TFI Post पर हमने इस बात पर अक्सर प्रकाश डाला है कि कैसे नेपाल का वर्तमान प्रशासन धारचूला और लिपुलेख रोड के अनावरण के बाद से ही भारतीय संप्रभुता का मज़ाक उड़ा रहा है। भले ही नेपाल का वर्तमान प्रशासन चीन की चाटुकारिता को अपना परम धर्म मानता हो, परन्तु सत्य तो यही है कि ये भारत के भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में कोई चिंताजनक विषय नहीं है।
चीन द्वारा भारत को घेरना कोई नई बात नहीं है, पर हैरान मत होइएगा यदि हिन्द महासागर में स्थित छोटे छोटे देश और भारत के पड़ोसी भारत के प्रति अधिक निष्ठावान निकले। कभी जिस मालदीव और श्रीलंका ने भारत को चीन के उकसाने पर आंखें दिखाई थी, आज वही दोनों देश एक बार फिर भारत के अच्छे मित्र बने हैं। ऐसे में यदि नेपाल आने वाले कल में एक बार फिर भारत का पक्का दोस्त बन जाए, तो चौंकिएगा मत।
जब श्रीलंका पर महिंदा राजपक्षे का शासन था, तब उन्हें चीन में एक ऐसा मित्र मिला था, जो उन्हें भारत में नहीं मिला था। भारत में मनमोहन सरकार के प्रशासन ने श्रीलंका पर कथित मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए थे, जिसके कारण श्रीलंका ने चीन का दामन थामा था। पर राजपक्षे को कहां पता था कि उनका यह दांव उन्हीं के देश पर भारी पड़ेगा।
बीजिंग ने ना सिर्फ राजपक्षे को साझेदारी के नाम पर फंसाया, अपितु उसे करोड़ों डॉलर के कर्ज़ के जाल में भी फंसाया। हालांकि, जब 2015 में मैत्रीपाल सिरिसेना ने कमान संभाली, तो मानो चीन के काले साये से श्रीलंका को मुक्ति मिल गई।
इसी भांति जब मालदीव पर तानाशाह अब्दुल्ला यामीन गयूम का शासन था, तो उसके प्रो चाइना बर्ताव के कारण चीन की दखलंदाज़ी बढ़ने लगी। पर जैसे ही अब्दुल्ला की जगह इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने ली, भारत और मालदीव के संबंध और प्रगाढ़ हो गए।
ऐसे में भारत और चीन के बीच की कूटनीतिक जंग स्वाभाविक है। चीन और भारत सांस्कृतिक रूप से भले ही काफी समान रहे हों, पर शासन के लिहाज से दोनों के दृष्टिकोण में आकाश पाताल का अंतर है। चीन का मुख्य उद्देश्य है अपने ‘ शत्रुओं’ , विशेषकर भारत को हर तरह से कुचलना, जिसके लिए बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम जैसे कुछ योजनाएं भी शामिल हैं।
परन्तु भारत ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। अपने कूटनीतिक कौशल के बल पर भारत ने चीन को बिना एक गोली चलाए मुंहतोड़ जवाब दिया है। इसीलिए मालदीव और श्रीलंका में चीनी प्रभाव के बावजूद भारत ने ना सिर्फ अपनी छवि कायम रखी है, अपितु दोनों देशों को चीन के चंगुल से बाहर निकलने के लिए प्रेरित भी किया है।
हालांकि, चीन के लिए नेपाल काफी अहम है, इसलिए वे इतनी आसानी से हार तो नहीं मानेगा। परन्तु भारत और नेपाल के रिश्ते दशकों नहीं, कई काल पुराने हैं। इसी बात का एक उदाहरण अभी हाल ही में देखने को मिला, जब नेपाल के डुमलिंग गाँव में कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ कार्यकर्ता भारतीय क्षेत्र को अपना क्षेत्र बताने के लिए अपना झंडा फहराने गए थे परंतु नतीजा कुछ और हुआ। उन कम्युनिस्टों को डुमलिंग के निवासियो ने पहले तो समझाया लेकिन वे जब नहीं माने तो गांव वालों ने उन सभी को मार पीट कर भगा दिया।
परंतु बीजिंग की बातों में आ कर नेपाल की सरकार ने इसे अपने नक्शे में दिखाया है जिससे बार्डर पर विवाद बढ़ गया है। आज भी नेपाली जनता भारत को अपने भरोसे का साथी मानती है, और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जैसे चीन के चंगुल से मालदीव और श्रीलंका को छुड़ाया गया था, वैसे ही नेपाल भी जल्द ही मुक्त होगा।