क्या कभी आपने ऐसी कल्पना की है जहां आपके पास एक ऐसी जादू की छड़ी हो, जिसे घुमाते ही आपकी सब मुश्किलें दो मिनट में गायब हो जाएँ? आपकी यह कल्पना शायद ही कभी सच हो, लेकिन लगता है कि भारत को ऐसी छड़ी मिल चुकी है। उनका नाम है अजित डोभाल! देश पर कोई भी समस्या आए, चाहे आतंरिक हो या बाहरी, चाहे कूटनीतिक हो या सैन्य, अजित डोभाल जिस वक्त मिशन को अपने हाथों में ले लेते हैं, मानो उसी वक्त वह मिशन सफल हो जाता है। भारत-चीन बॉर्डर विवाद के दौरान भी अजित डोभाल की सबसे बड़ी भूमिका रही। बातचीत के कई लंबे दौरों के बाद आखिरकार 5 जुलाई को चीनी सेना LAC से पीछे हटने को तैयार हो गयी। अब यह सामने आ रहा है कि चीनी सेना के इस कदम से पहले अजित डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री से फोन पर बातचीत की। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को चीन से निपटने का काफी अनुभव रहा है, ऐसे में उनका अनुभव दोबारा देश के काम आया है।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बातचीत पर भारत स्थित चीनी दूतावास ने बयान जारी किया। बयान के मुताबिक “अजित डोभाल और यांग यी के बीच में सहमति बनी है कि भारत और चीन सीमा क्षेत्र में मामले में जहां भी असहमति (भिन्नता, विवाद) है, उसे टकराव का रूप नहीं बनने देंगे। दोनों देश सहमत हैं कि इस आधार पर सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखेंगे। इसके लिए यथासंभव, यथा शीघ्र कुछ चरणों में विवादित क्षेत्र से दोनों देश अपनी सेना को हटाकर पहले की स्थिति में ले जाएंगे”।
Times of India की एक रिपोर्ट की मानें तो चीनी पक्ष को लाइन पर लाने के लिए अजित डोभाल ने कड़े शब्दों का भी इस्तेमाल किया। अजित डोभाल ने चीनी पक्ष को साफ कहा “अगर आपको बॉर्डर पर शांति चाहिए, तो PLA को बॉर्डर से पीछे हटना ही पड़ेगा। जब तक चीनी सेना बॉर्डर पर रहेगी, तब तक तनाव कम होगा ही नहीं”। इस बात से चीनी पक्ष को साफ संदेश गया कि भारत इस क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है, और मामला तभी सुलझ सकता है जब चीनी सेना LAC से पीछे हटे। और बाद में हुआ भी ऐसा ही। बातचीत के बाद भारतीय सेना ने एक बयान जारी कर कहा “चीनी सेना अब अपने सैनिकों, वाहनों और टैंट्स को पीछे ले जा रही है। कोर कमांडर स्तर पर बातचीत के बाद चीनी सेना बॉर्डर से 2 किलोमीटर पीछे हटने को तैयार हो गयी है”।
चीन के विरुद्ध अजित डोभाल की यह सफलता कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले वर्ष 2017 में जब चीनी लड़ाकों ने भूटान के डोकलाम में सड़क निर्माण का कार्य चालू कर दिया था, तो भारतीय सैनिक सीधा डोकलाम पहुँच गए थे। वहाँ भी डोभाल की एंट्री होते ही 73 दिनों तक चली लंबी तनातनी के बाद अंत में भारत के समक्ष चीन को घुटने टेकने ही पड़े थे।
अजित डोभाल की इसी सफलता के कारण तो उन्हें मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ना सिर्फ दोबारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया, बल्कि उन्हें कैबिनेट रैंक भी दिया गया। वे इस कार्यकाल में तबलीगी जमातियों को काबू करने से लेकर कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद हालातों को नियंत्रित करने तक, हर जगह सरकार में बड़ी भूमिका निभा चुके हैं। इतना ही नहीं, वे देश की military doctrine तैयार करने में भी लगे हैं, जिसके बाद यह तय किए जाएगा कि भारत को किस जगह किस प्रकार के और कितने हथियारों की जरूरत होगी। इसके साथ ही इस military doctrine में न्यूक्लियर हथियारों को लेकर भारत की no first use नीति में भी बदलाव देखने को मिल सकता है।
#WATCH: Defence Minister Rajnath Singh says in Pokhran, "Till today, our nuclear policy is 'No First Use'. What happens in the future depends on the circumstances." pic.twitter.com/fXKsesHA6A
— ANI (@ANI) August 16, 2019
अजितडोभाल को रक्षा नीति का चैम्पियन कहा जाता है। वे देश के महान रणनीतिकारों में से एक हैं। मोदी सरकार में देशहित के लिए उनके अनुभव का भरपूर फायदा उठाया जा रहा है। जिस प्रकार अजित डोभाल ने दोबारा इतने उलझे हुए भारत-चीन बॉर्डर विवाद को सुलझाया है, उसने फिर एक बार अजित डोभाल की योग्यता को सबके सामने प्रस्तुत कर दिया है।