भारत के साथ बार्डर पर चीन के साथ विवाद ने अब मूर्त रूप ले लिया है और चीन के भारतीय सेना पर हमला कर अपने वास्तविक एजेंडे को सामने रख दिया है कि वह भारत को दबाने के लिए कितना भी कायरतापूर्ण हमला कर सकता है। परंतु भारत के वीर जवानों ने भी चीनी सेना की बखिया उधेड़ कर रख दी और चीन को यह संकेत दे दिया कि वह भारत से सीधा युद्ध तो नहीं जीत सकता है। हालांकि, चीन को यह बहुत पहले से ही पता है कि वह कितना भी कोशिश कर ले, भारत का सामना वह किसी भी युद्ध में अकेले नहीं कर सकता है। इसी कारण से चीन ने पहले पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाया और अब नेपाल को भारत का दुश्मन बनाना चाहता है।
चीन चाहता है कि भारत के दोनों पड़ोसी उसका पालतू बने रहे और साथ में भारत के खिलाफ उसके एजेंडे में साथ देने के लिए भारत के साथ युद्ध जैसी स्थ्ति उत्पन्न कर दें।
चीन को यह पता है कि वह भारत से कभी भी अकेले युद्ध नहीं जीत सकता या फिर भारत पर दबाव नहीं बना सकता है इसलिए वह पहले पाकिस्तान और अब नेपाल के साथ मिल कर भारत को तीनों सीमा पर युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न करने से सभी हथकंडे अपना रहा है जिससे वह भारत पर दबाव बना सके।
बता दें कि भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी का फायदा उठा कर पहले चीन उसे अपना पालतू बनाया था और उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ सभी मोर्चों पर कर रहा है। पाकिस्तान भारत विरोधी तो था ही, उसके बाद चीन ने पाकिस्तान में इतना निवेश करने के साथ साथ कर्ज में डूबा दिया कि पाकिस्तान चीन के इशारों पर नाचने के लिए मजबूर हो गया। उदाहरण के लिए कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 हटा था तब यह चीन ही था जो पाकिस्तान का साथ दे रहा था और इस मामले को सुरक्षा परिषद में उठाने का प्रस्ताव किया था। चीन इसी तरह से कई बार अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ जाने के लिए प्रेरित कर चुका है। यहाँ तक कि जब सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की बात आती है तो चीन पाकिस्तान की दुहाई देते हुए इसमें अड़ंगा लगा देता है। इसके अलावा जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने वाले प्रस्ताव पर भी चीन ने ही टेक्निकल होल्ड लगा दिया था। यानि एक तरफ पाकिस्तान को अपने कर्जे से वह पूरी तरह से पालतू बना कर रखना चाहता है तो वहीं, उसका इस्तेमाल भारत को पश्चिमी क्षेत्र से घेरने के लिए करता है।
अब चीन इसी स्ट्राटेजी का इस्तेमाल नेपाल के साथ भी कर रहा है। पहले तो चीन ने नेपाल में इनफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं में निवेश कर उसे अपना पालतू बनाया और अब नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिल कर भारत के खिलाफ बार्डर पर विवाद खड़ा करने के लिए उकसा रहा है। इस बार भी चीन ने ही नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर भारत के खिलाफ बार्डर विवाद को बढ़ाने का साजिश रचा था। अगर देखा जाए तो गलवान घाटी में भारत-चीन संघर्ष और साथ ही में नेपाली प्रधानमंत्री ओली की बढ़ती क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा एक ही समय में होना कोई संयोग नहीं है। IANS की रिपोर्ट के अनुसार चीन के राजदूत होउ यानकी ने ही नेपाल की सीमा को फिर से परिभाषित किए जाने के लिए कॉमरेड ओली के कदम के लिए उकसाया था। यानी नेपाल जो भारत के उत्तराखंड राज्य के हिस्सों को अपने नक्शे में दर्शा रहा है, उसके पीछे चीनी राजदूत की ही कूटनीति और दिमाग काम कर रहा है। चीन को पता है कि इससे भारत और नेपाल के बीच गतिरोध बढ़ जाएगा और इन दोनों हिन्दू देशों के रिश्तों की बलि चढ़ जाएगी।
इस तरह से चीन भारत को तीनों ओर से घेर लेगा यानि पश्चिम में पाकिस्तान उत्तर में नेपाल के साथ भी चीन और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में भी चीन। चीन यह समझता है कि तीनों ओर से हमले करने से भारत डर जाएगा और इसका फायदा उसे अपनी ताकत बढ़ाने में होगा। ऐसा पहली बार ही हो रहा है कि भारत को इस तरह से अपने तीनों फ्रंट पर युद्ध जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। परंतु चीन की ये चालबाजी अधिक दिनों तक नहीं चलने वाली है और उसके हाथों से 2 हिस्सों यानि ताइवान और हाँग-काँग निकलने के कगार पर हैं। इसके अलावा भारत इन तीनों देशों को एक साथ संभालने में पूरी तरह से सक्षम है और तीनों को उचित जवाब भी मिल रहा है।