इस समय नेपाल जैसी दयनीय स्थिति शायद ही किसी राष्ट्र की होगी। एक तरफ कोरोना वायरस के कारण इस देश में त्राहिमाम मचा है तो दूसरी तरफ बाढ़ के कारण लाखों लोगों के जान माल को तगड़ा नुकसान भी पहुंचा है। इतना ही नहीं, अब चीन धीरे-धीरे करके नेपाल भू-क्षेत्र पर कब्जा जमा रहा है और नेपाल के राष्ट्राध्यक्ष केपी शर्मा ओली इस तरह बैठे हैं, मानो अब तक कुछ हुआ ही नहीं।
नेपाल में सात ऐसे जिले पाये गए हैं, जो चीन की साम्राज्यवादी नीति को अपने आँखों से सच होता हुआ देख रहे हैं। डीएनए अख़बार की एक रिपोर्ट के अनुसार, “नेपाल के ये 7 जिले हैं दोलखा (Dolakha), गोरखा (Gorkha), धारचुला (Darchula), हुमला( Humla) , सिंधुपालचौक (Sindhupalchowk), संखुआसभा (Sankhuwasabha) और रसूवा (Rasuwa)। नेपाल के सर्वेक्षण एवं मैपिंग विभाग के अनुसार दोलखा जिले में चीन ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा को 1.5 किलोमीटर तक आगे बढ़ाया है। इसके अलावा चीन ने दोलखा के कोरलांग क्षेत्र में बाउंडरी पिलर नंबर 57 को नेपाल की तरफ और आगे बढ़ा दिया है। चीन ने नेपाल सरकार पर इस विषय में कुछ भी एक्शन न लेने का दबाव डाला है इसीलिए नेपाल सरकार ये सब जानने के बाद भी कुछ नहीं कर रही है।”
इस रिपोर्ट में आगे बताया गया, “बात केवल बॉर्डर क्षेत्रों तक ही नहीं सीमित है, बल्कि रिहायशी इलाकों पर भी कब्जा जमाया गया है। मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दरचूला के जिऊजिऊ गाँव के एक पूरे हिस्से को ही चीन ने अपने नियंत्रण में ले लिया है।” ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन अब नेपाल पर भी तिब्बत की भांति कब्जा जमाने के अभियान पर बढ़ चुका है।
हालांकि, ये नेपाल के लिए कोई नई बात नहीं है। जून में भारतीय न्यूज़ एजेंसी एएनआई को प्राप्त एक जानकारी के अनुसार, नेपाली कृषि मंत्रालय के सर्वे विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कई ऐसे खुलासे किए हैं, जिससे नेपाली जनता काफी चिंतित और क्रोधित हो सकती है। सर्वे विभाग की इस रिपोर्ट के अनुसार 11 जगहें प्रशासन द्वारा चिन्हित की गईं, जिनमें से 10 क्षेत्रों पर चीन ने कब्जा कर लिया है। चीन ने नेपाल की कुल 33 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा जमा लिया है ।
पर बात यहीं पर खत्म नहीं होती। इन क्षेत्रों के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि, चीन इन क्षेत्रों में अपनी नदियों का पानी divert कर रहा है, जिससे न सिर्फ ये क्षेत्र बंजर होकर तिब्बत की भांति दिखने लगे, बल्कि चीन द्वारा कब्जे के लिए भी मार्ग प्रशस्त करे। इस रिपोर्ट में कहा गया, “यदि नदियों को डाइवर्ट करने की प्रक्रिया जारी रही, तो सैकड़ों हेक्टेयर की भूमि तिब्बत में चली जाएगी। ऐसे में चीन द्वारा बॉर्डर ऑबसर्वेशन पोस्ट बनाने का काम और आसान हो जाएगा।”
तिब्बत के निर्वासित राष्ट्राध्यक्ष लोब्सांग सांगे ने नेपाल को चीन की साम्राज्यवादी नीतियों के बारे में जून में ही चेतावनी दे दी थी। न्यूज़ एजेंसी WION से बातचीत करते हुए निर्वासित तिब्बती राष्ट्रपति लोब्सांग सांगे ने बताया , “जिस तरह से तिब्बत पर कब्जा हुआ है, उसी तरह अब नेपाल के साथ हो रहा है। पहले उन्होंने सड़क बनाते हुए कहा था कि तिब्बत का विकास होगा और जैसे ही सड़क बनी, तो वे ट्रक, टैंक, बंदूक इत्यादि ले आए और हमारे देश पर कब्जा जमा लिया।”
लोब्सांग सांगे गलत भी नहीं है। तिब्बत को चीन ने वैसे ही लुभाया था जैसे वह अभी Nepal को लुभा रहा है। चीन ने 1950 के दशक में तिब्बत पर ज़बरदस्ती कब्जा जमाते हुए उसे अपना क्षेत्र बना लिया था। अभी हाल ही में चीन ने रुई नामक नेपाली गांव पर कब्जा जमा लिया है और वहाँ से सभी नेपाली भाषा वाले साइनबोर्ड हटा दिये हैं। लेकिन अब जिस तरह से एक-एक करके नेपाल के सभी अहम क्षेत्रों पर कब्जा जमाया जा रहा है, उससे एक बात तो स्पष्ट है – नेपाल का तिब्बतीकरण शुरू हो चुका है. यदि नेपाली प्रशासन समय रहते होश में नहीं आई, तो आने वाले भविष्य में लोग इतिहास में ये भी पढ़ेंगे, “कभी एक राष्ट्र हुआ करता था जिसका नाम नेपाल था।”