TFI ने कुछ दिन पहले एक लेख लिखा था जिसमें यह बताया गया था कि कैसे भारत की कांग्रेस पार्टी हमेशा से ही चीन की तरफदारी क्यों करती रहती है। अब इसकी वजह सबके सामने आ गई है। एक नए खुलासे में यह बात सामने आई है कि कांग्रेस पार्टी और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच वर्ष 2008 में एक MOU यानि समझौता साइन हुआ था जिसके तहत इन दोनों ही पार्टियों को महत्वपूर्ण द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर एक-दूसरे को जानकारी देने का अवसर मिलता है जिसकी कोई समय सीमा नहीं है।
ऐसा लगता है कि आज अगर भारत सरकार पर चीन के खिलाफ कड़े एक्शन को लेकर विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो वह इसी MOU के कारण। ऐसा भी हो सकता है कि MOU का पालन करने के लिए ही कांग्रेस का इकोसिस्टम जानबूझकर इस हद तक जा रहा है।
बता दें कि विश्व की सबसे भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों में से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की कांग्रेस पार्टी के बीच यह समझौता वर्ष 2008 में हुआ था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने चीन दौरे पर राहुल गांधी के साथ गयी थीं और उसी दौरान इस समझौते पर साइन किया गया था। इंडिया टूडे की रिपोर्ट के अनुसार एक तरफ कांग्रेस से राहुल गांधी ने पार्टी के जनरल सेक्रेटरी के तौर पर साइन किया था तो वहीं CCP की ओर से तत्कालीन उप राष्ट्रपति और मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
यानि आज जो नेता और पार्टी पूरे विश्व में कोरोना महामारी और लाखों मौत के लिए जिम्मेदार हैं उससे कांग्रेस पार्टी पहले से ही समझौता कर चुकी है। इस समझौते के तहत इन दोनों पार्टियों में कई तरह के आपसी मुद्दों पर जानकारी साझा करने की बात हुई थी जो द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भी हो सकते हैं। शायद यही कारण रहा है कि कांग्रेस ने कभी CCP का विरोध नहीं किया और शायद यही कारण था कि राहुल अक्सर चीनी अधिकारियों से छुप कर मिलते रहते हैं।
वर्ष 2018 की ही बात है जब लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी मानसरोवर की यात्रा के नाम पर चीनी अधिकारियों से मिलने गए थे। इसी तरह जब डोकलाम में भारत की सेना चीन के सामने स्टैंडऑफ में थी तब भी राहुल गांधी चीन के राजदूत से मिलने पहुंचे थे। उस दौरान भी तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राहुल गांधी पर चीन के साथ गुपचुप बातचीत करके भारत का पक्ष कमज़ोर करने का आरोप लगाया था।
आखिर यह भारत का पक्ष कमजोर करना नहीं है तो आखिर क्या है? एक राजनीतिक पार्टी का दूसरे देश की एकमात्र सत्ताधारी पार्टी जो करोड़ों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है, उससे इस तरह का समझौता करने का क्या अर्थ है?
कांग्रेस ने इससे पहले नेल्सन मंडेला की अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस के साथ इस तरह का समझौता किया था, लेकिन वह एक लोकतांत्रिक देश की पार्टी थी। परंतु कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना तो माओ जैसे हिंसक नेता के कथनी पर चलती है जो किसी भी विरोधी को समाप्त कर देने में विश्वास रखती है। इसके साथ ही चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी डिक्टेटरशिप से सत्ता चलाती है जहां लोगों की कोई नहीं सुनता।
जिस तरह से कांग्रेस आज तनाव के माहौल में बर्ताव कर रही है उससे यह स्पष्ट समझा जा सकता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी CCP के साथ हुए उस समझौते का पालन कर रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर कांग्रेस पार्टी अपने ही नेता अधीररंजन चौधरी द्वारा चीन के खिलाफ किए गए ट्वीट को क्यों डिलीट करवाती?
कांग्रेस ने जिस तरह से भारत विरोधी रुख अपनाया है चाहे वो अभी गलवान घाटी का मामला हो, चाहे डोकलाम का मामला हो, या फिर चीनी घुसपैठ को नजरंदाज करना हो, इन सभी कदमों ने भारत को चीन के खिलाफ कमजोर किया है जिसका खामियाजा देश को चुकाना पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी ने चीन पर हमला करने के बजाए अपने देश की सरकार पर ही हमला करना दिखाता है कि उसके लिए देश नहीं बल्कि CCP के साथ हुआ समझौता ज्यादा महत्वपूर्ण है। अब एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी का भारत विरोधी तत्वों के साथ साँठगांठ का खुलासा हुआ है। आज फिर से जनता को यह तय करना है कि इस पार्टी को क्या सबक सिखाया जाए।