कुछ ही महीनों में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, और स्थिति अभी से चिंताजनक दिखाई दे रही है। नीतीश कुमार की सरकार राज्य में कुछ भला नहीं कर पा रही है, और भाजपा राज्य में अकेले चुनाव लड़ने से घबरा रही है, ऐसे में राज्य में विकल्प की बड़ी भारी कमी देखने को मिल रही है। वर्ष 2014-15 में थोड़े समय के लिए छोड़ दिया जाये, तो नीतीश कुमार वर्ष 2005 से ही राज्य के CM रहे हैं। इन सालों में उनके सुशासन के दावों की पोल खुल गयी है।
BJP-JDU के एक साथ होने से लोग चाहकर भी JDU के खिलाफ BJP को वोट नहीं डाल सकते। JDU-BJP के गठबंधन और RJD के बीच सीधी टक्कर होने वाली है। कांग्रेस भी RJD का समर्थन कर सकती है। इतना तो तय है कि JDU के खिलाफ anti-incumbency का नुकसान BJP को भी होगा जिसका RJD भरपूर फायदा उठाना चाहेगी।
हाल ही के दिनों में बिहार पर कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है और नीतीश सरकार इन दोनों से ही निपटने में बुरी तरह फेल साबित हुई है। बाढ़ से 10 लाख लोग प्रभावित हो गए हैं। इसी के साथ-साथ कोरोना को लेकर भी राज्य में सबसे कम testing हो रही है। testing और positive patients की दर भी राज्य में सबसे ज़्यादा है। कोरोना और बाढ़, ये दो मुद्दे बिहार चुनाव की दशा और दिशा तय करेंगे। ये बात और है कि ये दोनों ही मुद्दे मीडिया में headlines नहीं बना पाये हैं।
राज्य के सुशासन की पोल खुलकर रह गयी है। BJP बिहार के सबसे बड़े नेता और राज्य के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी नीतीश कुमार के चमचे बने बैठे हैं। इसी के साथ-साथ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय का भी कोई अता-पता नहीं है।
ऐसे में बिहार के वोटर्स के पास विकल्प क्या है? लोग उनसे राहत पाने के लिए अब RJD को भी वोट देना पसंद करेंगे, बेशक उन्हें RJD भी कितनी ही बुरी क्यों ना लगती हो। कभी माना जा रहा था कि जेल में जाने के बाद लालू और उनकी पार्टी RJD का सफाया होना तय है, लेकिन जब JDU को ही BJP जैसी पार्टी समर्थन करने लगे, तो लोग तो JDU से भागकर दोबारा RJD के पाले में जाने का ही समर्थन करेंगे।
RJD के नेता तेजस्वी यादव पहले ही मोर्चा संभाल चुके हैं। ANI को दिये हाल ही के बयान में यादव ने कहा “बिहार में बाढ़ आई है और नीतीश कुमार गायब हैं। वे इस आपदा के समय में लोगों की सहायता नहीं कर रहे हैं। गाँव के गाँव डूब गए हैं, और पिछले 125 दिनों से सीएम गायब हैं। लोग यहाँ मर रहे हैं”।
RJD अब नीतीश और JDU के खिलाफ लोगों में भरे गुस्से का भरपूर फायदा उठाना चाहती है। बिहार की राजनीति ऐसी हो गयी है कि लोगों को उन्हें वोट करना पड़ रहा है जिनसे उन्हें कम नफरत हो। पसंद, नापसंद छोड़िए, वोटर्स को कम निकम्मे, छोटे दर्जे के अपराधी और कम भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों को चुनना पड़ रहा है। यह लोकतन्त्र पर सबसे बड़ा धब्बा है।
30 साल के तेजस्वी यादव इन दिनों राजनीति में बेहद एक्टिव हो गए हैं। चुनावी साल में वे अपने आप को बाढ़ पीड़ितों के मसीहा के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। वे बाढ़ पीड़ितों को भोजन बाँट रहे हैं और JDU विरोधी लहर को एक अवसर के रूप में देख रहे हैं। बिहार राजनीति में बीजेपी जो गलती करने जा रही है, उसके ठीक उलट RJD बिलकुल सही दांव खेल रही है।
RJD का दोबारा सत्ता में आने का मतलब है लालू दोबारा राज्य की राजनीति में सबसे बड़े प्रभावी नेता बन जाएंगे, फिर चाहे सीएम कोई भी क्यों न हो। देश के सबसे ज़्यादा घनी आबादी वाले राज्य में लालू जैसे नेता का वर्चस्व पैदा होना देश के लोकतन्त्र के लिए कोई अच्छी बात तो बिलकुल नहीं है।
ऐसे में बिहार राजनीति में बस एक ही आशा दिखाई देती है, और वह है BJP द्वारा JDU का बहिष्कार! यह BJP के लिए भी फायदेमंद होगा और लोकतन्त्र के लिए भी। BJP के पास समय खत्म होता जा रहा है। राज्य और देश में लोकतन्त्र की भलाई के लिए BJP को जल्द से जल्द इस संबंध में बड़ा फैसला लेना ही होगा।