जब से चीन में उत्पन्न वुहान वायरस दुनिया भर में फैला है, चीन को विश्व भर में आलोचना का सामान करना पड़ रहा है। जिस ताइवान ने सर्वप्रथम चीन की भूमिका पर प्रश्न उठाया था, उसे स्वप्न में भी आभास नहीं हुआ होगा कि उसके समर्थन में अमेरिका से लेकर जापान, भारत सहित विश्व के बड़े से बड़ा देश सामने आएगा।
ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व में अमेरिका चीन को विश्व से अलग-थलग करने पर जुटा हुआ है। विश्व के कई अहम देश अमेरिका के इस अभियान में उसका भरपूर साथ भी दे रहे हैं। पर कुछ देश ऐसे भी हैं, जो अभी भी चीन की जी हुजूरी करने को तैयार हैं, और ये केवल तुर्की और पाकिस्तान तक ही सीमित नहीं है।
इस महामारी के बावजूद चीन एक शक्तिशाली देश है, जिसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अभी भी WHO चीन के विरुद्ध कोई एक्शन लेने को तैयार नहीं हैं। चीन की अर्थव्यवस्था का कुल मूल्य 15 ट्रिलियन डॉलर है, और उसके पास 3 ट्रिलियन के विदेशी मुद्रा का रिजर्व भी है। इस कारण से उसके कई चाटुकार देश हैं जो कि चीन के एक इशारे पर दुनिया से मोर्चा लेने को भी तैयार है।
इटली और पाकिस्तान के विश्व प्रसिद्ध उदाहरण को अगर एक किनारे रख दें, तो भी ऐसे कई देश है जो चीन की जी हुजूरी करने को तैयार है। उदाहरण के लिए नेपाल को ही देख लीजिए। यहां के लोग भले ही दिल से भारत प्रेमी हो, पर सरकार और उसके चाटुकार चीन की वफादारी करने में अधिक रुचि रखते हैं।
नेपाल के अलावा हंगरी एक ऐसा देश है, जो ना केवल चीन प्रेमी है, अपितु विश्व स्वास्थ्य सभा में ताइवान के शामिल होने के प्रति पुरजोर विरोध जता रहा था। अब स्थिति यह है कि चीन और हंगरी में 5 जी और रेल प्रोजेक्ट के विकास की बाते होने लगी है। हंगरी चीन का इतना बड़ा चाटुकार है कि पिछले वर्ष हंगरी के एक विश्वविद्यालय ने ताइवान के विद्यार्थियों को ताइवान का प्रतिनिधित्व करने से रोका था।
वुहान वायरस के कारण अपने देश का नुकसान होने के बावजूद स्पेन चीन के प्रति नरम रुख अपनाया हुआ हैं। ये जानते हुए भी कि चीन के कारण उसके हज़ारों लोग मारे गए हैं और ये जानते हुए भी की उसके घटिया टेस्ट किट्स के कारण स्पेन में हालत बद से बदतर हो गए, स्पेन अभी भी चीन का आभार प्रकट रहा है।
परन्तु हद तो तब हो गई जब फिलीपींस ने चीन के प्रति अपना प्रेम जगजाहिर किया। रोड्रिगो ड्यूटर्टे ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आभार प्रकट किया और वुहान वायरस से लड़ाई में उसका बचाव भी किया। इतना ही नहीं, यूएस ने जो आवश्यक मेडिकल सप्लाई भेजी थी, उसके बारे में बात तक नहीं की।
जनाब ने हाल ही में कहा था, “मैं राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आभारी हूं, कि उन्होंने मुझसे सहायता का प्रस्ताव साझा किया। बस हमारे मांगने की देर है”।
किसी ज़माने में अमेरिका के सबसे भरोसेमंद मित्रों में से एक राजा फिलीपींस आज धुर अमेरिका विरोधी बनता दिखाई दिया है। परन्तु नेपाल की भांति यहां की स्थानीय जनता भी धुर चीन विरोधी है, और उन्हें चीन से ज़्यादा अमेरिका पर विश्वास है।
इरान और अमेरिका के बीच भी संबंध काफी खराब हैं और इटली की भांति अपने देश की दुर्गति कराने के बाद भी ईरान चीन का साथ दे रहा है। चीन का प्रभाव इस हद तक बढ़ गया है कि जब स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने चीन के डेटा और उसकी प्रतिबद्धता को एक भद्दा मज़ाक बताया, तो उसे अपना बयान वापस लेने के लिए प्रशासन के हर तबके ने बाध्य कर दिया।
इसी भांति जब वेनेजुएला की कर्ज़ की मांग को आईएमएफ ने रिजेक्ट कर दिया, तो चीन उसकी रक्षा हेतु आगे आया। ऐसे में इस धड़े के बढ़ते प्रभाव पर अन्य देशों को आंखें नहीं मूंदनी चाहिए, और उन्हें तुरंत इसका डटकर मुकाबला करना चाहिए, अन्यथा चीन को कठघरे में खड़ा करने और उससे हिसाब चुकता करने का यह अवसर भी हाथ से निकल जाएगा।