पिछली सदी में जब वैश्विक स्तर पर इंपीरियल जापान यानि उसके साम्राज्यवादी सत्ता का उदय हुआ था तो सबसे अधिक नुकसान चीन को उठाना पड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने तो चीन पर Germ Attack यानि रोगाणु हमला कर उसकी कमर ही तोड़ दी थी। मित्र राष्ट्रों की मदद से पहले ही चीन अपने महत्वपूर्ण शहर जैसे नानजिंग, शंघाई और ग्वांगझू को जापानी सेना के हाथो हार चुका था।
परंतु अमेरिका के जापान पर परमाणु हमले के बाद द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ती हुई और उसके बाद जापान ने शांतिवाद को अपनाया और इसे संवैधानिक रूप से अनिवार्य कर दिया। जापानी संविधान का अनुच्छेद 9 जापान को घातक हथियार रखने से रोकता है, पर फिर भी इस द्वीप देश ने आत्मरक्षा के लिए सेना को बनाए रखना जारी है।
हालांकि, अब स्थिति में यू टर्न होता दिखाई दे रहा है। चीन लगातार जापान को East China Sea और सेनकाकू द्वीपों पर चुनौती दे कर उकसा रहा है। इस कारण फिर से अब जापान शांतिवाद छोड़ खुद को चीनी आक्रमण के खिलाफ तैयार करने पर विचार कर रहा है।
हाल ही में, द जापान टाइम्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि जापान अब हर चीनी लड़ाकू विमान को टक्कर देने के जवाब में स्वयं के फाइटर जेट्स को हरकत में ला रहा है। यह रिपोर्ट तब आई है जब दोनों देशों के बीच सेनकाकू द्वीप को लेकर तनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है।
चीन की बढ़ती साम्राज्यवादी नीति के कारण पिछले कुछ महीनों में बीजिंग ने जापान को भी धमकाने की कोशिश की है। मई के महीने से ही कई चीनी जहाजों के सेनकाकू द्वीप समूह के आसपास जापानी क्षेत्रीय जल में मंडराने की रिपोर्ट आई थी।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस निर्जन सेनकाकू द्वीप को जापान ने 2012 में एक इसके मालिक से खरीदा था, लेकिन विस्तारवादी बीजिंग अब इस द्वीप पर अपना दावा कर रहा है। चीनी के बढ़ते कदम से अब टोक्यो ने आक्रामकता दिखानी शुरू की है। जापान अपने क्षेत्रीय जल में घुसपैठ करने वाले सभी चीनी जहाजों का उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं और खदेड़ रहा है। यही नहीं जापान ने इस द्वीप पर जापान की संप्रभुता की पुष्टि करने के लिए इसका प्रशासनिक नाम “ Tonoshiro ” से बदल कर “ Tonoshiro Senkaku,“ कर दिया।
यानि देखें तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जापान को एक प्रकार से सैन्य स्टैंड-ऑफ के लिए मजबूर कर दिया है। चीन को इस बात का एहसास नहीं हो रहा है कि वह एक बार फिर से जापान को उसकी सैन्य तथा सुरक्षा नियमों में बदलाव करने पर मजबूर कर रहा है। इस बदलाव से जापान एक बार फिर से आक्रामक नीति अपनाने को मजबूर हो जाएगा और परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध से भी भयंकर हो सकता है।
जब से जापान-चीन के बीच तनाव बढ़ा है, टोक्यो ने अपनी सैन्य रणनीति आक्रामक कर दी है। इसी वर्ष मार्च के महीने में जापान की विधायिका, National Diet ने 46.3 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट को मंजूरी दी थी। कहा यह जा रहा है कि इस नवीनतम विस्तार का कारण चीनी विस्तारवाद नीति ही है, जिससे जापान बीजिंग के बढ़ते कदम का मुकाबला करने के लिए तैयार हो रहा है। अगर हाल के जापान द्वारा लिए गए फैसलों को देखें तो यह साबित भी होता है।
हाल ही में, जापानी रक्षा मंत्री Taro Kono ने विदेशी मीडिया के लिए एक प्रेस ब्रीफिंग आयोजित की। ब्रीफिंग में, Taro Kono ने बीजिंग के इरादों और क्षमताओं पर नजर रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया था।
जापानी रक्षा मंत्री ने यह भी कहा था कि किसी भी हमले से पहले की क्षमता बढ़ाने से इंकार नहीं किया जा सकता है। यानि जापान भविष्य में किसी भी हमले के से बचने के लिए अपनी क्षमताओं को और बढ़ा रहा है। पूर्वी चीन सागर में बीजिंग की बढ़ती आक्रामकता को रोकने के लिए जापान घातक हथियारों की प्रणाली को प्राप्त करने पर भी विचार कर रहा है। हाल ही में जापान ने अमेरिका से 105 F-35 Stealth Fighter Jets विमानों की खरीद को मंजूरी दी थी। जापान इन घातक अमेरिकी Jets को हासिल करने के लिए 23.11 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने जा रहा है। यानि अब जापान किसी भी कीमत पर चीन को सबक सीखने की तैयारी में जुट चुका है।
जिस तरह से जापान अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में जुट चुका है उसे देखते हुए अगर यह कहा जाए कि बीजिंग जापानी शांतिवाद को जापान की कमजोरी समझ बैठा तो यह गलत नहीं होगा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोचा कि वह जापान को अपनी आक्रामक नीति से दबाव मे ला कर झुका सकते हैं वह उठने की हिम्मत नहीं करेगा।
परंतु अब यही भूल चीन के लिए सबसे घातक साबित होने जा रही है। चीन जिस तरह से गुंडागर्दी दिखा रहा है वैसी स्थिति में जापान के पास अपनी सैन्य तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
इस महीने की शुरुआत में, जापानी रक्षा मंत्रालय ने अपने स्वयं के स्टील्थ लड़ाकू विमान- F-3 लड़ाकू को विकसित करने की घोषणा भी कर दी है और यह वर्ष 2035 तक जापानी सेना में शामिल हो सकता है। न केवल सैन्य निर्माण, बल्कि जापान चीन को सबक सीखाने के लिए Quad का एक प्रमुख सदस्य बन रहा है। रिपोर्ट के अनुसार Quad के विस्तार पर भी चर्चा शुरू हो चुकी है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन से इस मामले पर बातचीत की थी। इस बातचीत में दोनों नेताओं ने चीन से बढ़ते खतरे के बीच रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्रों में Quad सहयोग का विस्तार करने पर सहमति व्यक्त की।
यही नहीं टोक्यो ने हाल ही में फैसला किया है कि वह भारत, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के साथ रक्षा खुफिया जानकारी में सहयोग का विस्तार करेगा। इसके अलावा, टोक्यो भारत के साथ एक लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट भी कर सकता है। स्पष्ट रूप से जापान चीन को सबक सिखाने के लिए इंडो-पैसिफिक गठबंधन का सक्रिय सदस्य बनने की कोशिश में लगा है।
जापान का स्पष्ट संदेश है कि जापान ने शांतिवाद को किसी भी मजबूरी के कारण नहीं अपनाया है, बल्कि यह उसका अपना फैसला है। परंतु चीन के लगातार उकसावे ने जापान को दूसरे विश्व युद्ध के दौर की तरह एक जबरदस्त सैन्य बल बनाने के लिए मजबूर किया है। चीन को जबतक अपनी गलती का एहसास होगा तब तक जापान एक सैन्य ताकत बन चुका होगा जो फिर से चीन को मिट्टी में मिलाने की हैसियत रखेगा।