वुहान वायरस के कारण जहां चीन की वैश्विक फ़ैक्टरी की छवि धूमिल हो चुकी है, तो वहीं भारत और वियतनाम जैसे कई देश इस टैग को पाने की होड़ में लगे हुए हैं। इसी दिशा में कुछ दिन पहले वियतनाम की संसद ने यूरोपीय संसद के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया है। इस एग्रीमेंट के अंतर्गत दोनों पक्ष अपने-अपने ट्रेड ड्यूटी में भारी कटौती करेंगे, और कुछ उत्पादों के लिए ट्रेड ड्यूटी लगभग शून्य हो जाएंगे। इससे भारतीय निर्यातकों में काफी खलबली मच गई है।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि वियतनाम भारत को वैश्विक फ़ैक्टरी बनने की होड़ में पछाड़ सकता है। अगर भारत को वियतनाम को पछाड़ना है, तो उसे अविलंब अपने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट फास्ट ट्रैक करने पड़ेंगे, विशेषकर वो एग्रीमेंट्स जो उसने यूएसए जैसे देशों के साथ किए हैं। अब यूरोपियन संघ के साथ डील के सफल होने की आशा काफी कम है, पर भारत यूएसए के अलावा यूके, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, पश्चिमी एशिया इत्यादि के साथ अपने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को फास्ट ट्रैक तो कर सकता है। इन देशों को अपने कंपनियों के लिए कम लागत वाले औद्योगिक हब्स चाहिए, और यदि भारत उचित व्यवस्था करें, तो विश्व के बड़े शक्तियों के लिए किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के डायरेक्टर जनरल अजय सहाय के अनुसार, “कई क्षेत्रों में भारत वियतनाम के साथ काफी क्लोज़ कॉम्पटिशन कर रहा है। फुटवेयर, लेदर उत्पाद, फ़र्निचर, समुद्री उत्पाद, चाय और कॉफी के क्षेत्रों में हमें काफी सतर्क रहना होगा, और यदि हम समय रहते नहीं चेते, तो कई क्षेत्रों में हम वियतनाम को अपना भावी वर्चस्व खो सकते हैं”।
अजय सहाय गलत भी नहीं कह रहे हैं। वियतनाम ने जिस प्रकार से अपने आप को एक औद्योगिक हब में परिवर्तित करने में सफलता पाई है, वो अपने आप में एक मिसाल से कम नहीं है, और वैश्विक फ़ैक्टरी बनने की राह में भारत के लिए सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है। नोमुरा ग्रुप के एक स्टडी के अनुसार अप्रैल 2018 से अगस्त 2019 के बीच चीन से जितनी कंपनियाँ बाहर गई थी, उनमें से केवल 3 कंपनियाँ भारत आई, जबकि 26 कंपनियाँ वियतनाम स्थानांतरित हुई थी।
भारत और अमेरिका की फ्री ट्रेड एग्रीमेंट लगभग निश्चित हो चुकी है। वुहान वायरस के असर के खत्म होते ही भारत को अमेरिका के साथ युद्धस्तर पर काम करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। यदि वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल जापान और चीन के साथ व्यापार संबंधी कार्यक्रमों में न व्यस्त होते, तो यह काम 2019 के अंत तक ही हो जाना चाहिए था।
इसके अलावा UK के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी भारत के साथ एफ़टीए पर हस्ताक्षर करने को काफी उत्सुक हैं। ऑस्ट्रेलियाई मोर्चे पर प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने साफ किया है कि वे भारत के साथ एक रणनीतिक एफ़टीए करने के लिए हमेशा तैयार हैं। अपने दुग्ध व्यापार को बनाए रखने के लिए भारत शुरू में थोड़ा हिचक रहा था, पर अब वुहान वायरस के बाद जिस तरह के हालत बने हैं, उसमें भारत को अब तनिक भी देरी न करके एक एफ़टीए औस्ट्रेलिया के साथ साइन कर लेनी चाहिए।
यदि भारत को अपने देश को वैश्विक फ़ैक्टरी का दर्जा दिलवाना है, तो पूंजीवादी सुधार अत्यंत आवश्यक है, चाहे वो भूमि के लिए हो, श्रम के लिए हो या फिर कैपिटल आधारित सुधार ही क्यों न हो। यदि भारत ने तुरंत ऐसा नहीं किया, तो वियतनाम जैसे छोटे-छोटे देश उसे इस होड़ में काफी पीछे छोड़ देंगे।