कोरोना काल में चीन के खिलाफ विरोध बढ़ता ही जा रहा है और उसे इसका आर्थिक खामियाजा भी उठाना पड़ रहा है। हालांकि, कोरोना के कारण चीन को अब रणनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। कोरोना के बाद अब चीन को ऑस्ट्रेलिया के Darwin पोर्ट, श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट और इजरायल के हाइफ़ा पोर्ट से हाथ धोना पड़ सकता है। इसके बाद ना सिर्फ चीन को कूटनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है बल्कि उसके महत्वकांक्षी सिल्क रोड प्रोजेक्ट पर भी पानी फिर सकता है।
कोरोना के बाद चीन का विरोध करने में ऑस्ट्रेलिया सबसे आगे रहा है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन खुलकर चीन की भर्त्सना कर चुके हैं और चीन की जांच करने की मांग कर चुके हैं। इसके लिए ऑस्ट्रेलिया को चीन के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आयात होने वाले barley पर अत्यधिक इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी है। हालांकि, इसने भी ऑस्ट्रेलिया के हौसलों को पस्त नहीं किया है। अब इसके बाद इन दोनों देशों के रिश्ते इतने बिगड़ गए हैं कि ऑस्ट्रेलिया चीन से Darwin पोर्ट वापस छीन सकता है।
Darwin पोर्ट
Darwin पोर्ट की लोकेशन रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है। वर्ष 2015 में ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐतिहासिक गलती करते हुए वर्ष 2015 में Darwin पोर्ट को 99 वर्षों की लीज़ पर चीन को सौंप दिया था। इसके जरिये चीन सीधे तौर पर पेसिफिक देशों पर नज़र रख सकता है, और साथ ही अमेरिका द्वारा दक्षिण चीन सागर में की जाने वाली गतिविधियों को भी मॉनिटर कर सकता है। Darwin को ऑस्ट्रेलिया के लिए asia का gateway भी कहा जाता है। ऐसे में वर्ष 2015 में अमेरिका को ऑस्ट्रेलिया द्वारा दरकिनार कर दिया गया था। लेकिन कोरोना के बाद जिस प्रकार चीन और ऑस्ट्रेलिया में दूरी बढ़ती दिखाई दे रही है, उससे स्पष्ट है कि अब ऑस्ट्रेलिया जल्द ही 5 साल पहले की गयी अपनी गलती को सुधार सकता है।
हाइफ़ा पोर्ट
इसी प्रकार इजरायल का हाइफ़ा पोर्ट भी जल्द ही चीन के हाथों से छिटक सकता है। चीन ने पिछले साल BRI प्रोजेक्ट के लिए इजरायल के हाइफ़ा पोर्ट को 25 साल के लिए लीज़ पर लेने का समझौता किया था। वर्ष 2021 में यह पोर्ट बनकर पूरा भी हो जाएगा , और इसके बाद चीनी कंपनी इसे ऑपरेट करेगी। हालांकि, अमेरिका इस पोर्ट को लेकर भी बेहद संवेदनशील है। इजरायल अमेरिका का एक साझेदार देश है, और ऐसे में कोरोना के बाद अगर इजरायल अपने हाइफ़ा पोर्ट को चीन को सौंपता है, तो इजरायल को अमेरिका के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने हाल ही में इजरायल की यात्रा की थी। तब पोम्पियो ने इजरायल को चीन से दूर रहने की नसीहत दी थी। अभी इजरायल किसी भी सूरत में चीन के लिए अमेरिका के साथ रिश्ते खराब नहीं करना चाहेगा। ऐसे में यह कहना कोई जल्दबाज़ी नहीं होगी कि आने वाले दिनों में इजरायल अपना हाइफ़ा पोर्ट चीन से वापस छीन सकता है।
हंबनटोटा पोर्ट
इतना ही नहीं, चीन को दक्षिण एशिया में भी जल्द ही झटका मिल सकता है। सबको पता है कैसे चीन ने अपनी debt diplomacy का इस्तेमाल करके श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर अपना कब्जा जमा लिया था।
दिसंबर 2017 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने चीन के कर्ज के जाल में फंसकर हंबनटोटा बंदरगाह और इसके आस-पास की 15000 एकड़ जमीन 99 सालों के लिए चीन को सौंप दी थी। उस वक्त श्रीलंका की सरकार ने अपने इस कदम का यह कहकर बचाव किया था कि वह बंदरगाह को बनाने के दौरान लिए गए चीनी कर्ज को चुका नहीं सकी इसलिए उसके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था। तब भारत और श्रीलंका के खराब होते रिश्तों का यह सबसे बड़ा कारण बना था।
हालांकि, पिछले साल नवंबर में श्रीलंका के नए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा ने इस पोर्ट को चीन से वापस लेने के लिए दोबारा बातचीत करने का सुझाव सामने रखा था। अब कोरोना के समय में जब श्रीलंका लगातार भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधार रहा है, तो इस बात के आसार काफी बढ़ गए हैं कि श्रीलंका भी चीन से अपने हंबनटोटा पोर्ट को वापस लेने की शर्त पर अड़ सकता है। कुल मिलाकर कोरोना पिछले एक दशक में चीन द्वारा प्राप्त किए गए सभी भू-राजनीतिक दृष्टि से अहम उपलब्धियों पर पानी फेर रहा है, और चीन को अपने तीन सबसे अहम ports से हाथ धोना पड़ सकता है।