BJP को अक्सर ऊंची जात और ऊंचे दर्जे के लोगों की पार्टी कहा जाता रहा है, जिसे अक्सर शहरी लोगों के वोट्स ही मिलते हैं। हालांकि, पिछले कुछ सालों में, जब से अमित शाह और नरेंद्र मोदी को पार्टी के नेतृत्व का मौका मिला है, पार्टी के चरित्र में बड़ा बदलाव आया है। पश्चिम बंगाल में अब भाजपा अपने पारंपरिक वोटर बेस से हटकर अलग या कहिए ठीक विपरीत वोट बैंक को आकर्षित करने के अभियान में जुटी है।
बंगाल में BJP OBC, SC और ST की पार्टी बनकर उभर रही है। इन्हीं वोटर्स के समर्थन से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में बंगाल में पार्टी को 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। राज्य के ग्रामीण, पश्चिमी और उत्तरी इलाकों में भाजपा को बढ़त हासिल हुई थी।
पश्चिम बंगाल में राजनीति पर मुख्यतः भंद्रलोकों का प्रभुत्व रहा है। भंद्रलोकों में मुख्यतः ब्राह्मण, बैद्य और कायस्थ जाति आती हैं। राज्य की कुल आबादी में इन जातियों का योगदान केवल 20 प्रतिशत है, लेकिन फिर भी हर पार्टी के राज में यहाँ इन्हीं जातियों से संबन्धित किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाता है। OBC, SC और ST को कभी राजनीति में ऊंचा स्थान नहीं मिल पाया। कम्युनिस्ट शासकों ने कभी इन जातियों के लोगों का उत्थान करने का विचार नहीं किया।
जब मण्डल कमीशन की रिपोर्ट में अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करने की मांग उठाई गयी, तब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु ने कहा था, “पश्चिम बंगाल में सिर्फ दो ही जाति हैं- अमीर और गरीब”! बसु कभी भारतीय समाज की सच्चाईयों को समझ ही नहीं पाये, जहां “क्लास से ज़्यादा कास्ट” महत्वपूर्ण समझी जाती है। इस वजह से राज्य की राजनीति में भद्रलोकों का ही दबदबा रहा।
पिछले 9 सालों के ममता राज में भी मुस्लिमों के तुष्टीकरण के अलावा पिछड़ी जातियों के लिए कुछ नहीं किया गया। राज्य में OBC के लिए कुल 17 प्रतिशत आरक्षण लागू है, जिसमें से 10 प्रतिशत कोटा मुस्लिमों के लिए आरक्षित है। हिन्दू OBC राज्य के कुल OBC के आधे हैं, फिर भी उनके हिस्से में मुस्लिमों से कम आरक्षण आता है। इसके अलावा राज्य में SC के लिए 22 प्रतिशत आरक्षण और ST के लिए 6 प्रतिशत आरक्षण मौजूद है।
ऐसे में अब BJP हिन्दू OBC वोटर्स के सहारे सत्ता में आना चाहती है। वर्ष 2010 की शुरुआत से RSS ने लगातार बिना थके राज्य में काम किया है, और खासकर उन हिस्सों में जहां SC और ST समुदाय का प्रभाव है। मौजूदा बंगाल BJP अध्यक्ष दिलीप घोष भी गैर–भद्रलोक जाति से संबंध रखते हैं।
जब से घोष पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, तब से पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है, फिर चाहे वह वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव हों, या फिर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव! वर्ष 2019 में BJP को TMC के मुक़ाबले केवल 3 प्रतिशत कम यानि 40.64 प्रतिशत वोट्स मिले थे। पार्टी ने अधिक संख्या में हिन्दू OBC लोगों को मैदान में उतारा था। इन लोगों को पारंपरिक तौर पर राजनीति से दूर ही रखा गया था।
भाजपा ने शुरू से ही टीएमसी पर हिन्दू OBC नागरिकों को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया है। अब भाजपा ने इसे अपने अवसर के तौर पर देखा है। OBC पुरुलिया, झारग्राम, हुघली, कृष्णनगर, बालुरघाट, बंकुरा और मिदनापुर जैसी लोकसभा सीटों पर प्रभाव में हैं, और कृष्णनगर को छोड़कर BJP को बाकी सभी सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
राज्य की कुल आबादी में 29 प्रतिशत योगदान देने वाले OBC, SC और ST समुदाय के अलावा BJP राज्य के नामशूद्र दलितों को भी आकर्षित करने में लगी है। पिछले चुनावों में इस समुदाय के लोगों ने भी BJP को वोट किया था। ऐसे में लगता है कि भद्रलोकों के दबदबे वाले कोलकाता शहर को BJP ने TMC के लिए छोड़ दिया है। वर्ष 2021 के चुनावों में पश्चिम बंगाल में दबी-कुचली आवाज़ों और पिछड़ों को उनकी आवाज़ मिलने जा रही है। लेफ्ट और TMC ने पिछले कुछ सालों में राज्य की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है। ऐसे में राज्य में सत्ता परिवर्तन ही विकास का एकमात्र रास्ता दिखाई देता है।