भारत चीन बॉर्डर पर भारत के हाथों पिटने के बाद अब चीन आतंकवादियों के पैरों में जाकर गिर पड़ा है। खबर है कि अब चीन पाकिस्तान के पालतू आतंकवादियों के साथ मिलकर भारत में आतंकी हमले कराने की साजिश रच रहा है। इतना ही नहीं, चीन ने यही तरीका म्यांमार के लिए भी अपनाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन अराकान आर्मी के साथ मिलकर म्यांमार को अस्थिर करने के प्रयासों में लगा है। म्यांमार सेना ने हाल ही में खुलासा किया है कि चीन न सिर्फ अराकान के उग्रवादियों को शरण दे रहा है, बल्कि उन्हें जमकर अपने हथियार भी दे रहा है।
म्यांमार में जो कुछ भी चीन कर रहा है, उसका भारत के साथ भी गहरा जुड़ाव है। दरअसल, वर्ष 2014 के बाद से जिस प्रकार मोदी सरकार नॉर्थ ईस्ट में इनफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने में लगी है, उसने चीन को बड़ी पीड़ा पहुंचाई है। चीन चाहता है कि भारत का नॉर्थ ईस्ट पिछड़ा ही रहे, ताकि उसे इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने का मौका मिलता रहे। यहाँ तक कि चीन तो अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानता है। हालांकि, मोदी सरकार चीन के सामने झुकने वालों में से नहीं है।
भारत के नॉर्थ ईस्ट के लिए सबसे बड़ी दुविधा यह है कि यह इलाका भारत के अन्य भाग से बड़े ही सँकरे इलाके के माध्यम से जुड़ा है, जिसे “चिकेन नेक” के नाम से भी पुकारा जाता है। अभी भारत को इस हिस्से में सामान पहुंचाने के लिए बांग्लादेश के रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। इसीलिए भारत चाहता है कि इस इलाके को समुन्द्र से जोड़ दिया जाये। भारत इसके लिए म्यांमार के साथ मिलकर 484 मिलियन डॉलर के कालादन मल्टी-मॉडल ट्रांसिट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, जिसके माध्यम से भारत अपने नॉर्थ ईस्ट के राज्यों को म्यांमार के सित्त्वे पोर्ट से जोड़ना चाहता है।
इस प्रोजेक्ट के पूरा होते ही भारत को दो बड़े फायदे होंगे। पहला तो यह है कि भारत सरकार बड़ी ही आसानी से यहाँ अपना सामान पहुंचा पाएगी, और इन राज्यों में व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी। जबकि दूसरा सबसे बड़ा फायदा होगा कि युद्ध के दौरान अगर चीन भारत की “चिकेन नेक” पर कब्जा कर भारत ने नॉर्थ ईस्ट को भारत के अन्य भाग से काट देता है, तो भारतीय सेना सित्त्वे पोर्ट (Sitwe port) के माध्यम से नॉर्थ ईस्ट में पहुँच पाएगी। स्पष्ट है कि कालादन मल्टी-मॉडल ट्रांसिट प्रोजेक्ट ना सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिए अहम है। इसीलिए चीन इस प्रोजेक्ट को derail करने के लिए अब अराकान के साथ हाथ मिला चुका है।
Wion की रिपोर्ट के मुताबिक, अराकान आर्मी को मिलने वाले 95% फंडस चीन से ही आते हैं। इसके अलावा अराकान आर्मी म्यांमार में चुन-चुन कर भारत के प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाती है। अराकान के उग्रवादी समय-समय पर मिज़ोरम-म्यांमार बॉर्डर पर भारतीय प्रोजेक्ट्स में शामिल मजदूरों को बंदी बनाते रहते हैं, और वे म्यांमार सेना को भी निशाना बनाते हैं। लेकिन अराकान के लड़ाके कभी BRI के प्रोजेक्ट को निशाना नहीं बनाते। चीन इसके माध्यम से म्यांमार पर दबाव बनाता है कि वहाँ की सरकार BRI प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दे और BRI में कोई रोड़ा ना अटकाए।
चीन और म्यांमार की अराकन आर्मी के गठबंधन से म्यांमार सेना भी चिंतित है। हाल ही में म्यांमार सेना के कमांडर-इन-चीफ़ जनरल “मिन ओंग” ने रूस के एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा “कोई देश आसानी से अपने यहाँ आतंकियों का सफाया कर सकता है, लेकिन अगर उनके पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ हो, तो फिर दुनिया को हमारी मदद के लिए आगे आना चाहिए”। जनरल मिन ओंग का इशारा यहाँ चीन की ओर था, क्योंकि अराकन आर्मी के पास से बड़ी संख्या में चीनी हथियार ज़ब्त किए जा रहे हैं। ऐसे में भारत को अब म्यांमार के साथ मिलकर चीन की इस साजिश को नाकाम करना ही होगा चीन को एक करारा सबक सिखाया जा सके।