डोगरा समुदाय एवं संस्कृति
हाल ही में केंद्र सरकार ने एक ऐसा निर्णय लिया है जो जम्मू कश्मीर की राजनीति का कायाकल्प करने में सक्षम है। बरसों तक उपेक्षित रहे जम्मू क्षेत्र के डोगरा संस्कृति समुदाय की कथाएँ और उनके इतिहास को अब केंद्र सरकार उतनी ही तत्परता से देश को बताएगी, जितनी तत्परता से पूर्ववर्ती सरकारों ने कश्मीर के इतिहास का बखान किया था।
न्यूज़ एजेंसी WION की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने जम्मू में सितंबर के अंत तक एक मेगा मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट को लांच करने का निर्णय लिया है, जिसकी लागत 10 करोड़ रुपये होगी। ये मल्टिमेडिया प्रोजेक्ट एक लाइट एण्ड साउंड शो होगा, जो कश्मीर राज्य के डोगरा शासक, उनकी संस्कृति और उनके इतिहास से देश- दुनिया को अवगत कराएगा।
जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पर्यटन विभाग से जुड़े अभियन्ताओं में से एक ने बताया, “इस शो का प्रमुख केंद्र डोगरा शासन , डोगरा संस्कृति और उनका वैभवशाली इतिहास होगा।” WION की रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 400 लोग प्रतिदिन इस शो को जम्मू के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल, बाग-ए-बाहु में, हिन्दी में देख पाएंगे। बता दें कि, बाग-ए-बाहु और बाहु दुर्ग का निर्माण सम्राट बाहुलोचन ने किया, जो अग्निगर्भ सूर्यवंशी वंश के सम्राट और प्रथम डोगरा नरेश, सम्राट जम्बूलोचन के पुत्र थे। जम्मू का नाम सम्राट जम्बुलोचन के नाम पर ही पड़ा था।
लेकिन डोगरा वंश के इतिहास और संस्कृति के लिए इस प्रकार से काम करने की आवश्यकता आखिर क्यों आन पड़ी? दरअसल स्वतंत्रता के बाद से ही जम्मू और कश्मीर राजनीति प्रमुख तौर पर कश्मीर और वहाँ रह रहे मुस्लिम समुदाय के हितों पर ही केन्द्रित थी। हिन्दू बहुल जम्मू और उसके डोगरा शासकों एवं बौद्ध बहुल लद्दाख क्षेत्र को मानो गैर ही समझ लिया गया था। यहाँ तक कि, सिख और मुस्लिम डोगरा समुदाय के लोगों को भी कश्मीरियत के नाम पर मूर्ख बनाया जाता था।
70 वर्षो तक डोगरा संस्कृति को कांग्रेस से दबाये रखा
काँग्रेस और यूपीए गठबंधन के 70 वर्षों के शासन में डोगरा समुदाय को अपने अधिकारों के लिए कई बार मोर्चा भी निकालना पड़ा है। अधिकतर लोग तो अपमान और जान की सुरक्षा के कारण अपनी बात बोलने से भी कतराते थे, क्योंकि 1990 में कश्मीर घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडित के साथ हुए अत्याचारों के कारण कई लोग डर भी गए थे। इसके अलावा दिल्ली में नेहरू-गांधी परिवार और कश्मीर में अब्दुल्लाह परिवार के गठजोड़ ने मानो जम्मू-कश्मीर की नीतियों को केवल कश्मीर तक ही सीमित कर दिया था।
अब इन नेताओं को यह समझना होगा कि जम्मू एवं कश्मीर केवल श्रीनगर, अनंतनाग जैसे कुछ जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि जम्मू के निवासियों का भी इस क्षेत्र पर समान अधिकार है। इसीलिए वर्तमान सरकार ने 2019 में एक क्रांतिकारी निर्णय में अनुच्छेद 370 के सभी विशेषाधिकार संबंधी प्रावधानों को निरस्त करते हुए जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित कर दिया था। मोदी सरकार यह भली भांति जानती है कि यदि जम्मू-कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाना है, तो फिर लोगों को उसके वास्तविक इतिहास से भी अवगत कराना होगा और इसके लिए सरकार ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
डोगरा वंश कोई छोटा-मोटा वंश नहीं है, बल्कि इस्लामिक आक्रांताओं के चंगुल से कश्मीर प्रांत को मुक्त कराने के लिए सिख योद्धाओं के साथ उन्होंने अनेकों युद्धों में भाग लिया। केंद्र सरकार के इस निर्णय से निस्संदेह अन्याय के इस कुचक्र से जम्मू क्षेत्र, विशेषकर डोगरा समुदाय के लोगों को मुक्ति मिलेगी और सालों से यह समुदाय जिस सम्मान से वंचित है वह भी उसे वापिस मिल सकेगा।