वर्ष 1950 में चीनी लोग यह कहा करते थे कि “कल का चीन भी आज के सोवियत यूनियन (USSR) की तरह होगा”। लगभग 4 दशकों के बाद USSR टूटा और 15 नए देशों में बंट गया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और USSR के बीच जारी शीत युद्ध का अंत कुछ इसी प्रकार हुआ था। कोरोना के बाद अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध आरंभ हो चुका है, और चीनियों ने जो वर्ष 1950 में कहा था, वह अब सच होने वाला है। कोरोना किसी तीसरे विश्व युद्ध से कम नहीं है, जिसे चीन द्वारा सब देशों पर थोपा गया है। ऐसे में यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस नए शीत युद्ध का अंत भी चीन के बँटवारे के साथ ही हो सकता है।
कम्युनिस्ट चीन शुरू से ही एक विस्तारवादी देश रहा है, और उसने कई देशों पर अपना अवैध कब्जा जमाया हुआ है। उदाहरण के लिए- तिब्बत, हाँग-काँग, शंघाई, शिंजियांग, मंचूरिया, चेंगड़ू और ज़्हांग ज़्हुंग! चीन के टूटने के बाद ये सब देश आखिर चीन के चंगुल से आज़ाद हो सकते हैं, और स्वतंत्र देश के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर सकते हैं।
पहले कोरोनावायरस और फिर बाद में सब देशों के खिलाफ आक्रामकता, चीन ने स्वयं अपने आप को आज उस स्थिति में पहुंचा दिया है, जिस स्थिति में 80 के दशक में USSR पहुंच गया था। चीन ने पहले कोरोना से दुनिया पर कहर बरपाया, बाद में अब वह भारत, दक्षिण चीन सागर और जापान जैसे क्षेत्रों में सैन्य कार्रवाई करने की धमकी दे रहा है। चीन के इन कदमों से कई देशों ने मिलकर चीन के खिलाफ मोर्चा बना लिया है, जिसमें भारत भी शामिल है।
अमेरिका को भी इस खतरे का अहसास हो चुका है, और अब वह भी अपना ध्यान रूस से हटाकर चीन पर केन्द्रित कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने हाल ही में यह घोषणा की है कि वे चीन से खतरे को भाँपते हुए इंडो-पेसिफिक में अपनी सेना और हथियारों को अधिक संख्या में तैनात करेंगे। इसी के साथ NATO भी अब चीन से निपटने के लिए तैयारी कर रहा है। हाल ही में NATO के सचिव Jens Stoltenberg ने कहा था “चीन के उदय से वैश्विक शक्ति संतुलन बिगड़ गया है, जिससे स्वतंत्र देशों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है, और उसका हमारी ज़िंदगी पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है”। NATO के सचिव ने तब यह भी कहा था कि “एक मत रखने वाले” देशों को चीन की आक्रामकता के खिलाफ एक सैन्य गुट भी बनाना चाहिए”।
दरअसल, China पिछले कुछ समय से लगातार लोकतान्त्रिक देशों का उत्पीड़न कर रहा है। चीन वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और इंडोनेशिया और भारत जैसे देशों के खिलाफ बॉर्डर विवाद भड़का रहा है। भारत के खिलाफ तो उसके सैनिकों ने हिंसक झड़प कर डाली, जिसके नतीजे में चीन के 40 से ज़्यादा सीनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ गयी।
यही कारण है कि अब अमेरिका भी China को घेरने के लिए कई मुद्दों को उठा रहा है। हाल ही में उसने ऊईगर का मुद्दा उठाकर कई चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया, साथ ही ऊईगर के खिलाफ अत्याचार करने वालों पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान भी कर डाला। इसी प्रकार अमेरिका चीनी मीडिया को भी निशाना बना रहा है। अमेरिका में अब चीनी मीडिया से चीनी दूतावास की तरह ही बर्ताव किया जाएगा। इससे देश में चीनी मीडिया द्वारा फैलाये गए प्रोपेगैंडा को रोकने में काफी हद तक सफलता मिलेगी।
China के इस बर्ताव से खुद China के लोग भी खुश नहीं है। China के लोग भारत के हाथों मारे गए सैनिकों की जानकारी चाहते हैं, जिसे China ने जारी करने से साफ मना कर दिया है। कोरोना के बाद वुहान के लोग भी सड़क पर उतर आए थे, और वायरस के लिए वे चीनी सरकार को दोषी ठहरा रहे थे। इन सब कारणों से कम्युनिस्ट पार्टी पर जिनपिंग की पकड भी कमजोर होती जा रही है।
स्पष्ट है कि आने वाले दिन China के लिए बेहद पीड़ादायक रहने वाले हैं। यहाँ हमने सिर्फ China के खिलाफ सैन्य मोर्चाबंदी की बात की है, China पर सब देश मिलकर आर्थिक स्ट्राइक की बात भी कर रहे हैं, जिसका मकसद China को वैश्विक सप्लाई चेन से बाहर करना है। China के खिलाफ अमेरिका की आक्रामकता, भारत का उदय और China की गुंडागर्दी इस बात को सुनिश्चित करेगी कि चीन जल्द ही सात देशों में टूटेगा, और इस क्षेत्र को आखिरकार चीन के चंगुल से मुक्ति मिलेगी।