चीन के साथ सीमा तनाव के बाद से भारत ने पिछले 45 दिनों में 12 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया है। ये सभी परीक्षण डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन द्वारा बनाए गए मिसाइलों का ही किया गया जिससे अब भारत अपने पड़ोसियों के सामने बेहद मजबूत दिखाई देने लगा है। ऐसा लग रहा है कि पिछले 65 वर्षों से सफलता से अधिक असफलता के लिए मशहूर DRDO अब जाग चुका है और एक नई ऊर्जा दिखाई दे रही है।
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानि DRDO की स्थापना 1958 में “भारत की रक्षा सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रणालियों और संसाधनों से लैस करके एक निर्णायक बढ़त प्रदान करने” की दृष्टि से की गई थी, जो पिछले 65 वर्षों में कभी पूरा नहीं हुआ। अब ऐसा लग रहा है कि DRDO की स्थापना के 65 वर्षों बाद अपने विजन पर सफल होता दिखाई दे रहा है। परंतु ऐसा क्या बदला जिससे अचानक से यह संस्थान भारत को डिफेंस क्षेत्र में ताकतवर बनने की ओर अग्रसर हो रही है। यह और कुछ नहीं बल्कि मोदी सरकार द्वारा DRDO की पेंच टाइट करने और जवाबदेही तय करने के कारण हुआ है।
दरअसल, कल भारतीय नौसेना ने एक ऐंटी-शिप मिसाइल का सफल परीक्षण किया था।
#IndianNavy Anti Ship Missile was successfully launched by Indian Navy Missile Corvette Prabal.
The missile homed on with deadly accuracy at max range sinking target ship.@SpokespersonMoD @PIBAhmedabad @DDNewsGujarati pic.twitter.com/j4wcywmJoD
— PRO Defence Gujarat (@DefencePRO_Guj) October 23, 2020
सिर्फ अक्टूबर महीने की बात करें तो 3 अक्टूबर को भारत ने सतह से सतह में मार करने वाली परमाणु क्षमता से लैस बैलिस्टिक मिसाइल ‘शौर्य’ का परीक्षण किया था। 9 अक्टूबर को ऐंटी-रेडिएशन मिसाइल ‘रुद्रम’ का टेस्ट हुआ। 19 अक्टूबर को स्टैंड-ऑफ ऐंटी-टैंक (SANT) मिसाइल का टेस्ट हुआ। 22 अक्टूबर को ऐंटी-टैंक मिसाइल नाग का परीक्षण किया गया था। वहीं पिछले महीने 7 सितंबर को DRDO ने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जो ध्वनि की गति से छह गुना यात्रा करने की क्षमता वाला मानव रहित स्क्रैमजेट है।
24 सितंबर को लगभग 400 किलोमीटर की रेंज वाली परमाणु सक्षम पृथ्वी -2 मिसाइल का सफल, रात्रि उड़ान परीक्षण किया गया था। वहीं 30 सितंबर को ब्रह्मोस की सतह से सतह पर सुपरसोनिक लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइल, एक स्वदेशी बूस्टर और एयरफ्रेम सेक्शन के साथ-साथ कई अन्य मेड इन इंडिया प्रणालियों का विशेषता के साथ परीक्षण किया गया था। 17 अक्टूबर को, ब्रह्मोस के नौसैनिक संस्करण का भारतीय नौसेना के स्वदेश निर्मित आईएनएस चेन्नई से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
#IndianNavy Guided Missile Destroyer #INSChennai fired #BrahMos supersonic Anti Ship Missile at maximum range successfully during ongoing #WesternFleet exercises @indiannavy @SpokespersonMoD @DefenceMinIndia @DRDO_India pic.twitter.com/4AeXdtI4Eu
— DD India (@DDIndialive) October 19, 2020
कुछ दिनों पहले ही DRDO चीफ ने कहा, ‘मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में, खासकर 5 से 6 सालों में देश ने खुद को जैसे विकसित किया है, उसे देखकर मैं कहना चाहूंगा कि मिसाइल बनाने की दिशा में भारत अब पूरी तरह आत्मनिर्भर बन चुका है। सेना जिस तरह की मिसाइल चाहेगी अब हम वैसी बनाकर दे सकते हैं।‘
यह तेज़ी ऐसे ही नहीं आई बल्कि वर्ष 2014 के बाद सरकार में आई मोदी सरकार के त्वरित एक्शन और बदलावों का परिणाम है।
जब से DRDO की स्थापना हुई है तब से देखा जाए तो इसकी सफलता से असफलता की लिस्ट अधिक लंबी चौड़ी है। भारत के मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम ने वैज्ञानिक सलाहकार की भूमिका के दौरान वर्ष 1997 में कहा था कि भारत को 2005 तक रक्षा उपकरण खरीद में आयात का हिस्सा 30 प्रतिशत तक लाना चाहिए। लेकिन आज तक DRDO और HAL जैसी अकर्मण्य संस्थाओं के कारण भारत हासिल नहीं कर पाया है और अपने अधिकांश रक्षा आपूर्ति के लिए विदेश से आयात पर निर्भर है।
DRDO का रिकॉर्ड भी HAL की भांति सुस्ती, आपूर्ति में देरी और असफलता से भरा पड़ा है। उदाहरण के लिए लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (ICA) प्रोजेक्ट, 2001 में चालू किया गया था जिसमें 20 वर्ष से अधिक की देरी हो चुकी है और लागत लगभग 3,300 करोड़ रुपये के मूल अनुमान से बढ़कर 5,780 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। ICA के लिए कावेरी इंजन के विकास में भी 20 वर्ष से अधिक की देरी हुई है और लागत लगभग 800 प्रतिशत बढ़ गई है।
वर्ष 2011 में, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने DRDO की क्षमताओं पर एक गंभीर प्रश्न चिह्न लगाया था। अपनी रिपोर्ट में CAG ने लिखा था कि इस संगठन का इतिहास रहा है कि यह अपनी परियोजनाओं को देरी से पूरा करता है जिसके कारण समय और लागत दोनों बढ़ते हैं, नुकसान देश का होता है।
तीनों सेवाओं ने पिछले 15 वर्षों में 320 करोड़ रुपये की लागत से Armament Research and Development Establishment (ARDE) द्वारा विकसित किए गए 70 प्रतिशत उत्पादों को खारिज कर दिया है क्योंकि उत्पाद उनके मानक और आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं।
कारगिल युद्ध के दौरान सेना के प्रमुख रहे जनरल वी.पी. मलिक ने अपनी किताब कारगिल- फ्रॉम सरप्राइज टू विक्टरी में दिलचस्प घटना लिखी है जो DRDO की असलियत बताती है और यह दिखाती है कि अपनी स्थापना से इस संस्थान से कैसे देश को पीछे धकेला है। उन्होंने लिखा है कि वर्ष 1997 में सेना ने अमेरिका से AN / TPQ-37 फायर फाइंडर रडार हासिल करने की योजना को अंतिम रूप दिया था। कीमतों पर बातचीत हो चुकी थी,लेकिन खरीद से ठीक पहले, DRDO ने उन्हें आधी कीमत पर और दो साल के भीतर बनाने की पेशकश की। सरकार ने भी इन राडार को खरीदने के सेना की योजनाओं को रोक कर DRDO को ऑर्डर दे दिया। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान, रडार की सख्त जरूरत थी। परंतु DRDO ने न तो उनका निर्माण किया था और न ही उन्हें अमेरिका से खरीदा जा सका था।
कांग्रेस की पुरानी सरकारों द्वारा न तो इस संस्थान के कार्य पर ध्यान दिया गया और न ही इसे सुधारने के लिए कोई कदम उठाया गया। वर्ष 2008 में पी रामाराव समिति ने तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी को DRDO में भारी सुधार के लिए सुझाव दिया था। वर्ष 2011 में कोशिश जरूर की गयी थी लेकिन नौकरशाहों की मजबूत लॉबी का शिकार हो कर यह कागजों में सिमट कर रह गया।
जब सरकार बदली और वर्ष 2014 में NDA की सरकार बहुमत के साथ आई तो DRDO की असफलता को देखते हुए पीएम मोदी ने इसे सुधारने का जिम्मा स्वयं लिया और इस संस्थान की पेंच टाइट की। उस दौरान कई नौसैनिक जहाजों में महत्वपूर्ण मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल SAM और Advanced LightTowed Array Sonars (ALTAS) सिर्फ DRDO की असफलता के कारण नहीं लगाया गया आईएनएस कोलकाता में भी लंबी दूरी के SAM सिस्टम और ALTAS के बिना ही कमीशन किया गया था। इससे पीएम मोदी बेहद नाखुश हुए थे और DRDO को नोटिस दे दिया था।
सरकार ने रक्षा में 49% एफडीआई को मंजूरी देने के साथ, पीएम ने उस अकर्मण्य संगठन को निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा के लिए स्वरूप देने और संगठन की एक विस्तृत समीक्षा करने के लिए कहा था।
पीएम मोदी ने व्यक्तिगत रूप से डीआरडीओ को एक सख्त संदेश देते हुए संगठन के वार्षिक पुरस्कार समारोह के दौरान अधिकारियों से कहा था कि आप अपने “चलता है” रवैये को छोड़ दें। हालांकि, इस चेतावनी से पहले ही DRDO की सफाई परियोजना शुरू कर दी गयी थी। उन्होंने वैज्ञानिकों को सेवा का विस्तार देने के लिए मामलों की समीक्षा कर रही एक समिति को हटा देने का आदेश दिया था।
इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) को फिर से संगठित करने और DRDO विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन परिषद (डीएसटीएमसी) को पुनर्जीवित करने की दिशा में अपना पहला कदम वर्ष 2018 में उठाया था।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पुनर्गठित DSTMC एक उच्च प्रोफ़ाइल निकाय है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ तालमेल के साथ DRDO के शोध और प्रयोगशालाओं के भविष्य का चार्ट तैयार करेगा। इसके गठन से DRDO के कार्य में तेज़ी देखने को मिली है।
DRDO अब सभी सैन्यकरण के लिए वैश्विक निर्भरता को कम करने के लिए स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने की ओर अग्रसर है। इस का नमूना हमे तब देखने को मिला जब भारत ने चीन के साथ तनाव बढ़ने के बाद 45 दिनों में 12 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया। अब यह संस्थान पटरी पर लौट आया है और जिस काम के लिए इसकी स्थापना की गयी थी उसमें सफल हो रहा है। इसी तरह चलता रहा तो भारत में कई नए डिफेंस तकनीक विकसित किए जाएंगे और भारत इम्पोर्ट के बजाए एक्सपोर्ट पर ध्यान केन्द्रित कर सकेगा।