कोरोना के बाद दुनिया में कई नए संगठन बनाने की बात की जा रही है, तो वहीं पहले से ही मौजूद कुछ संगठनों को मजबूत करने का काम किया जा रहा है। उदाहरण के लिए हाल ही में UK ने जहां दुनिया के दस सबसे ताकतवर लोकतन्त्र देशों का समूह D10 बनाने का प्रस्ताव पेश किया, तो वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जी7 में भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने की बात कही। इससे एक बात तो तय है कि दुनिया में कोरोना के बाद हमें नया world ऑर्डर देखने को मिल सकता है, जिसमें भारत और अन्य लोकतान्त्रिक देशों को ज़्यादा अहम स्थान मिलेगा। हालांकि, इसी बीच कुछ देश ऐसे भी हैं जो लगातार इस विचार का विरोध कर रहे हैं। एक तरफ जहां चीन ने जी7 में भारत के शामिल होने की खबरों पर भारत के खिलाफ चेतावनी जारी कर दी, तो वहीं यूरोपीय देश जर्मनी लगातार चीन के खिलाफ नरम रुख अपना रहा है। जर्मनी और चीन का यह अघोषित गठबंधन चीन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को कमजोर कर रहा है। हालांकि, क्या कारण है कि इतना कुछ होने के बावजूद जर्मनी का चीन प्रेम कम होने का नाम नहीं ले रहा है।
दरअसल, इसका कारण इकॉनमी में छुपा है। जर्मनी और चीन को यह भली-भांति पता है कि अगर दुनिया में कोई नया world order जन्म लेता है, तो इसका व्यापार पर भी गहरा असर पड़ेगा। व्यापार करने के तौर-तरीके, नियम और शर्तें सब बदल जाएंगी, जो चीन और जर्मनी बिल्कुल नहीं चाहते। चीन और जर्मनी को मौजूदा world order और मौजूदा व्यापार नियमों से इतना फायदा हो रहा हौ कि ये दो देश वैश्विक नेट निर्यातकों की लिस्ट में टॉप पर हैं।
CIA World Factbook के वर्ष 2017 के आंकड़ों के मुताबिक चीन का trade surplus दुनिया में सबसे अधिक है। चीन हर साल 426 बिलियन डोलर्स का trade surplus अर्जित करता है। दूसरे नंबर पर 297 बिलियन के साथ जर्मनी है। स्पष्ट है कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था दोनों देशों को सबसे ज़्यादा सूट करती है। भला ये क्यों नए वर्ल्ड ऑर्डर के विचार को समर्थन देने लगे। शायद यही कारण है कि चीन के साथ-साथ जर्मनी भी लगातार गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार करने से बाज़ नहीं आ रहा है।
चीन को लेकर शुरू से ही जर्मनी का रवैया बड़ा ढीला-ढाला रहा है। जब कोरोना के बाद जी7 देशों की पहली बैठक हुई थी, तो उसमें अमेरिका संयुक्त बयान में Chinese virus शब्द शामिल करवाना चाहता था, लेकिन तब जर्मनी ने सबसे ज़्यादा बवाल बचाया था और उसका नतीजा यह निकला था कि जी7 तब कोई संयुक्त बयान जारी ही नहीं कर पाया था। इसके अलावा हाल ही में जब ट्रम्प ने जी7 समिट बुलाई थी, तो जर्मनी ने इसमें शामिल होने से साफ इंकार कर दिया था। बाद में ट्रम्प को इस समिट को रद्द करना पड़ा और बाद में उन्होंने कहा कि भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के आने के बाद ही जी7 समिट को दोबारा आयोजित कराया जाएगा।
वहीं चीन भी नहीं चाहता कि दुनिया में कोई नया वैश्विक ऑर्डर बनाया जाए, क्योंकि इससे भारत का कद बढ़ जाएगा और चीन का कद घट जाएगा। इसका एक नमूना हमें तब देखने को मिला जब भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कद बढ़ता देख चीन कर चीन ने भारत को चेतावनी दी थी कि वो अमेरिका के समर्थन में G-7 में शामिल होकर आग से खेलने का काम कर रहा है जिससे उसे काफी बड़ा नुकसान भी हो सकता है।
#Opinion: If #India hastily joins a small circle that perceives China as an imaginary enemy, China-India relations will deteriorate. This is not in India's interests. #G7 https://t.co/0nkSnKWi4E
— GT Opinion (@GtOpinion) June 5, 2020
नए वर्ल्ड ऑर्डर में protectionism को बढ़ावा मिलेगा जिसके कारण जर्मनी और चीन जैसे देशों का export business धरा का धरा रह जाएगा। यह जल्द होने वाला है, और दोनों देश यह भली-भांति जानते हैं। हालांकि, अपने आगामी भविष्य को ये देश अब शायद ही बदल पाएँ।