पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों को लेकर अभी सफूरा जरगर का विवाद ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक घटना ने दिल्ली पुलिस को झकझोर दिया। दंगों की जांच में लगे दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के एक अफसर की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु ही गई।
इंस्पेक्टर विशाल खानविलकर का मृत शरीर उनके गाड़ी में राष्ट्रीय राजधानी के केशवपुरम क्षेत्र के रामपुरा मेन रोड पर मिला। आज तक की रिपोर्ट की माने तो ये 47 वर्षीय अफसर दिल्ली में हुए दंगों के इन्वेस्टिगेशन टीम का हिस्सा थे।
रिपोर्ट्स के अनुसार शनिवार शाम 4 बजकर 20 मिनट पर पुलिस को कॉल आई कि एक आदमी अपने गाड़ी में बेहोश पड़ा है। मौके पर पहुंची पुलिस ने तुरंत इंस्पेक्टर खानविलकर को अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
नॉर्थवेस्ट दिल्ली के डेप्युटी कमिश्नर विजयंत आर्य ने कहा, “एंबुलेंस में इंस्पेक्टर खानविलकर को बाबू जगजीवन राम स्मारक अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हम सारे एंगल्स से इस मामले की छानबीन कर रहे हैं।”
प्रारम्भिक जांच में इंस्पेक्टर खानविलकर के शरीर पर घाव के कोई निशान नहीं मिले, फिर भी शव को पोस्ट मॉर्टम के लिए भेजा गया है।
बता दें कि पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों ने सांप्रदायिक रूप लेने से पहले बतौर पुलिस विरोधी प्रदर्शन की शक्ल ली थी। शाहीन बाग में भारत विरोधी तत्वों द्वारा दिए जाए भड़काऊ भाषण के कारण यहां साम्प्रदायिकता के साथ-साथ पुलिस विरोधी भावनाएं वहीं उमड़ रही थीं। सच कहें तो पूर्वोत्तर दिल्ली में जब दंगे भड़के थे, उसके सबसे पहले शिकार भी दिल्ली पुलिस के सदस्य ही बने। दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की जघन्य हत्या ने स्थिति को और भी ज़्यादा बिगाड़ दिया था।
यही नहीं, पुलिस और पैरामिलिट्री पर हर प्रकार के हमले बरसाए गए। कहीं पैरामिलिट्री के जवानों पर तेजाब से हमला किया गया, तो कहीं आईबी के अफसर अंकित शर्मा की निर्ममता से हत्या भी की गई।
जांच पड़ताल के दौरान कई बड़े नामों की संलिप्तता सामने आई। चाहे आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन हो, सिमी से संबंधित पीएफआई हो, अति वामपंथी संगठन पिंजरा तोड़ हो या फिर जामिया मिल्लिया संयोजक कमेटी की सदस्य सफूरा जरगर ही क्यों ना हो, दिल्ली के दंगों को भड़काने में इन कट्टरपंथियों की काफी अहम भूमिका रही है।
इतना ही नहीं, जांच पड़ताल में यह भी सामने आया है कि दिल्ली में सत्ताधारी पार्टी यानी AAP के नेता किस तरह से वामपंथियों की सांठ गांठ से पूरे दिल्ली को जलाने पर तुले हुए थे। पुलिस का मानना है कि दंगा कराने के लिए ताहिर ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे। इसके लिए वह पूर्व जेएनयू स्टूडेंट उमर खालिद और शाहदरा के खुरेजी खास दंगे में आरोपी खालिद सैफी के संपर्क में थे। इन दंगों में ताहिर का छोटा भाई शाह आलम भी शामिल था। जांच में सामने आया कि ताहिर ने दंगे के दौरान अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था। जिसे उसने दंगे शुरू होने के ठीक एक दिन पहले ही रिलीज करवाया था।
ऐसे में इस मामले की जांच पड़ताल कर रहे एक अफसर की संदेहास्पद परिस्थितियों में मृत्यु होना कोई आम बात नहीं है। जिस तरह से प्रमुख आरोपियों को बचाने के लिए वामपंथी दल एकजुट हुए पड़े है, उससे दिल्ली पुलिस के लिए ये मामला और भी ज़्यादा गंभीर हो जाएगा।