अमेरिका, फ्रांस, रूस और भारत- डीयर तुर्की! तुमने इन बड़े देशों से पंगा लिया, अब अंजाम के लिए तैयार रहो

दुनिया के सभी बड़े देशों के टार्गेट पर आया तुर्की!

तुर्की

तुर्की के इस्लामिस्ट राष्ट्रपति और खलीफा बनने के सपने देखने वाले रेसेप तैयप एर्दोगन तुर्की को एक ऐसी खाई में धकेल रहे हैं जहां तुर्की की बर्बादी निश्चित है। एर्दोगन की खलीफा बनने की महत्वाकांक्षाओं के कारण तुर्की के विश्व में कई दुश्मन पैदा हो चुके हैं। आने वाले दिनों में तुर्की को एक गहरे संकट का सामना करने करना पड़ सकता है, जिसका उसे अंदाजा भी नहीं है। फ्रांस, रूस, भारत, यूएई, अमेरिका और तुर्की के पूर्वी भूमध्यसागरीय देश- इज़राइल, मिस्र, ग्रीस और साइप्रस, तथा सभी प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियां तुर्की के लगातार उकसावे से परेशान हो चुकी हैं और इन देशों का गुस्सा कभी भी एक साथ तुर्की पर फूट सकता है।

तुर्की ने जिस तरह से अपने पड़ोसी देशों के जल क्षेत्र पर दावा कर उन्हें उकसाने का काम किया है, उसके कारण पूर्वी भूमध्य सागर के ग्रीस और साइप्रस जैसे देश अब तंग आ चुके हैं। तुर्की पूर्वी भूमध्य क्षेत्र में व्यापक समुद्री क्षेत्र और संसाधनों की खोज के नाम पर जल क्षेत्र पर अपना प्रभाव उसी तरह दिखाने की कोशिश कर रहा है जिस तरह से दक्षिण चीन सागर में चीन करता है।

बता दें कि ग्रीस ने इटली और मिस्र के साथ EEZ समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद UN Convention on the Law of the Sea यानि UNCLOS पूर्वी भूमध्य सागर में लागू हुआ और ग्रीस ने इस क्षेत्र में अपने वैध Exclusive Economic Zone को स्थापित किया।

इस बीच, फ्रांस और यूएई भी ग्रीस द्वारा अपने EEZ पर दावों के समर्थन में आ गए। कुछ हफ़्ते पहले, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने पूर्वी भूमध्य सागर में नौसेना की तैनाती बढ़ाने का फैसला किया था, तथा तुर्की को विवादित क्षेत्र में अपने शोध कार्य को तुरंत रोकने के लिए कहा था।

यही नहीं फ्रांस ने उस क्षेत्र में तुर्की की वर्चस्वता और साइप्रस और ग्रीस के लिए बढ़ते खतरे को कम करने के लिए दो राफेल फाइटर जेट और एक नौसैनिक फ्रिगेट‘Lafayette’ भी भेजा दिया था।

प्राकृतिक गैस भंडार के मुद्दे पर तुर्की के साथ बढ़ते संघर्ष के बीच ग्रीसने पूर्वी भूमध्य सागर में फ्रांस, इटली और साइप्रस के साथ सैन्य अभ्यास शुरू करने का ऐलान किया हैं, जिसमें यूएई भी शामिल हो रहा है। तुर्की ने इस पर आपत्ति जताई है लेकिन उसकी आपत्ति के बावजूद फ्रांसीसी रक्षा मंत्री फ्लोरेंस ने ट्वीट कर इस सैन्य अभ्यास की  जानकारी दी और कहा, “हमारा संदेश सरल है: संवाद, सहयोग और कूटनीति को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि पूर्वी भूमध्यसागरीय स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान का क्षेत्र बना रहे।”

तुर्की से सिर्फ पश्चिमी देशों को ही नहीं बल्कि मुस्लिम देशों को भी खतरा पैदा हुआ है। इसी खतरे को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात ने मुकाबला करने के लिए कुछ प्रारंभिक कदम भी उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यूएई वायु सेना अपने चार एफ -16 युद्धक विमानों को Hellenic Air Force के साथ संयुक्त प्रशिक्षण के लिए ग्रीक द्वीप क्रीट में भेज रही है।

यही नहीं यहूदी देश इजरायल भी तुर्की को अपना सबसे बड़ा खतरा मान चुका है। इजरायल साइप्रस से ग्रीस और यूरोप के माध्यम से गैस स्थानांतरित करने वाली पाइपलाइन डील EastMed में एक प्रमुख भागीदार है। 1,900 किलोमीटर लंबी यह गैस पाइपलाइन परियोजना यूरोप को पूर्वी भूमध्यसागरीय बेसिन गैस क्षेत्रों से जोड़ती है और इसे तुर्की के बढ़ते विस्तारवाद से स्पष्ट खतरा है।

इजरायल तुर्की को निपटाने के लिए अब पहले से अधिक तैयार है, क्योंकि इस देश की खुफिया एजेंसी मोसाद अब अंकारा को सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा मान चुकी है न कि ईरान को। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच संबंधों में भी खटास आ गई है क्योंकि एर्दोगन  अल-अक्सा मस्जिद को यहूदी देश इजरायल से “आजाद” करना चाहता है, जो कि यहूदियों और मुसलमानों दोनों के लिए एक पवित्र स्थल है। इसके अलावा, एर्दोगन  फिलिस्तीन में HAMAS जैसे आतंकवादी संगठनों का भी समर्थन करते हैं, जो इजरायल को पसंद नहीं है।

तुर्की के कारनामों को देखते हुए अब तो अमेरिका भी पूर्वी भूमध्य सागर में चल रहे इस विवाद में कूदता दिख रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने हाल ही में क्षेत्र में तनाव को कम करने के लिए अपने तुर्की समकक्ष Mevlut Cavusoglu को चेतावनी दी थी। उन्होंने बातचीत के दौरान Cavusoglu को “पूर्वी भूमध्य सागर में तनाव को कम करने की तत्काल आवश्यकता” पर जोर दिया था।

यही नहीं जब तुर्की ने हमास के दो नेताओं की मेजबानी की, तब ट्रम्प प्रशासन ने कड़ी आपत्ति जताई और उसे अलग-थलग करने की चेतावनी भी दी। बता दें कि हमास आतंकवादी समूह है जो इजरायल में कई आतंकी घटनाओं में शामिल रहा है।

पूर्वी भूमध्य सागर में अपने पड़ोसियों और फ्रांस से घिरने के बाद लीबिया से भी उसके लिए बुरी खबर है और रूस लगातार तुर्की को चोट दे रहा है। यह भी कहा जा रहा है रूस ने लीबिया में या तो S-300 या S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की तैनाती की है जो तुर्की समर्थित सेना को को धूल चटा सकता है।

तुर्की का इस तरह चारों ओर से घिरना निश्चित था क्योंकि एर्दोगन न केवल पूर्वी भूमध्यसागर में गुंडई कर रहे हैं और त्रिपोली में एक उच्च इस्लामी शासन का समर्थन कर रहे हैं, बल्कि वह प्राचीन चर्चों से बने संग्रहालय को ओटोमन मस्जिदों में बदल करक पश्चिम और ईसाई जगत को नीचा दिखाने का काम कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए इस्तांबुल के हागिया सोफिया संग्रहालय को देखा जा सकता है।

यूरोप, अमेरिका और पश्चिम एशिया के अलावा, एर्दोगन ने भारत को भी अपने खिलाफ कर लिया है। हालिया खुफिया रिपोर्टों से यह खुलासा हुआ है कि तुर्की पाकिस्तान के बाद भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो भारत में कट्टरपंथ फैला रहा है और उन संगठनों को फंड कर रहा है जो भारत विरोधी रुख अपनाते हैं। पिछले साल भी, खलीफा के सपने देखने वाले एर्दोगन ने अनुच्छेद 370 निरस्त करने पर पाकिस्तान का पक्ष लिया था।

इस कारण से अब नई दिल्ली भी तुर्की को सबक सिखाने के लिए कड़े आर्थिक उपायों के साथ-साथ सभी रणनीतिक उपायों को लागू करने के विकल्प तलाश रही है।

जिस तरह से एर्दोगन के कदम बढ़ रहे हैं, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे ओटोमन शासन के साथ उस दौरान की क्रूरता को भी वापस लाना चाहते हैं। परंतु अब सभी देश तुर्की के खिलाफ दिखाई दे रहे हैं जिससे यह देश कूटनीतिक मोर्चे पर अलग थलग पड़ चुका है। अब तो पश्चिम देशों के साथ-साथ अरब के मुस्लिम देश भी तुर्की से चिढ़ चुके हैं। केवल पाकिस्तान जैसा अप्रासंगिक देश इसके समर्थन में दिखाई दे रहा हैं, जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई महत्व नहीं है। इन परेशानियों के बीच तुर्की की अर्थव्यवस्था पहले से भी और ज़्यादा ख़राब हो चुकी है। अब यह कहा जा सकता है कि तुर्की के बुरे दिन अब शुरू हो चुके हैं जिसके बाद इस देश के लिए सिर्फ और सिर्फ अंधेरा ही है।

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