दुनियाभर में कोरोनावायरस नामक भीषण तबाही आए अब चार महीने होने को हैं। अब तक दुनिया में लगभग 55 लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और लगभग साढ़े तीन लाख लोग Covid-19 से मर चुके हैं। चीन ने शुरू में कोरोना संबन्धित किसी भी जानकारी को बाहर नहीं आने दिया, जिसके कारण दुनिया में यह बीमारी बहुत ही तेजी फैल गयी। पिछले तीन महीनों से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के कारण आधी दुनिया को लॉकडाउन में रहना पड़ रहा है, जिसके कारण कई देशों के सामने बेहद ही बड़ी आर्थिक चुनौती खड़ी हो गयी है।
International Monetary Fund यानि IMF पहले ही यह अनुमान लगा चुका है कि इस वर्ष दुनिया की अर्थव्यवस्था 3 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है, यानि कुल मिलाकर वर्ष 2020 में दुनिया को 2.6 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा। वर्ष 2019 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 87 ट्रिलियन डॉलर की थी, जिसमें 3 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान था। हालांकि, अब उसने 3 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिल सकती है।
इस प्रकार देखा जाये तो दुनिया को चीन की वजह से 5.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है, जो कि चीन की GDP का लगभग 40 प्रतिशत बनता है। अब देखते हैं कि चीन ने भारत का कितना नुकसान किया है। भारत में अब तक कोरोनावायरस के लगभग डेढ़ लाख मामले सामने आ चुके हैं और 4000 लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान गवां चुके हैं। भारत में कोरोनावायरस से रिकवरी दर बाकी देशों की तुलना में बहुत बेहतर है। हालांकि, लॉकडाउन की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। वर्ष 2020 में भारत की अर्थव्यवस्था को 6% की दर से विकास करना था। हालांकि, कोरोनावायरस के बाद नए आंकड़ों के अनुसार अब भारत की विकास दर सिर्फ 1.8% रहने के अनुमान हैं। लेकिन जिस प्रकार भारत में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं, उसके बाद अब आरबीआई ने कहा है कि भारत की आर्थिक विकास दर नेगेटिव भी हो सकती है। एक बार के लिए अगर हम मान भी लें कि इस साल भारत की अर्थव्यवस्था में कोई वृद्धि नहीं होगी, तब भी भारत को 180 बिलियन डॉलर नुकसान तो होगा ही। इस प्रकार देखा जाए तो भारत को चीन से 180 बिलियन डॉलर का मुआवजा मांगने की जरूरत है जो कि भारत के राज्य पश्चिम बंगाल की कुल जीडीपी के बराबर बैठता है।
भारत में उत्पादन गतिविधि अप्रैल के महीने में 27.4 प्रतिशत तक गिर गयी, जो कि मार्च के महीने में 51.8 प्रतिशत पर थी। (बता दें कि 50 प्रतिशत से ज़्यादा का मतलब होता है कि उत्पादन गतिविधियां बढ़ी हैं, जबकि 50 प्रतिशत से कम का मतलब होता है उत्पादन गतिविधियां कम हुई हैं)। इसका मतलब है कि कोरोना वायरस के कारण भारत के manufacturing सेक्टर को अप्रैल में सबसे बड़ा झटका लगा।
इसी के साथ अप्रैल महीने में भारत के सर्विस सेक्टर को भी बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। लॉकडाउन के कारण आईएचएस मार्किट सर्विसेज परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स अप्रैल में गिरकर 5.4 पर आ गया, जो मार्च में 49.3 पर था। 14 साल पहले इस सर्वे को शुरू किए जाने के बाद से इस तरह की असाधारण गिरावट पहली बार दिखी है। इकरा की प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट अदिति नायर के मुताबिक, “हमें लग रहा है कि शौकिया खर्च से जुड़ा सर्विसेज सेक्टर का हिस्सा उसी तरह की गिरावट का शिकार हुआ है, जैसा अप्रैल के लिए पीएमआई सर्विसेज ने संकेत दिया है। हालांकि, बैंक, फाइनैंशल इंटरमीडियरीज और सरकारी सेवाओं जैसे सेवा क्षेत्र के दूसरे हिस्सों की गतिविधि में इस तरह की भीषण गिरावट नहीं आई होगी”।
कृषि सेक्टर के उत्पादन पर कोरोना का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, और देश में इस साल रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन हुआ। हालांकि, लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियां ठप होने से खपत में कमी जरूर आई है।
भारत के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के कारण दुनिया के और भी हिस्सों में कोरोना जमकर फैला और ऐसे ही अर्थव्यवस्थाओं को तबाह किया। चीन ने इन देशों को 3 से 4 साल पीछे पहुंचा दिया है। इन सब देशों को चीन से मुआवज़े की मांग करनी चाहिए। इसी प्रकार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को 180 बिलियन डॉलर का बिल भेजने की आवश्यकता है।