एक समय पर जिस अंजान गाँव को चीन के सिलिकॉन वैली में परिवर्तित करने का सपना देखा गया था, आज उसी जगह का भविष्य अंधकार में जाता दिखाई दे रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प Shenzhen नामक शहर को दिवालिया बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, और इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। चीन के कई प्रसिद्ध टेक कंपनियां – BYD, Tencent, ZTE एवं Huawei इसी Shenzhen की देन है। लेकिन ट्रेड वॉर और वुहान वायरस की दोहरी मार के कारण अब Shenzhen का अस्तित्व ही खतरे में आ चुका है।
पर ये Shenzhen चीन की अर्थव्यवस्था के लिए इतना अहम बना कैसे? इसका जवाब 1987 में मिल सकता है, जब पीएलए के पूर्व अफसर Ren Zhengfei ने Shenzhen में Huawei की स्थापना की। इसके बाद तो Shenzhen में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति होने लगी, जिसे ‘Shenzhen Speed’ का नाम भी दिया गया।
तीन दशक बाद, Huawei चीन की सबसे बड़ी निजी कंपनी के तौर पर उभर के सामने आई, और Shenzhen चीनी प्रशासन की आँखों का तारा बन गया। 2016 के आंकड़ों के अनुसार, Huawei ने Shenzhen की जीडीपी में बड़ी भूमिका निभाई, जो शहर के आर्थिक उत्पादन का लगभग 7 प्रतिशत था। Huawei इसके साथ ही चीन की इकलौती ऐसी टेलिकॉम कंपनी बनी, जिसका वार्षिक राजस्व 123 बिलियन डॉलर का था।
लेकिन इस सफलता के रथ पर लगाम लगी 2019 से, जब अमेरिका ने चीन पर अपनी तकनीक के जरिये जानकारी के free flow को बाधा पहुंचाने और लोगों के डेटा की जासूसी करने का आरोप लगाया। जैसे जैसे अमेरिका से आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति मिलनी बंद हुई, Shenzhen की उत्पादन क्षमता को मानो साँप सूंघ गया। रही सही कसर वुहान वायरस ने पूरी कर दी, जिसके बाद अमेरिका ने और आक्रामक होते हुए Huawei के अस्तित्व को ही मिटा देने के लिए कमर कस ली।
लेकिन Huawei इकलौती ऐसी कंपनी नहीं है, जिसको इन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। चीन की औपनिवेशिक मानसिकता का दुष्परिणाम चीन की टेक कंपनियों के साथ Shenzhen को भी भुगतना पड़ रहा है। जैसा कि टीएफ़आई ने रिपोर्ट किया था, Huawei ने बताया कि उसका अस्तित्व खतरे में है, क्योंकि अमेरिका ने सेमीकंडक्टर के निर्यात पर चीन के परिपेक्ष से कई पाबन्दियाँ लगा दी है, और साथ ही किसी भी प्रकार के तकनीकी व्यापार पर रोक भी लगाई है।
चूंकि जापान, ताइवान इत्यादि जैसे देश भी अमेरिकी उपकरणों का इस्तेमाल करके अपने उत्पाद तैयार करते थे, इसलिए प्रारम्भ में चीन अमेरिका के प्रतिबंध को चकमा दे सकता था, लेकिन अब अमेरिका ने उसका भी तोड़ निकाल लिया है
इसके अलावा ट्रम्प प्रशासन ने टिक टॉक और वी चैट के डाउनलोड पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, जिसके पीछे उन्होनें इन एप्स द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा को हो रहे खतरे को जिम्मेदार ठहराया है। अब अमेरिका में रह रहे चीनियों के लिए वी चैट किसी लाइफलाइन से कम नहीं है, क्योंकि वह उन्हे चीन में अपने सगे संबंधियों से जोड़ता है। लेकिन चीन की गतिविधियों के दुष्परिणाम अब चीनियों के साथ प्रवासी चीनियों को भी भुगतने पड़ेंगे।
चीन की अर्थव्यवस्था के रसातल में जाने का भय जिनपिंग के वर्तमान बयानों से स्पष्ट होता है। हाल ही में Shenzhen के विशेष आर्थिक ज़ोन के 40वें वर्षगांठ के अवसर पर एक 50 घंटे लंबे भाषण में शी जिनपिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था को एक नई गति के विषय पर अपना भाषण केन्द्रित करने का प्रयास किया। चीन के आधिकारिक चैनल CCTV पर हुए प्रसारण के अनुसार, “हम इस सदी के ऐसे मुहाने पर आए हैं, जहां हमें आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना होगा, और इनोवेशन की दौड़ में हमें स्वतंत्र होकर चलना पड़ेगा। हमें एक ऐसे पथ पर अपने कदम बढ़ाने होंगे, जो तकनीक और औद्योगिक नवीनीकरण को बढ़ावा दे, और इसका वैश्विक प्रभाव भी बढ़िया हो”।
लेकिन स्टॉक बाज़ार, विशेषकर शेयर मार्केट में उनके दलील किसी काम नहीं आए। शंघाई का Composite Index करीब 0.6 प्रतिशत तक गिरा और Shenzhen के स्टॉक एक्स्चेंज में भी इतने ही प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। केवल हाँग काँग के स्टॉक एक्स्चेंज में ही मामूली बढ़ोत्तरी हुई। डोनाल्ड ट्रम्प ने सोच समझके चीन के विरुद्ध दांव चले हैं, जिसके कारण अब चीन अपनी सुधबुध खो बैठा है। एक के बाद चीन की कई प्रसिद्ध कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है, और यदि ऐसे ही चलता रहा, तो जल्द ही Shenzhen शहर एक भुतहा खंडहर में परिवर्तित हो जाएगा।