भारत ने हरित क्रांति के बाद से ही कृषि के क्षेत्र में अपनी जरुरत से अधिक उत्पादन करने की क्षमता पैदा कर ली थी। आज भारत इस मामले में इतना आत्मनिर्भर है कि यदि कुछ समय तक भारत में कृषि न हो तो भी भारत को अनाज की कमी नहीं होगी। यही कारण था की कोरोना वायरस की महामारी के दौरान भारत सरकार, आसानी से तीन माह तक के मुफ्त राशन की व्यवस्था, अस्सी करोड़ देशवासियों के लिए कर पाई थी। कृषि उत्पादन में इतनी वृद्धि के बाद भी, भारत के किसानों की आर्थिक उन्नति नहीं हुई। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में पर्याप्त मात्रा में कोल्ड स्टोरेज नहीं हैं जिसके कारण किसानो को अपनी फसल कटाई के तत्काल बाद बेचनी पड़ती है। इस समय उन्हें अक्सर उचित दाम नहीं मिलता लेकिन फसल ख़राब हो जाने के डर से उन्हें कम दाम पर ही फसल बेचनी पड़ती है।
इसी समस्या को खत्म करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी ने नई घोषणा की है। भारत ने बड़ा नीतिगत बदलाव किया है। अब सरकार का जोर फसल पैदा होने के पूर्व फर्टिलाइजर, खाद, बीज आदि में सब्सिडी देने के बजाए अधिक कोल्ड स्टोरेज बनाने पर होगा। इसके साथ ही किसानो को खेती के विकास के लिए लोन न मिलने की समस्या को भी समाप्त करने का प्रयास होगा। इसके तहत सहकारी समितियों के अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करवाने के लिए और स्टार्टअप के लिए भी माध्यम एवं दीर्घकालिक लोन उपलब्ध करवाए जाएंगे। इसके तहत 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। इन सभी प्रयासों का मुख्या उद्देश्य हर साल गोदामों में बर्बाद होने वाले अनाज की मात्रा को काम करना है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि किसान सीधे वेयरहाउस या अन्य स्थानों से जुड़ सकते हैं जो उन्हें अधिक मूल्य दे। साथी उन्होंने कहा कि इससे कृषि सेक्टर को बहुत लाभ होगा।
हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत का कृषि उत्पादन अगले तीन वर्षों तक बढ़ने वाला है ऐसे में इसी प्रकार की किसी योजना की तत्काल आवश्यकत थी। सरकार की योजना है कि इस वर्ष दस हजार करोड़ और अगले तीन वर्षो में भी इसी प्रकार दस हजार करोड़ रुपये कृषि सेक्टर में निवेश किया जाएगा। इस योजना में 12 पब्लिक सेक्टर बैंकों के साथ पहले ही MOU पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।
इसके पूर्व भी सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए फैसला किया था कि किसान अपनी उपज को किसी भी राज्य में बेच सकते हैं। इससे पहले नियम यह था की किसान सरकार द्वारा निर्धारित मंडियों में ही अपनी उपज बेच सकते थे, इसकी देखरेख के लिए इंस्पेक्टर होते थे। जमीनी स्तर पर यही नियम किसानों के शोषण का कारण बन गए क्योंकि किसानों को ऐसी मंडियों में खरीदारों और इंस्पेक्टरों की मिलीभगत के कारण उचित दाम नहीं मिल पाए थे।
सरकार ने स्टोरेज की व्यवस्था पर और किसानों की उपज को बाजार से सीधे जोड़ने के लिए बुनियादी सुविधाओं के लिए कार्य शुरू किया है। इससे कृषि सेक्टर में सरकारी नियंत्रण कम होगा जिससे इसके और तेजी से बढ़ने की संभावना है।