राजस्व है। हालांकि, ऐसे कारणों को छिपाना कांग्रेस और वामपंथियों की आदत होती है। केरल और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में शराब की बिक्री के लिए क्रमश: Kerala State Beverages (Manufacturing & Marketing) Corporation Ltd (BEVCO) और Chhattisgarh State Marketing Corporation Limited के पास सारी ताकत है।
पिछले वर्ष, शराब की बिक्री से छत्तीसगढ़ सरकार का राजस्व 5,000 करोड़ रुपये से अधिक था, या राज्य के स्वयं के tax revenues का लगभग 25 प्रतिशत (22,000 करोड़ रुपये) था। वहीं केरल के लिए, शराब की खपत से लगभग 12,000 करोड़ रुपये का टैक्स मिलता है, यानि कुल का 20 प्रतिशत। किसी भी राज्य के लिए, tax revenues के दो सबसे बड़े स्रोत पेट्रोलियम (पेट्रोल और डीजल) और शराब उनके नियंत्रण में होते हैं।
गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन, तिरुवनंतपुरम के एसोसिएट प्रोफेसर जोस सेबेस्टियन का कहना हैं कि, “शराब से ज्यादातर राज्यों में सरकार को राजस्व का 20 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। केरल में, यह अब 22-23 प्रतिशत है, पिछली तिमाही की तुलना में 15 प्रतिशत से धीरे–धीरे ऊपर बढ़ रहा है।“
ऐसे में जब केंद्र सरकार ने National Disaster Management Act, 2005 के तहत 21 दिन का लॉकडाउन लगाया हुआ है तो राज्य सरकारों को किसी भी वहाँ के आवाजही पर रोक लगाना पड़ा है। इस कारण से पेट्रोलियम से होने वाला revenue लगभग समाप्त हो गया है। लेकिन राज्य सरकारें शराब को मरीजों के लिए आवश्यक वस्तु की लिस्ट में रख कर उसकी बिक्री कर सकती है। इसलिए, 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद, केरल सरकार ने आवश्यक वस्तु के लिस्ट में शराब को जोड़ दिया और बिक्री जारी रखी। लेकिन जब यह देखा गया कि शराब की दुकानों पर भीड़ के कारण सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे कोरोना फैलने का खतरा दोगुना हो जाता है। इसके बाद सरकार ने 26 मार्च को इन दुकानों का शटर बंद कर दिया।
हालांकि, कुछ दिनों पहले, सरकार ने फिर से मरीजों के लिए ‘आवश्यक वस्तु’ के रूप में बिक्री फिर से शुरू की। लेकिन केरल उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया, और दो सप्ताह के लिए शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।
वहीं छत्तीसगढ़ में, कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने पर शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का वादा किया था। कई ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं ने इसी वजह से पार्टी को वोट भी दिया था, क्योंकि गरीब परिवारों में, पुरुष सदस्य के शराब पीने से परिवार की आय का आधे से अधिक हिस्सा चला जाता है। हालाँकि, सत्ता में आने के बाद, भूपेश बघेल सरकार ने अपने वादे को पूरा नहीं किया, और प्रतिबंध के बजाय, 5 रुपये प्रति बोतल का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया। इस बढ़े हुए शुल्क के कारण, गरीब परिवार बचत करने के बजाय शराब पर अधिक भुगतान कर रहे हैं।
शराब की बिक्री छत्तीसगढ़ सरकार के किसी कुबेर के खजाने से कम नहीं है क्योंकि, इस राज्य में कुल आबादी के 35 प्रतिशत लोग शराब के उपभोक्ता है जोकि राष्ट्रीय औसत 15 प्रतिशत से कहीं अधिक है। यही कारण है कि कांग्रेस सरकार सोशल डिस्टेन्सिंग के उल्लंघन और कोरोना वायरस रोग के संक्रमण बढ्ने की कीमत पर भी दुकानें खोलने के लिए तैयार है। यह फैसला लोगों पर कितना भारी पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा क्योंकि जिस तेज़ी से कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है उससे पूरा विश्व परेशान है।
कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि यह एक चतुर निर्णय है, क्योंकि सरकार लॉकडाउन के बावजूद कमाई करती रहेगी; और इस तथ्य को देखते हुए आवश्यक है क्योंकि पेट्रोलियम बिक्री से राजस्व में गिरावट आई है। लेकिन सच यह है कि सरकार ने कुछ हजार करोड़ रुपये के लिए लाखों लोगों की जान जोखिम में डाल दी है। और कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारों के लिए, प्राथमिकता हमेशा से ही taxes over life रही है।