वर्ष 2015 चीन और पाकिस्तान के संबंधों की नज़र से सबसे महत्वपूर्ण वर्षों में से एक रहा था। ऐसा इसलिए क्योंकि उसी साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान के अपने पहले आधिकारिक दौरे पर गए थे और उस दौरान चीन के महत्वकांक्षी BRI प्रोजेक्ट China-Pakistan Economic Corridor पर हस्ताक्षर हुए थे। तब चीन ने पाकिस्तान को सपने दिखाये थे कि कैसे चीन के 46 बिलियन डॉलर के निवेश के बाद पाकिस्तान में वैश्विक स्तर का infrastructure तैयार किया जाएगा और पाक भी दक्षिण एशिया में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा।
हालांकि, इसके महज़ 5 सालों के अंदर ही CPEC को लेकर चीन भी निराश होने लगा है। बलूचिस्तान में आए दिन CPEC प्रोजेक्ट्स पर हो रहे हमले और भारत द्वारा POK को दोबारा अपने केंट्रोल में लिए जाने के बढ़ते खतरे को देखते हुए अब चीन ने आखिरकार पाकिस्तान को डंप करने का फैसला ले लिया है और ऐसे में उसका नया साझेदार बना है ईरान!
दरअसल, हाल ही में चीन ने पाक के पड़ोसी ईरान के साथ 400 बिलियन डॉलर की 25 वर्षीय डील पक्की करना का फैसला लिया है, जिसके बाद कई experts यह अनुमान लगा रहे हैं कि यह डील CPEC और ग्वादर पोर्ट की रणनीतिक वैल्यू को कम कर देगी। दरअसल, ईरान-चीन डील को लेकर सार्वजनिक हुए कुछ leaked दस्तावेजों के मुताबिक आने वाले सालों में ईरान अपने बंदर-ए-जस्क पोर्ट को चीन को सौंप सकता है। यह पोर्ट ग्वादर और चाबहार पोर्ट से थोड़ी ही दूर पड़ता है और strait of Hormuz के बिलकुल मुहाने पर स्थित है।
इतना ही नहीं, डील के मुताबिक ईरान Persian gulf में स्थित अपने “किश” द्वीप को भी ईरान को “बेच” सकता है। ऐसे में चीन आसानी से अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते या फिर पहले से ही BRI को अपना चुके मध्य एशिया के देशों के जरिये ईरान की इन रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जगहों तक अपनी पहुंच बना सकता है। ऐसे में पाकिस्तान का CPEC और ग्वादर पोर्ट चीन के किसी काम का नहीं रह जाएगा।
यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर चीन को CPEC और पाकिस्तान का विकल्प तलाशने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी? दरअसल, पाकिस्तान आज दुनिया के उन चुनिन्दा देशों में से एक है जिसपर अपने अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। उत्तर में गिलगिट-बाल्टिस्तान से लेकर दक्षिण में बलूचिस्तान तक, पाकिस्तान के पंजाब को छोड़कर वहां के हर प्रांत में एक अलगाववाद का आन्दोलन देखने को मिलता है, जिसे काबू में रखना पाकिस्तान के लिए आने वाले दशक तक बेहद मुश्किल होगा। इतना ही नहीं, CPEC भारत के हिस्से से होकर गुजरता है, जिसका भारत शुरू से ही विरोध करता रहा है। ऐसे में भविष्य में अगर भारत अपने POK पर दोबारा कंट्रोल करता है, तो चीन का CPEC धरा का धरा रह जाएगा। ऐसे में चीन के लिए CPEC का विकल्प खोजना ही long-term में उसके हित में होगा।
CPEC पर पाकिस्तान में कोई कम विपत्ति नहीं हैं। CPEC के प्रोजेक्ट्स में शामिल कंपनियों पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। इतना ही नहीं, दक्षिण में बलूचिस्तान में CPEC पर सुरक्षा का बड़ा खतरा भी मौजूद है। बलूचिस्तान को आजकल पाक सेना का “कब्रगाह” भी कहा जाता है, क्योंकि वहां से अक्सर बलोच क्रांतिकारियों द्वारा पाकिस्तानी सेना पर हमले की खबरें आती रहती हैं। इतना ही नहीं, 29 जून को कराची स्टॉक एक्स्चेंज पर भी बलोच क्रांतिकारियों ने हमला बोल चीन और पाक के हुक्मरानों को बड़ा संदेश दिया था।
कुल मिलाकर चीन द्वारा पाकिस्तान को डंप किया जा रहा है, जो अपने आप में पाक के भविष्य को लेकर सवालिया निशान पैदा करता है। पाकिस्तान आज भी वहीं का वहीं है और चीन को अपना नया दोस्त ईरान मिल चुका है। ईरान और पाक के बीच ईरान बड़ी आर्थिक शक्ति है। ईरान 446 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है जबकि पाक सिर्फ 314 बिलियन डॉलर की इकॉनमी! ईरान की GDP per capita तो पाकिस्तान के मुक़ाबले लगभग 4 गुना है। ऐसे में चीन के लिए बेहतर return on investment ईरान से ही आएगी। ईरान ज़्यादा लुभावक है और ज़्यादा बिजनेस friendly है। ऐसे में चीन ने अपने all weather ally पाकिस्तान को डंप कर दिया है, क्योंकि अब पाकिस्तान उसके किसी काम का नहीं रहा है।