जापान और चीन के बीच विवाद ने गंभीर मोड़ ले लिया है। हाल ही में चीन की मछली पकड़ने वाली नौकाओं ने जापान की सीमा में अनाधिकार प्रवेश किया है। जिसके बाद जापान की ओर से चीन को चेतावनी देते हुए जापान के रक्षा मंत्री ने कहा की “जो भी status quo में बलपूर्वक बदलाव की कोशिश करेगा उसे इसकी कीमत चुकाने पर मजबूर किया जाएगा।” साथ ही उन्होंने कहा कि “एक स्वतंत्र और खुला दक्षिणी चीन सागर, किसी अन्य स्थान जितना ही महत्वपूर्ण है और वहां होने वाली घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय है।“
जापान चीन की दक्षिणी चीन सागर में चलने वाली गतिविधियों को लेकर अन्य देशों की तरह मुखर नहीं रहा लेकिन अब जापान ने भी इस पर खुलकर बयान दिया है। बीजिंग ने अपनी मछली पकड़ने वाली नौकाओं को दो विवादित द्वीपों Diaoyu Islands और Senkakus में मछली पकड़ने की छूट दे दी है। इसी कारण ये जहाज वहाँ गए। जापान ने भी विवादित स्थल पर चीन की घुसपैठ के बाद अपनी सेना को अलर्ट पर रखा है। यह पहला मौका नहीं है जब इन द्वीपों को लेकर जापान और चीन के बीच विवाद हुआ है। हाल ही में जब जापान ने द्वीप के status में बदलाव किया था तो भी बीजिंग ने इसपर अपनी आपत्ति जताई थी।
दक्षिणी चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीति नई नहीं है। वस्तुतः इस क्षेत्र का हर देश इससे परेशान है। चीन अपने ही बनाए नक्शे के अनुसार इस क्षेत्र को परिभाषित करता है, ऐसे नक्शों को किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा मान्यता नहीं है। चीन इस क्षेत्र में अपनी संप्रभुता के दावे करता है जो विवाद का कारण हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जापान के पास टकराव को टालने के सीमित विकल्प हैं, क्योंकि चीन के मछुआरों को चीन की नौसेना सुरक्षा देती है। किंतु जापान के रुख के बाद अब चीन यह विवाद न बढ़ाए तो उसके लिए भी बेहतर होगा। अगर चीन इसी प्रकार से अपने जहाजों को विवादित क्षेत्र में उतारेगा तो स्थिति के बिगड़ने की संभावना है।
बता दें कि जापान के कोस्ट गार्ड्स को वैसे ही तीन मोर्चों पर निगरानी करनी होती है। उत्तर की तरफ से रूस, पश्चिम की तरफ से उत्तर कोरिया और दक्षिण पश्चिम में चीन की समुद्री सीमा है। इसी का फायदा चीन उठाता है। इसके पहले भी चीन के जहाज अनाधिकार प्रवेश करते रहे थे और जापान के कोस्ट गार्ड्स के अधिकारियों द्वारा कहने पर भी वापस नहीं जाते थे। वास्तव में चीन की नीति जापान के कोस्ट गार्ड्स को इस क्षेत्र में दबाने की ही है। लेकिन बदली परिस्थितियों में अब जापान ने खुलकर इसका विरोध किया है।



























