मध्य एशिया को “वैश्विक शतरंज” कहा जाता है और इस शतरंज पर चीन हावी होता दिखाई दे रहा है। कोरोना ने चीन को एक बार फिर से मध्य एशिया के देशों को ऋण जाल में फंसा कर लिलने का मौका दे दिया है और चीन इस मौके को भुनाने की जुगत में लग चुका है। वहीं मध्य एशिया के लोग चीन के खिलाफ खूब विरोध प्रदर्शन कर रहे। उन्हें डर है कहीं चीन कर्ज के जाल में फंसाकर उन्हें अपने फायदे के लिए न इस्तेमाल करे।
भूगोलविद् Halford Mackinder ने मध्य एशिया के बारे में कहा था, “वह जो मध्य क्षेत्र को नियंत्रित करता है वह दुनिया को नियंत्रित करता है।” कोरोना के बाद की दुनिया में मध्य एशिया के ऊपर चीन अपने प्रभाव और बढ़ाने जा रहा है। हाल ही में चीन ने 16 जुलाई को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सभी पांच मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों के साथ अपनी पहली बैठक की थी। इस दौरान चीन सभी देशों को कोरोना से संबन्धित सभी मामलों और अर्थव्यवस्था को फिर से उठाने में मदद का आश्वासन दिया था।
कोरोना के बाद पैदा हुई स्थिति में सिर्फ प्रभाव ही नहीं, बल्कि चीन इन देशों में मदद के नाम पर निवेश कर इन्हें अपने कर्ज जाल में डुबाने जा रहा है।
इसके दो प्रमुख कारण हैं:
पहला यह कि किसी भी देश में अभी मध्य एशिया के देशों में निवेश करने की क्षमता नहीं है। दूसरा कोरोना के कारण आए आर्थिक मंदी के कारण मध्य एशिया के देश आर्थिक तबाही से गुजर रहे हैं ऐसे में उनकी चीन के ऊपर निर्भरता और अधिक बढ़ चुकी है। इसी मौके का फायदा उठा कर चीन उस क्षेत्र में बढ़ रहे चीन विरोधी भावनाओं को कम करने की भरपूर कोशिश करेगा।
भले ही कोरोना की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था भी धीमी हुई है, लेकिन कर्जदाता के रूप में वह अभी भी सबसे आगे हैं। कोरोना से पैदा हुए आर्थिक मंदी और मध्य एशिया के देशों में आई मंदी का फायदा उठाने के लिए चीन पहले से ही तैयार बैठा है कि वह अपने BRI का इन देशों में विस्तार करे। चूंकि COVID-19 के मामले पूरे क्षेत्र में बढ़ रहे हैं, स्थानीय सरकारों का कुप्रबंधन भी सामने आ रहा। अस्पताल की खराब स्थितियां, दवाओं की जांच और पहुंच में कमी, और कुछ खराब स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, भ्रष्टाचार के बीच, आर्थिक समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। विश्व बैंक के अनुसार, इस वर्ष के अंत तक मध्य एशिया की GDP में 5.4 प्रतिशत तक गिरावट आएगी।
ऐसे में मध्य एशिया के देशों की GDP और अन्य आर्थिक संकेतकों में अपेक्षित गिरावट गंभीर आर्थिक स्थिति को को बता रहे है। इसके परिणामस्वरूप, मध्य एशिया के देशों को अपनी अर्थव्यवस्था बनाए रखने के लिए विदेशी निवेश और अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर हो चुके हैं।
कई संगठन जैसे यूरोपियन यूनियन मध्य एशिया के मदद के लिए सामने भी आए और कोरोना से लड़ने के लिए 3.4 मिलियन डॉलर के मदद की घोषणा भी की। परंतु आर्थिक मंदी से उबरने के लिए मध्य एशिया को अधिक मदद की आवश्यकता है। वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में चीन उन गिने चुने देशों में से है जो अभी भी बड़े स्तर के निवेश की क्षमता रखता है।
मध्य एशियाई देशों में चीन विरोधी लहर होने के बावजूद स्थानीय सरकारों के पास चीनी निवेश का स्वागत करने के अलावा कोई अन्य विकल्प भी नहीं है। एक तरफ जहां अमेरिका इस क्षेत्र से अपना ध्यान हटा चुका है तो वहीं, यूरोपियन यूनियन के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है जो चीन से टक्कर ले सके। वहीं रूस राजनीतिक क्षेत्र में तो प्रभाव रखता है लेकिन उसकी भी आर्थिक हालत खराब हो चुकी है और वह अपने देशों को ही सुधारने में लगा है। इसके अलावा किसी अन्य के पास चीन की तुलना में संसाधन नहीं है जो मध्य एशिया में जा कर निवेश कर सके। हालांकि, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान पहले से ही चीन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कर्ज संकट में फंस चुके हैं जबकि तुर्कमेनिस्तान लगभग पूरी तरह से चीन पर निर्भर है, जो उसके लगभग 80 प्रतिशत गैस निर्यात को खरीदता है। कई शोध भी यह दावा कर चुके हैं कि चीन विरोधी लहर के बावजूद मध्य एशिया के देश चीनी प्रोजेक्ट्स को ना नहीं करेंगे।
मध्य एशिया के देश पहले से ही चीनी कर्ज में डूबे हुए हैं। चीन ने पहले कोरोना फैलाया और अब उसके बाद आई आर्थिक मंदी का इस्तेमाल इन देशों को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए कर रहा है। BRI सी जुड़ने के बाद कई देशों ने चीन से कर्ज लिया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, किर्गिस्तान ने अपने कुल कर्ज़ का 41 प्रतिशत हिस्सा चीन से लिया है, तो वहीं ताजिकिस्तान के कुल कर्ज़ का 53 प्रतिशत हिस्सा चीन से उधार लिया हुआ है।
किर्गिस्तान की बात करें तो वर्ष 2008 में उसपर चीन का कर्ज़ महज़ 9 मिलियन था, जो वर्ष 2017 में बढ़कर 1.7 बिलियन हो गया। 1.7 बिलियन किर्गिस्तान की जीडीपी का 24 प्रतिशत है। किर्गिस्तान इस हद तक कर्ज़ में डूब गया है जहां से उबर पाना उसके लिए बहुत मुश्किल होने वाला है। किर्गिस्तान पर 4 बिलियन डॉलर का कर्ज़ हो गया है, जबकि उसकी जीडीपी महज़ 7 बिलियन डॉलर की है।
हालांकि, इन सभी देशों की जनता को चीन की विस्तारवादी नीतियों के बारे में पता है और वे समय-समय पर अपना विरोध प्रदर्शन भी करते रहे हैं। पिछले वर्ष कज़ाकिस्तान में चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। इन देशों में विरोध प्रदर्शन ही नहीं वहाँ की जनता चीनी नागरिकों पर हमले भी करती रहती है। अब चीन ने फिर से कोरोना का इस्तेमाल कर इन देशों को कर्ज में डुबाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया है। इससे लोगों में चीन के खिलाफ नाराजगी और बढ़ने की उम्मीद है।