वुहान वायरस पर जहां एक ओर अमेरिका, ताइवान, जापान और भारत जैसे देश चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाल चुके हैं, तो वहीं कुछ लोग या गुट ऐसे भी हैं, जिनके लिए आज भी चीन के तलवे चाटना परम धर्म है। पर ज़रूरी नहीं है कि जो काम ये गुट स्वयं कर रहा है, वो काम इनकी जनता भी करे, और नेपाल के बाद अब यूरोप ने भी सिद्ध कर दिया, कि सरकारों या EU द्वारा चाटुकारिता का यूरोप की जनता से कोई लेना देना नहीं है।
यूरोपीय संघ जैसे भी विचार रखे, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी जनता भी वैसे ही विचार रखे। अधिकांश देशों की जनता चीन के विरुद्ध आग बबूला है, और वे चीन की हेकड़ी का किसी भी स्थिति में विरोध करने को तैयार हैं। चाहे हुवावे के 5 जी टावर ध्वस्त करना हो, या फिर किसी यूरोपीय देश में रह रहे चीनी प्रवासी, यूरोपीय जनता ने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है।
यूरोप की जनता में वुहान वायरस, विशेषकर इसके जनक चीन को लेकर कितना आक्रोश है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि ब्लूमबर्ग जैसा वामपंथी पोर्टल भी इस बात को स्वीकार रहा है कि चीन के प्रपंच यूरोप में काम नहीं आ रहे।
इतना ही नहीं, यूरोपीय संघ भी इस मुद्दे पर काफी हद तक दो गुटों में बंटी हुई है। जहां फ़्रांस जैसे देश चीन को उसके कर्मों का दण्ड देना चाहते हैं, तो वहीं जर्मनी जैसे देश अभी भी चीन की चाटुकारिता करना चाहते हैं। इसी को कहते हैं चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए।
परन्तु यह विरोधाभास क्यों है? बता दें कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने निर्विरोध रूप से चीन के समर्थन में अपना पक्ष रखा। यूरोपियन यूनियन ने चीन के साथ अपनी वफादारी दिखाते हुए दुनिया के सभी देशों के साथ भयंकर धोखा किया है।
EU की इस करतूत के बाद चीन में खुशियाँ मनाई जा रही है और वहाँ की मीडिया इसे ऑस्ट्रेलिया के मुंह पर तमाचा कह रही है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख छापते हुए कहा है कि ऑस्ट्रेलिया के “चेहरे पर थप्पड़” पड़ा है। यही नहीं ग्लोबल टाइम्स ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि यूरोपीय संघ के प्रस्ताव को चीन ने प्रायोजित किया था।
यह विडम्बना ही है कि कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित होने के बाद भी यूरोपीय संघ चीन का साथ दे रहा है और उसके द्वारा फैलाये गए इस वायरस के कारणों को छिपाने में चीन की मदद कर रहा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस तरह से चीन का साथ देकर EU ने सभी देशों की पीठ में छुरा घोंपा है। यही नहीं अब WHO से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद यूरोपीय संघ ने WHO का भरपूर समर्थन करने का वादा किया है।
परन्तु यह पहला ऐसा मामला नहीं था। इससे पहले चीन ने लगभग एक महीने पहले यूरोपीय संघ पर दबाव डाला ताकि वो वुहान वायरस पर आधारित रिपोर्ट में संशोधन करे और उचित शब्दो का इस्तेमाल करे। चीन की धमकी और दबाव के आगे झुकना यूरोप की कमजोरी को दर्शाता है। इससे ये भी स्पष्ट है ये संघ जब कठोर कदम उठाने का वक्त आता है तो डर के मारे अपने कदम पींछे खींच लेता है।
टाइम्स में लिखे एक लेख में यूरोपीय संघ के एक राजनयिक Lutz Güllner ने कहा भी कि ‘इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद से चीन ने धमकी देना शुरू कर दिया था’। यूरोपीय संघ चीन की धमकियों के सामने डटकर खड़े होने की बजाय भीगी बिल्ली बन गया है जो बेहद शर्मनाक है।
इस रिपोर्ट में वुहान वायरस से निपटने में चीन की भूमिका पर भी प्रश्न किए गए थे, और चीन के अनुसार इस रिपोर्ट के जरिए उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की साज़िश कि गई थी। चीनी राजनयिक यूरोपीय संघ के अधिकारीयों को उस रिपोर्ट को हटाने के लिए दबाव बनाने में कामयाब रहे जिसके कारण चीन को डर था कि बीजिंग की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित हो सकती है।
लेकिन जिस तरह से यूरोपीय जनता ने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोला है, उसे देख एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि चीन चाहे जितनी भी सरकारें खरीदने का प्रयास करे, वो विश्व भर के जनमानस को ना खरीद सकता है, और ना ही दबा सकता है। यूरोपीय जनता ने स्पष्ट संदेश दिया है – अब चीन की खैर नहीं।