वुहान वायरस की महामारी फैलने के पश्चात अब विश्व के सभी देश चीन से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। चीन को वैश्विक सप्लाई चेन से बाहर खदेड़कर भारत, वियतनाम जैसे विकल्प चुनकर विश्व के सभी बड़े देश आर्थिक व्यापार को सुचारु रखना चाहते हैं। इसी के तहत, इस वर्ष 31 जनवरी को जारी अंतिम आर्थिक सर्वेक्षण में, भारत सरकार के आर्थिक सलाहकारों ने देश में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन करने के लिए मेक इन इंडिया ’के साथ Assemble in India का सुझाव दिया था।
लाइवमिंट द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, “आर्थिक सर्वे 2019-20 के अनुसार भारत को चीन द्वारा निर्यात क्षेत्र में पाई गई अपार सफलता को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा प्रोजेक्ट लॉन्च करना चाहिए, जहां पर विभिन्न उत्पादों को भारत में असेंबल किया जा सकता है। चूंकि अमेरिका और चीन के बीच में ट्रेड संबंध रसातल में है, इसलिए निर्यात उत्पादन में भारत एंट्री कर ऊंचे वेतन वाले जॉब्स क्रिएट कर सकता है। इससे अगले 10 साल में 8 करोड़ ऐसी जॉब्स निकल आएंगी, जिसमें वेतन काफी ऊंचा होगा। इतना ही नहीं, इस प्रोजेक्ट की सफलता से भारत को अपने 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य तक पहुँचने में भी आसानी मिलेगी।”
इस Assemble in India प्रोजेक्ट से न सिर्फ मेक इन इंडिया अभियान को धार मिलेगी, अपितु वैश्विक सप्लाई चेन में भी भारत की अहमियत बढ़ेगी। अभी अगस्त 2020 में चीन के खिलाफ भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने साथ मिलकर एक नया कदम उठाया जो चीन को ग्लोबल सप्लाई चेन से बाहर करने में काफी मदद करेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जापान ने इस समझौते की रूपरेखा को तैयार किया है और उसकी पहल पर ही भारत और ऑस्ट्रेलिया उसके साथ आए हैं। तीनों देश एक त्रिपक्षीय व्यापारिक समझौते के लिए साथ आने को तैयार हुए हैं, जिसके तहत आपसी सप्लाई चेन को लचीला बनाया जाएगा।
वास्तव में भारत के पास चीन की जगह वैश्विक assemble destination के रूप में खुद को स्थापित करने का एक बढ़िया मौका है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार अगर भारत ऐसा करने में सफल हो जाता है तो आने वाले समय में Assemble in India प्रोजेक्ट देश में आठ करोड़ नौकरियां पैदा करेगा, साथ ही भारत 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। Assemble in India प्रोजेक्ट वैश्विक स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करता है तो भारत 2025 तक अपने निर्यात बाजार की हिस्सेदारी को लगभग 3.5 % और 2030 तक 6% बढ़ा पाने में सक्षम होगा।
यह मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में भी मुख्य विषय रहा जिसमें उन्होंने कहा था कि व्यापारिक प्रतिष्ठान भारत को “सप्लाई चेन के हब” के रूप में देखने लगे हैं और अब भारत को “दुनिया के लिए निर्माण” शुरू करना होगा। भारत वैसे भी लगातार इस दिशा में प्रयासरत है कि वह चीन को हर उस क्षेत्र से बाहर करे, जहां आज वह आर्थिक रूप से काबिज है। भारत सरकार ने देश में कोयला खदानों के आवंटन में चीनी कंपनियों को बाहर कर दिया है। वहीं मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की बात करें तो यहाँ भी भारत सरकार की योजना है कि, चीन को भारतीय बाजार से खदेड़ा जाए।
इतना ही नहीं, अमेरिका ने भी इस दिशा में एक अहम कदम बढ़ाते हुए ईपीएन (‘Economic Prosperity Network’) यानि आर्थिक समृद्धि नेटवर्क के गठन की घोषणा की। ईपीएन के बारे में जानकारी साझा करते हुए कीथ क्रेच ने बताया, “ईपीएन ऐसे देशों से बना होगा जो तय मानकों एवं आदर्शों के अनुसार आर्थिक साझेदारी करेंगे। ये इस नीति पर निर्मित होगा कि मजबूत साझेदारी से ही समृद्धि सुनिश्चित होती है। इसीलिए ईपीएन का गठन किया गया है ताकि एक वैश्विक ढांचे के अंतर्गत Geo Economic Partnerships का खाका तैयार किया जा सके।’’
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यदि केंद्र सरकार आर्थिक सर्वे के कहे अनुसार Assemble in India प्रोजेक्ट को को आगे बढ़ाती है, तो वैश्विक सप्लाई चेन से न सिर्फ चीन को बाहर खदेड़ा जा सकता है, अपितु विश्व को भारत के रूप में एक बेहतर विकल्प भी मिलेगा।