शी जिनपिंग से बदकिस्मत तो इस संसार में शायद ही कोई प्राणी होगा। उनपर वुहान वायरस को दुनिया भर में फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है। कोई भी देश जिनपिंग का साझेदार नहीं बनना चाहता है, और तो और अब उसके देश की सेना भी जिनपिंग प्रशासन के विरुद्ध विद्रोह पर उतर आया है।
विद्रोही नेता और कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व नेता के पुत्र जियानली यांग ने वाशिंगटन पोस्ट के लिए लिखे एक लेख में सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा है कि चीन द्वारा गलवान घाटी की सच्चाई न बताना वर्तमान प्रशासन के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है।
जियानली यांग के लेख के अनुसार, “सेवानिर्वृत्त और घायल पीएलए सैनिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध विद्रोह पर उतर सकते हैं। सीसीपी का नेतृत्व इन पूर्व सैनिकों की क्षमता को नज़रअंदाज़ करने की भूल बिलकुल नहीं कर सकती है, और यदि स्थिति नियंत्रण में नहीं आई, तो ये पूर्व सैनिक मिलकर एक निर्णायक युद्ध छेड़ने में भी सक्षम है”।
परंतु पीएलए के पूर्व सैनिकों या वरिष्ठ अधिकारियों को किस बात की समस्या है? दरअसल, जिस प्रकार से चीन गलवान घाटी की सच्चाई सबसे छुपाता आ रहा है, उससे न केवल चीन की जनता, बल्कि स्वयं पीएलए के कई सैनिक काफी रुष्ट हैं। चीनी सोशल मीडिया एप वीबो पर कई यूजर्स ने सीसीपी के इस रुख पर तंज़ भी कसा है। 19 जून को एक वीबो यूजर ने लिखा, “भारत ने अपने मृत सैनिकों के लिए एक श्रद्धांजलि सभा रखी थी। ये दिखाता है कि भारत अपने देश के सैनिकों के लिए कितना सम्मान दिखाता है, जो अपने देश के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देते हैं”।
चूंकि चीन की सेंसरशिप के कारण कई बातें खुलकर सामने नहीं आ पाती, इसलिए जियानली यांग ने चीन में पीएलए सैनिकों के आक्रोश पर आगे प्रकाश डालते हुए बताया, “जिन लोगों ने कोरियाई युद्ध और चीन वियतनाम युद्ध में अपनी सेवाएँ दी थीं, वो अब आए दिन चीन में विरोध प्रदर्शन करते रहते हैं। उन्हें आज तक चीन की सरकार ने वो सम्मान नहीं दिया जिसके वो योग्य हैं”।
यांग ने आगे बताया, “वे [पूर्व सैनिक] बस इतना ही चाहते हैं कि उन्हें सेवानिर्वृत्ति के बाद अच्छी स्वास्थ्य सेवा, पेंशन और जीवनयापन के लिए कोई योग्य जॉब मिले। परंतु केंद्र प्रशासन ने आज तक उनकी एक भी मांग नहीं पूरी की। मांग तो छोड़िए, विश्व की सबसे बड़ी फ़ौज के पास इन मांगों को पूरा करने के लिए एक केन्द्रीय एजेंसी भी नहीं है। इसलिए चीन के सैनिकों को क्षेत्रीय सरकारों पर सेवानिर्वृत्ति के बाद की जरूरतों के लिए निर्भर रहना पड़ता है।
इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या होगा कि जो देश अपने आप को विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बनाना चाहता हो, उसके सैनिक रिटायरमेंट के बाद सम्मान का जीवन भी नहीं बिता सकते। चीनी सत्ता विरोधी जियानली यांग के अनुसार इन पूर्व सैनिकों उन पशुओं की तरह हो गई है जिन्हें वृद्ध होने पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
ऐसे में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की हालत पर चीनी सरकार की चुप्पी ने आग में घी डालने का काम किया है। शी जिनपिंग का प्रशासन यह स्वीकारने को भी तैयार नहीं है कि उनके सैनिकों को कुछ भी हुआ है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियान ने अपने सम्बोधन में गलवान घाटी के बारे में कोई भी जानकारी साझा करने से मना कर दिया।
जियानली यांग ने इस परिप्रेक्ष्य में चीनी सरकार पर कटाक्ष करते हुए लिखा, “कौन सा देश अपने मृत सैनिकों तक को पहचानने से मना कर देता है? क्या चीनी सैनिक इतने गए गुजरे हैं, कि उनके लिए दो मिनट का मौन भी नहीं रखा जा सकता? सच कहें तो चीन को यह स्वीकारने में दिक्कत है कि उसके सैनिकों को भारी संख्या में भारतीय सैनिकों ने नुकसान पहुंचाया है, और अगर ये खबर सामने आई, तो प्रशासन को तख्तापलट का भी भय है, और इससे चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा”।
पर जियानली यांग यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे बताया, “पीएलए में विद्रोह का अर्थ है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अंत। इसलिए कम्युनिस्ट पार्टी सेवानिर्वृत्त पीएलए सैनिकों की भी जासूसी करती है, और कई बार पूर्व सैनिकों की रहस्यमयी अवस्था में मृत्यु की खबरें भी सामने आई है। पीएलए CCP के शासन का आधार है। यदि पीएलए ही संतुष्ट नहीं है, तो सीसीपी कब तक टिकेगी?”
ऐसे में गलवान घाटी की खूनी झड़प से न केवल ये सिद्ध होता है कि पीएलए सिर्फ कागजी शेर हैं, बल्कि अब जियानली यांग के खुलासों से यह भी सिद्ध होता है कि शी जिनपिंग के विरुद्ध अब पीएलए में भी विद्रोह उमड़ने वाला है, और यदि स्थिति नियंत्रण में नहीं लाई गई, तो शी जिनपिंग के साथ चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी का पूर्ण अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है।