अब जब बिहार चुनाव में अधिक समय नहीं बचा है, ऐसे में सभी दल अपने दांव-पेंच लड़ाने में जुट गए हैं। जहां नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे हैं, तो वहीं लालू प्रसाद यादव उन्हें सत्ता से हटाकर अपने पुत्रों के जरिये सत्ता वापिस पाना चाहते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनके इरादे इन दोनों से ही अलग है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार चुनाव में वे अपना अलग मोर्चा संभालेंगे, जो काँग्रेस और आरजेडी के लिए बिलकुल भी शुभ संकेत नहीं है।
हाल ही में असदुद्दीन ओवैसी ने घोषणा की कि वे बिहार में समाजवादी जनता दल के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “शनिवार को एआईएमआईएम के प्रमुख ओवैसी और समाजवादी जनता दल [डेमोक्रेटिक] के प्रमुख और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव ने मिलकर एक गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की घोषणा की। पटना में शनिवार को दोनों नेताओ ने एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करते हुए कहा कि बिहार को भ्रष्टाचार मुक्त, अपराध मुक्त, बाढ़ और सुखाड़ मुक्त बनाने के लिए यह गठबंधन बना है। दोनों नेताओं ने अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों को भी साथ आने की अपील की है।”
यही नहीं, ओवैसी ने स्पष्ट जताया है कि वे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं, और वे भाजपा की बी टीम नहीं है। उनके अनुसार, “कुछ नहीं होता तो विपक्षी यही कैसेट चलाते फिरते हैं। पिछले साल बिहार में मैं केवल एक सीट पर लड़ा। बाकी 39 सीटों पर क्या हुआ?” उनका इशारा लोकसभा चुनाव की ओर था, जहां बिहार में एनडीए ने लगभग क्लीन स्वीप किया, और काँग्रेस को छोड़कर आरजेडी और उसके साथी दलों का खाता तक नहीं खुला।
इसके अलावा ओवैसी ने बहुत पहले ही ये जता दिया था कि वह प्रमुख तौर पर सीमांचल क्षेत्र पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे, जहां पर अधिकांश विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल हैं। इन्ही में से एक क्षेत्र किशनगंज से पिछले वर्ष उपचुनाव में विधानसभा सीट जीतकर AIMIM ने महाराष्ट्र अथवा हैदराबाद के इतर किसी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इसके अलावा इस सीट पर अधिकतर काँग्रेस या फिर आरजेडी का ही कब्जा रहा था। ऐसे में इस सीट पर AIMIM का विजयी होना अपने आप में बिहार की राजनीति के परिप्रेक्ष्य से काफी अहमियत रखता है।
तो इस निर्णय से भला काँग्रेस और आरजेडी को क्या नुकसान होगा? दरअसल, दोनों ही पार्टी बिहार में प्रमुख तौर से मुसलमानों के वोट को अर्जित करने के लिए प्रतिस्पर्धा में रहते हैं। लेकिन ओवैसी के आगमन से बिहार में न केवल मुसलमानों के वोट बंटेंगे, अपितु विधानसभा के लिए मुक़ाबला भी त्रिकोणीय होगा, और सभी को पता है कि इससे सबसे अधिक हानि किस पार्टी की होगी।
इसी बात पर प्रकाश डालते हुए नवभारत टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में आगे लिखा, “बिहार चुनाव पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि ओवैसी मुसलमान वोटरों पर प्रभाव डालने में सफल रहेंगे। ओवैसी की पार्टी बीते कुछ सालों से बिहार के सीमांचल क्षेत्र में काफी सक्रिय है। माना जा रहा है कि कटिहार और किशनगंज क्षेत्र में ओवैसी का गठबंधन आरजेडी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बिहार में मुस्लिम और यादव को आरजेडी का परंपरागत वोटर माना जाता है। लेकिन अब ओवैसी खुद मैदान में हैं और उन्होंने एक यादव समाज से संबंध रखने वाले नेता के पार्टी से गठबंधन भी कर लिया है। ऐसे में आरजेडी को सीमांचल क्षेत्र में नुकसान हो सकता है।”
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ओवैसी ने अपना अलग मोर्चा बनाकर लालू यादव की पार्टी के अस्तित्व को ही खुलेआम चुनौती दे दी है। जिस प्रकार से ओवैसी ने लालू यादव के पारंपरिक वोट बैंक पर निशाना साधा है, उससे ये बात स्पष्ट है कि वे इस चुनाव में लालू के घमंड को मिट्टी मिलाने के लिए ही सामने आए हैं।