चीन बार बार कहता है वो भारत के साथ सीमा पर जारी विवाद को खत्म करना चाहता है परन्तु जमीनी स्तर पर वो इसे बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। हालाँकि, भारत चीन के मंसूबों को पानी फेरने के साथ साथ उसे आर्थिक मोर्चे पर कमजोर करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा। कोरोना वायरस महामारी के बीच भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण करने की चीन की किसी भी कदम को रोकने के लिए भारत ने एफडीआई मानदंडों को भी कड़ा कर दिया था। अब वित्त राज्य मंत्री (एमओएस) अनुराग सिंह ठाकुर ने लोकसभा में बताया कि वित्त वर्ष 2020 में, चीनी एफडीआई गिरकर $ 163 मिलियन पर आ गया है।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 वर्षों में चीन द्वारा एफ़डीआई निवेश में काफी गिरावट आई है। कभी जो एफ़डीआई निवेश 500 मिलियन डॉलर से कम नहीं होती थी, वह 2017-18 के सत्र में गिरकर 350.22 मिलियन डॉलर हो गई, और फिर 2018 -19 में यह संख्या 229 मिलियन डॉलर हो गई। लेकिन 2019-20 के सत्र में ये संख्या 163.77 मिलियन पर आ चुकी है, और यदि ऐसे ही चलता रहा, तो चीन से एफ़डीआई निवेश को शून्य होने में अधिक समय नहीं लगेगा। ये सभी जानकारियाँ लोक सभा के सत्र में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने दी ।
इस जानकारी का स्पष्ट अर्थ है कि अब चीन से निवेश एकदम रसातल में जा चुका है, और इस वर्ष जो कुछ भी घटा है, चाहे वो भारत के अंदर हो या फिर बॉर्डर पर, उससे ये स्पष्ट है कि अब चीन आर्थिक तौर पर पहले की तरह भारत पर प्रभाव नहीं जमा पाएगा। गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने जब भारत पर हमला किया, तो केंद्र सरकार ने मोर्चा संभालते हुए चीन पर सर्वप्रथम आर्थिक मोर्चे पर प्रहार किया ।
जनता द्वारा ‘Boycott China’ का अभियान चलाना हो, या फिर CAIT द्वारा 2021 तक चीन का समान बहिष्कृत कर चीनी अर्थव्यवस्था को एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाना हो, या फिर टिक टॉक, शेयर इट और पबजी जैसे चीनी एप्स को प्रतिबंधित ही क्यों न कराना हो, भारत ने आर्थिक मोर्चे पर कोई कसर नहीं छोड़ी है। यहाँ तक कि CAIT ने इस वर्ष के रक्षाबंधन में चीनी राखियों की आपूर्ति को रोकने में सफलता प्राप्त की, जिससे चीनी अर्थव्यवस्था को लगभग 4000 करोड़ रुपये के नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
इसके अलावा 23 जुलाई को सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने यह स्पष्ट कहा कि अब से किसी भी सरकारी इन्फ्रास्ट्रक्चर से संबन्धित प्रोजेक्ट्स, चाहे वह सड़क परिवहन या फिर शस्त्र निर्माण, अब चीनियों के लिए नहीं खुलेंगे, यानि उनके द्वारा निवेश के लिए भारत के दरवाजे बंद हो चुके हैं। इतना ही नहीं, भारत के कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए उपयोग में लाने जाने वाले विदेशी जहाज़ हो, या फिर तांबे का आयात हो, कहीं भी चीनी निवेश स्वीकार्य नहीं होगा।
यदि ये ऐसा ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब कम से कम विदेशी निवेश के परिप्रेक्ष्य से भारत चीन के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। भारत आर्थिक मोर्चे के साथ-साथ अब रक्षात्मक मोर्चे पर भी पूर्वी लद्दाख में चीन को मुंहतोड़ जवाब दे रहा है और एलएसी पर इस समय भारत का पलड़ा ज़्यादा भारी दिखाई दे रहा है। अब समय आ चुका है कि भारत किसी भी स्थिति में चीन पर निर्भर न रहे, और अनुराग ठाकुर द्वारा साझा की गई जानकारी इसी दिशा में एक सार्थक प्रयास है।