नेपाल और भारत के संबंधों में आई कड़वाहट मानो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। अपनी हेकड़ी में दस कदम आगे बढ़ते हुए केपी शर्मा ओली की सरकार ने एक बार फिर नेपाल के विवादित मानचित्र को जारी करने के लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव को नेपाल के विधि मंत्री एस एम तुंबहांगफेय ने सदन में पेश किया।
परन्तु बात यहीं पर नहीं रुकती। नेपाल के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री का दोहरा पदभार संभाल रहे ईश्वर पोखरेल ने यहां तक दावा किया कि नेपाल किसी भी प्रकार के संकट से निपटने के लिए तैयार है, और ज़रूरत पड़ने पर लड़ाई मोल लेने को भी तैयार है।
इससे पहले भी नेपाल सरकार ने यह विवादित संशोधन संसद से पारित कराने का प्रयास किया था, तब नेपाली कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध किया था। वैसे भी संवैधानिक संशोधन के लिए नेपाली संसद में तो तिहाई बहुमत चाहिए, पर अब नेपाली कांग्रेस ने भी इस विवादित संशोधन को अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है।
एनडीटीवी के रिपोर्ट की माने तो आम तौर पर किसी भी संवैधानिक संशोधन विधेयक को पारित कराने की प्रक्रिया एक महीने तक चलती है, लेकिन वर्तमान नेपाली सरकार चीन को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
इस दांव के साथ नेपाल का वर्तमान प्रशासन भारत को खुलेआम चुनौती देना चाहता है। दरअसल, अभी हाल ही में भारत ने रणनीतिक रूप से धारचूला लिपुलेख रोड का अनावरण किया, जो भारत चीन बॉर्डर से महज 4 किलोमीटर दूर है।
पर नेपाल की वर्तमान सरकार को इस बात से आपत्ति है कि ये ‘ उसके ‘ क्षेत्र में क्यों बनी है? दरअसल, जिस क्षेत्र में भारत ने यह सड़क बनाई है, उसे नेपाली प्रशासन अपनी ज़मीन बताने का दावा करता है। इस क्षेत्र पर भारत का काफी समय से अधिकार रहा है, और नेपाल के प्रशासन को इससे पहले कभी कोई समस्या नहीं रही है।
तो अब ऐसा क्या है, कि नेपाली प्रशासन मुंगेरीलाल की भांति दिन में सपने दे रही है? दरअसल, ओली सरकार के वर्तमान अस्तित्व के पीछे चीन का काफी हद तक हाथ रहा है, और अपना आभार प्रकट करने के लिए नेपाल अपने बड़े भ्राता भारत को आंखें दिखाने को भी तैयार है।
पर इतने पर भी केपी शर्मा ओली को उनके नापाक इरादों के लिए राष्ट्रव्यापी समर्थन नहीं मिल रहा है। मधेसी क्षेत्र से संबंध रखने वाली पार्टियों को इस विधेयक में कोई विशेष बात नहीं दिखती है। इसके अलावा नेपाली जनता को ओली प्रशासन फूटी आंख नहीं सुहाता, और कुछ जगह ओली सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।
उधर भारत ने नेपाली प्रशासन के दावों का न केवल खंडन किया है, अपितु उसे आधारहीन भी घोषित किया है। हालांकि, भारत अभी भी बातचीत को तैयार है, परन्तु ओली सरकार के बर्ताव को देखते हुए लगता है भारत को नेपाल को मलेशिया वाली ट्रीटमेंट देनी पड़ेगी।