किसी ने सही ही कहा है, ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते।’ एर्दोगन के शासन में तुर्की की हालत ऐसी ही हो गई है, और इसी के कारण चाहे फ्रांस हो, या इज़राएल, यहाँ तक की अमेरिका तक ने तुर्की को बिना हाथ उठाए अच्छी तरह से कूटा है। इसी कारण से तुर्की ने पूर्वी मेडिटेरेनियन में विचरण कर रहे अपने जहाज़ो को वापिस बुला लिया है।
फ्रांस 24 की रिपोर्ट के अनुसार तुर्की का जो निरीक्षण जहाज़ पूर्वी मेडिटेरेनियन में विचरण और अनुसंधान के नाम पर भ्रमण कर रहे थे, वे वापिस लौट चुके हैं। चूंकि ये जहाज़ उन क्षेत्रों में विशेष रूप से भ्रमण कर रहे थे, जिसे ग्रीस ने विशेष आर्थिक ज़ोन घोषित कर रखा है, इसलिए इन जहाजों के होने के कारण पूर्वी मेडिटेरेनियन क्षेत्र में हाहाकार मच गया था।
ग्रीक सरकार के प्रवक्ता स्टेलियोस पेट्सास ने एक टीवी चैनल से बातचीत में बताया, “यह निस्संदेह एक सकारात्मक कदम है। हम देखना चाहते हैं कि यह कदम आगे कहाँ तक जाता है, ताकि इसका सटीक विश्लेषण किया जा सके।” सूत्रों के अनुसार तुर्की का निरीक्षण जहाज़ इसलिए लौट गए, क्योंकि उसके पास NAVTEX अथवा अंतर्राष्ट्रीय maritime safety एड्वाइज़री द्वारा 10 अगस्त को मिली छूट समाप्त हो चुकी थी।
परंतु समस्या आखिर किस बात पर थी? दरअसल पूर्वी भूमध्यसागर के विवादित जलक्षेत्र में रिसर्च के लिए तुर्की ने NAVTEX जारी किया और चेतावनी जारी की है कि तुर्की का Turkish Oruc Reis जहाज 21 जुलाई से 2 अगस्त पूर्वी भूमध्यसागर में सिस्मिक सर्वे पर रहेगा। इस चेतावनी में जिन क्षेत्रों की बात की गयी है उस सर्वेक्षण में ग्रीस के Kastelorizo द्वीप के एक विस्तृत क्षेत्र और ग्रीक कॉन्टिनेंटल क्षेत्र के कई हिस्सों को कवर किया गया है। इस तरह से Greece के जलक्षेत्र में तुर्की के प्रवेश करने से क्षेत्र का तनाव बढ़ गया और ग्रीस की नेवी हाई अलर्ट पर आ गई। यही नहीं,Greece अब यूरोपियन यूनियन और अंतराष्ट्रीय संगठनों से हस्तक्षेप की मांग करने लगा।
इसके अलावा तुर्की यूएन के समुद्र समझौते का हिस्सा नहीं है, जिसके कारण वह चीन की भांति ग्रीस के समुद्री क्षेत्र पर अपना दावा ठोकता है। पिछले वर्ष नवंबर में लीबिया के मुस्लिम ब्रदरहुड और तुर्की के बीच में हस्ताक्षरित समझौते के अनुसार तुर्की ग्रीस के EEZ के अंतर्गत आने वाले द्वीपों पर कब्ज़ा कर ग्रीस के समुद्री अखंडता को खंडित करना चाहती है। तुर्की त्रिपोली में स्थित और यूएन समर्थित जीएनए का समर्थन कर रहा है, जबकि इटली, मिस्र और फ्रांस लीबियन नेशनल आर्मी के साथ है।
इससे स्पष्ट है कि तुर्की लीबिया के जरिये पूर्वी मेडिटेरेनियन पर अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है। लेकिन ग्रीस भी अनुभवहीन नहीं है। अब ग्रीस ने पूर्वी मेडिटेरेनियन में यूएन के समुद्री समझौते का हिस्सा होने के नाते अपनी अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों को भी उसी के अनुसार बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। इससे न केवल तुर्की का घेराव होता, बल्कि तुर्की को अपने ही जाल में फंसाकर ग्रीस अपने अखंडता की भी रक्षा करता। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए इटली और ग्रीस ने एक समझौते पर जून में हस्ताक्षर किया था, जो तुर्की का घेराव करने में Greece के लिए सहायक भी होगा।
लेकिन जब ग्रीस ने मोर्चा संभाला, तो उसे भी अंदाज़ा नहीं था कि उसकी सहायता के लिए साइप्रस, इज़राएल और फ्रांस जैसे देश आगे आएंगे। फ्रांस और यूएई भी ग्रीस द्वारा अपने EEZ पर दावों के समर्थन में आ गए। कुछ हफ़्ते पहले, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने पूर्वी भूमध्य सागर में नौसेना की तैनाती बढ़ाने का फैसला किया था, तथा तुर्की को विवादित क्षेत्र में अपने शोध कार्य को तुरंत रोकने के लिए कहा था।
यही नहीं, फ्रांस ने उस क्षेत्र में तुर्की की वर्चस्वता और साइप्रस और ग्रीस के लिए बढ़ते खतरे को कम करने के लिए दो राफेल फाइटर जेट और एक नौसैनिक फ्रिगेट‘Lafayette’ भी भेजा दिया था। प्राकृतिक गैस भंडार के मुद्दे पर तुर्की के साथ बढ़ते संघर्ष के बीच ग्रीस ने पूर्वी भूमध्य सागर में फ्रांस, इटली और साइप्रस के साथ सैन्य अभ्यास शुरू करने का ऐलान किया, जिसमें यूएई भी शामिल हुआ। तुर्की ने इस पर आपत्ति जताई लेकिन उसकी आपत्ति के बावजूद फ्रांसीसी रक्षा मंत्री फ्लोरेंस ने ट्वीट कर इस सैन्य अभ्यास की जानकारी दी और कहा, “हमारा संदेश सरल है: संवाद, सहयोग और कूटनीति को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि पूर्वी भूमध्यसागरीय स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान का क्षेत्र बना रहे।”
इसके अलावा इज़राएल ने भी मोर्चा संभालते हुए तुर्की के विरुद्ध ग्रीस का समर्थन किया। द टाइम्स के एक लेख के अनुसार, इजरायल की प्रसिद्ध इंटेलिजेंस विंग मोसाद का मानना है कि, अब उनके लिए तुर्की एक बड़े खतरे के रूप में उभर के सामने आ रहा है। अब तक इजरायल के लिए प्रमुख रूप से उसका सबसे बड़ा खतरा ईरान था, लेकिन अब वो जगह तुर्की ने ले ली है। रोचक बात तो यह है कि, दोनों ही देशों(तुर्की और ईरान) में पहले उदारवादी शासन हुआ करता था, जिसकी जगह अब इस्लामिक विचारधारा ने ले ली है।
तुर्की ने अपने निरीक्षण जहाज़ ये सोचकर भेजे थे कि ग्रीस और साइप्रस जैसे देश क्या ही चुनौती पेश करेंगे, पर यही आत्मविश्वास उसके लिए आगे चलकर काफी घातक सिद्ध हुआ। अब वह को चोरों की भांति मुंह छिपाते हुए अपने जहाज़ बुलाने पड़े हैं, जिसे देख एक कहावत स्पष्ट सिद्ध होती है, “चौबे जी चले छब्बे जी बनने, दूबे जी बनके लौटे”।