वैश्विक सप्लाई चेन में चीन का वर्चस्व सर्वविदित है। बहुत कम लोग जानते हैं कि चीन के ऊपर केवल अमेरिका और यूरोप की मल्टीनेशनल कंपनियाँ ही निर्भर नहीं रही है। बहुत हद तक जापान जैसे देशों को भी चीन पर निर्भर रहना पड़ा है। समृद्ध होने के बावजूद जापान जैसे देशों को अधिकांश उत्पादन के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ता था परंतु अब और नहीं। अब जापान ने चीन के उत्पादन हब बनने के सपने को चकनाचूर करने के लिए अपना ब्रह्मास्त्र चलाया है, जिससे चीन न सिर्फ बुरी तरह डरा हुआ है बल्कि चीन में इस बात पर बहस भी छिड़ चुकी है।
चीन की औपनिवेशिक मानसिकता और अन्य देशों के साथ उसके बार्डर विवाद को देखते हुए जापान ने तय किया है कि अब उत्पादन के लिए वह किसी भी स्तर पर चीन पर निर्भर नहीं रहने वाला है। इसके लिए जापान ने बहुत पहले से ही तैयारियां कर ली थी लेकिन अभी जो समीकरण सामने आ रहे हैं, उससे स्पष्ट हो चुका है कि किस प्रकार से जापान ने चीन के विरुद्ध आर्थिक मोर्चे पर निर्णायक युद्ध छेड़ने का निर्णय कर लिया है।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार जापान ने चीन में स्थित कंपनियों को निकालने और उन्हें वापस जापान में या फिर दक्षिण पूर्वी एशिया के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिए एक बार फिर अच्छी-ख़ासी रकम देने का ऐलान किया है। रिपोर्ट के अनुसार करीब 630 मिलियन अमेरिकी डॉलर के इस नए पैकेज की घोषणा के पश्चात कई कंपनियाँ या तो वापस जापान आने को तैयार है या फिर वियतनाम जैसे उद्योग प्रधान देश में स्थानांतरित होने को तैयार है। ऐसे में चीन के लिए ये किसी आपदा से कम नहीं होगा।
रिपोर्ट के एक अंश के अनुसार, “चीन जापान का सबसे ट्रेडिंग पार्टनर है और जापान चीन का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है, लेकिन जिस तरह से जापानी सरकार ने अपने इरादे स्पष्ट किए हैं, उसके कारण अब चीन को भी चिंता होने लगी है। वैसे उक्त कंपनियों का हिस्सा चीन में जापानी निवेश का 1 प्रतिशत है, जिससे तुरंत कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन यदि यह ट्रेंड ऐसे ही चलता रहा तो चीन की अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान हो सकता है”।
नैनजिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लिउ झिबियाओ ने एक अन्य पहलू पर भी प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे यह निर्णय चीन की स्थानीय सरकारों के लिए बेइज्जती से कम नहीं होगा। लिउ के अनुसार, “हम जानते हैं जापानी सरकार ये कदम क्यों उठा रही है। लेकिन यदि जापानी सरकार से प्रेरित हो अन्य विदेशी कंपनियों ने ऐसा कदम उठाया, तो हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।“ प्रोफेसर लिउ का यह बयान और साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट का विश्लेषण ये बताने के लिए काफी है कि जापान के इस कदम है से चीन किस कदर तक डरा हुआ है।
परंतु चीन को किस बात का भय है? दरअसल, वुहान वायरस के कारण आधे से अधिक संसार का विश्वास चीन के ऊपर से बहुत पहले ही उठ चुका है। इसके अलावा चीन के आयात और निर्यात दोनों इस समय रसातल में है। भारत और अमेरिका जैसे देश पहले ही चीन को वैश्विक सप्लाई चेन से धक्के मारकर निकालने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं, जिसके लिए भारत ने चीनी उत्पादों पर रोक लगाकर और 101 से अधिक चीनी एप प्रतिबंधित कर भारत ने एक शानदार शुरुआत भी की है। अब जापान द्वारा आर्थिक पैकेज की घोषणा और SHARP जैसी कंपनियों का उत्पादन वियतनाम शिफ्ट करना चीन के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं है।
सच कहें तो केवल वुहान वायरस ही एक कारण नहीं है जिसके लिए जापान को ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं। वुहान वायरस की आड़ में चीन जिस तरह से अपने साम्राज्यवादी ख्वाबों को पूरा करने में लगा हुआ है, उससे जापान भी अछूता नहीं है। जापान के सेंकाकू द्वीप पर चीन ठीक उसी तरह दावा ठोंक रहा है जैसे भारत के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र पर। इसीलिए आम तौर पर शांति का प्रतिबिंब माने जाने वाले जापान को भी आक्रामक रूख अख़्तियार करना पड़ा है। जापान की आक्रामकता के पीछे एक और कारण यह भी है कि चीन द्वारा उत्पन्न वुहान वायरस के कारण उन्हे अपने बहुप्रतिष्ठित टोक्यो ओलंपिक एक वर्ष के लिए स्थगित भी करने पड़े हैं।
लेकिन जापान ने ये कदम जल्दबाज़ी में नहीं उठाया है, बल्कि इसके पीछे एक सुनियोजित योजना थी, जिसे जापान अब सफलतापूर्वक अंजाम दे रहा है। उदाहरण के लिए जापान ने आर्थिक मोर्चे पर चीन के विरुद्ध आक्रामक होते हुए अप्रैल माह में ही अपने कंपनियों के लिए 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के विशेष पैकेज की घोषणा की थी। ये पैकेज उन जापानी कंपनियों अथवा विदेशी कंपनियों को मिलेगा, जो चीन से निकलकर जापान आएंगी।
जापान ने उन सभी कंपनियों को आर्थिक पैकेज देने की बात कही है, जो या तो जापान में अपना ऑपरेशन शिफ्ट करना चाहती हैं या फिर चीन से बाहर लेकिन जापान को छोड़कर किसी अन्य देश में अपना ऑपरेशन शिफ्ट करना चाहती हैं। चीन में अभी कोरोना के कारण अधिकतर उत्पादन ठप पड़ा है जिसके कारण जापान में कुछ चीजों की भयंकर कमी हो गयी है। चीन जापान का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और ऐसे में जापान चीन में ठप पड़े उत्पादन को ज़्यादा दिनों तक नहीं सह सकता है। भविष्य में कभी ऐसी कोई परेशानी सामने ना आए, इसीलिए जापान ने चीन को झटका देने वाला यह फैसला लिया है।
इसके अलावा JAPAN ने अपने देश के वित्तीय संस्थानों में चीन का प्रभाव कम करने के लिए युद्धस्तर पर काम करना प्रारम्भ कर दिया है। उदाहरण के लिए मई माह में चीन के जाने-माने उद्योगपति जैक मा को अब जापान की बहुप्रतिष्ठित कंपनी सॉफ्टबैंक के board of directors से इस्तीफा देना पड़ा। सॉफ्टबैंक कंपनी को हो रहे लगातार बड़े नुकसान के बीच जैक मा को बैंक के बोर्ड से बाहर होना पड़ा, वे पिछले 13 वर्षों से बैंक से जुड़े थे।
यही नहीं, भारी कर्ज के बोझ तले सॉफ्टबैंक ने जैक मा के इस्तीफे की कोई वजह अब तक नहीं बताई है। हालांकि, कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सॉफ्टबैंक के joint venture “wework” के जोखिमपूर्ण निवेश को लेकर जैक मा ने इस्तीफा दिया है। यह जाइंट वैंचर सॉफ्टबैंक के लिए लगातार नुकसान अर्जित कर रहा था। हालांकि, जैक मा इकलौते ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने बैंक के बोर्ड से इस्तीफा दिया है और बाकी के 10 सदस्य अब भी बैंक के बोर्ड में मौजूद हैं।
पर ये कथा केवल JAPAN तक ही सीमित नहीं है। दक्षिण कोरिया और ताइवान ने भी इस नेक काम में हाथ बंटाने का निश्चय किया है। दक्षिण कोरिया की विश्व प्रसिद्ध टेक कंपनी सैमसंग ने अपना उत्पादन आधिकारिक तौर पर चीन से बाहर शिफ्ट करने का निर्णय लिया है, जिससे चीन को राजस्व में अच्छा-खासा नुकसान मिलना तय है। ऐसे में CHINA को अब जापान आर्थिक मोर्चे पर पटक-पटक के धोने के लिए पूरी तरह तैयार है।