पिछले कुछ दिनों से जमीनी विवाद के कारण भारत और नेपाल के रिश्तों में खटास आ चुकी है। जिस तरह से प्रधानमंत्री ओली के नेतृत्व में नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार भारत विरोधी बयान देते हुए कदम उठा रही है उससे दोनों देशों के राजनयिक संबंध हाशिये पर आ चुके हैं। नेपाल की सरकार अब चीनी चंगुल में फंस चुकी है और शी जिंपिंग के इशारों पर नाच रही है। परंतु इसका खामियाजा नेपाल की जनता को चुकाना पड़ रहा है।
इस स्थिति में अगर कोई इस हिन्दू देश नेपाल को भारत से और दूर होने से बचा सकता है तो वह सिर्फ एक व्यक्ति हैं और वो हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।
इसके कई कारण हैं, पहला सांस्कृतिक कारण। नेपाल एक हिन्दू देश है जिसे वहाँ के कम्युनिस्टों ने सेक्युलर घोषित किया हुआ है। ये वही माओवादी हैं जिनके आंदोलनों की वजह से नेपाल में 13000 से अधिक मौते हुई थीं। जैसे ही माओवादियों ने सत्ता संभाली वैसे ही वर्ष 2007 में इस हिन्दू देश को सेक्युलर घोषित कर नेपाल से एकमात्र हिंदू राष्ट्र होने का दर्जा छिन लिया।
आज भी वहाँ की जनता उतनी ही धार्मिक है जितनी पहले थी। नेपाल में न सिर्फ ज्योतिर्लिंग है बल्कि शक्तिपीठ भी है. मंदिरों की तो गिनती ही नहीं है।
भारत के साथ इस तरह के सांस्कृतिक जुड़ाव रखने वाले नेपाल के साथ संबंध बढ़ाने के लिए अगर भारत सरकार किसी हिन्दूवादी नेता को आगे करता है तो यह वहाँ की जनता में एक नई ऊर्जा का संचार होगा। यही नहीं इससे कम्युनिस्टों के सभी प्रपंचों पर पानी भी फिर जाएगा। भारत के पास एक ही ऐसा फायरब्रांड नेता है जो नेपाल के साथ तुरंत अपने संबंध सुधार सकता है। और वह है योगी आदित्यनाथ।
योगी इसलिए क्योंकि वह नेपाल में अन्य नेताओं की तुलना में अत्यधिक लोकप्रिय है वह भी नेता के तौर पर नहीं बल्कि गोरखनाथ मठ के मठाधीश के रूप में।
यही नहीं योगी आदित्यनाथ का नेपाल और वहां के शाही परिवार के साथ गहरा संबंध हैं। दरअसल, गोरखनाथ मठ दो मंदिरों का संचालन करता है। एक मंदिर नेपाल में है और दूसरा मंदिर गोरखपुर में। गोरखनाथ मठ में गुरु गोरक्षनाथ की समाधि भी है। नेपाल के राजा बिरेंद्र के लिए यह मठ परंपरा का प्रतीक था और कई वर्षों पहले उन्होंने नेपाल में मकर संक्रांति का त्यौहार शुरू किया था। गोरखनाथ मठ के पूर्व महंत अवैद्यनाथ जिन्हें योगी आदित्यनाथ का गुरु माना जाता है, उन्हें नेपाल के राजा बिरेंद्र भी अपना गुरु मानते थे।
ध्यान देने वाली बात यह है कि 2014 से ही इस गोरखनाथ मठ के मठाधीश योगी आदित्यनाथ हैं। इस कारण से वह नेपाल की जनता में काफी लोकप्रिय हैं। इसका एक और कारण मंदिर द्वारा चलाई जाने वाली तीन दर्जन से अधिक शिक्षण-स्वास्थ्य संस्था भी है जिसके योगी अध्यक्ष या सचिव हैं।
जब से नेपाल सेक्युलर राष्ट्र घोषित हुआ है तब से ही योगी नेपाल सरकार के खिलाफ रहे हैं। 2015 में जब इस फैसले को संविधान में लागू किया जा रहा था तब उन्होंने इस फैसले को वापस लेने की मांग की थी। आज भी वह नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति और उसके सेक्युलर होने पर दुख जताते हैं और नेपाल की एकता के लिए राजशाही की वकालत करते हैं।
यह एक तथ्य है कि जब भी योगी आस-पास होते हैं, तो कम्युनिस्ट अपनी दुम दबाकर कोने में छिप जाते हैं। योगी आदित्यनाथ ने सनातन धर्म को गर्व से धारण कर अपना राजनीतिक करियर बनाया है।
यही नहीं वर्ष 2017 से ही उत्तर प्रदेश पर शासन करके दिखा दिया है कि एक योगी प्रशासन व्यवस्था को किस तरह शून्य से शिखर तक ले जाने की क्षमता रखता है।
यही नेपाल को फिर से एहसास कराने की आवश्यकता है कि जब भारत जैसे देश के सबसे बड़े राज्य को एक योगी संभालकर शिखर पर पहुंचा सकता है तो फिर नेपाल वापस से हिन्दू देश बनकर क्यों नहीं विकास कर सकता? जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने कम्युनिस्ट, मिशनरी और इस्लामिस्ट के प्रकोप से उत्तर प्रदेश को बचाया है, वैसे ही नेपाल को भी चीन के कम्युनिस्टों और माओवादियों से बचाने की आवश्यकता है।
Asia Pacific summit-2018 के दौरान जब योगी नेपाल जाने वाले थे तब नेपाल की सरकार में खलबली मच गयी थी। उन्हें लग रहा रहा कि योगी कहीं नेपाल में धार्मिक स्तर पर ध्रुवीकरण न कर दें। इस बात से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किस तरह नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार योगी से डरती है। अब इसी डर का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है।
योगी का नेपाल आना जाना लगा रहता है और वे भारत और नेपाल के संबद्धों को बेहतर समझते हैं। द्वितीय भारत-नेपाल द्विपक्षीय वार्ता को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था-
दोनों देशों के लिए यह बेहतरीन पहल है। भारत–नेपाल प्राचीन काल से दो शरीर हैं, लेकिन हमारी सांस्कृतिक विरासत एक–दूसरे को एकात्म में जोड़ती है। दोनों देशों का एक–दूसरे से हित जुड़ा है। भारतीय सेना में नेपाल के लोग एक सामान्य सिपाही से लेकर उच्च पदों पर हैं। ये भारत का विश्वास है। इसी विश्वास पर साझी विरासत टिकी है।“
अगर मोदी सरकार नेपाल मामले में योगी आदित्यनाथ को आगे करेगी तो नेपाल की जनता को यह एहसास होगा कि कम्युनिस्टों से बिना अधिक प्रगति की जा सकती है क्योंकि तब चीन जैसे किसी विदेशी ताकत के हाथों की कठपुतली नहीं बनना होगा। अगर मोदी सरकार ने योगी अदित्यानाथ को नेपाल मामला सुलझाने का मौका दिया तो वह इसे चुटकी बजाकर सुलझा सकते हैं।