गृह मंत्री अमित शाह की कार्यशैली को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि उनपर वुहान वायरस का बिल्कुल भी असर हुआ है। जिस प्रकार से एक के बाद वह कई ताबड़तोड़ निर्णय ले रहे हैं, उससे स्पष्ट होता है कि वे बिल्कुल भी आराम करने के मूड में नहीं है, और ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने 2021 तक नक्सलियों को उनके गढ़ से उखाड़ फेंकने का अभियान प्रारंभ कर दिया है।
हाल ही में अमित शाह ने एक अहम बैठक का आयोजन किया, जिसमें नक्सल प्रभावित इलाकों और नक्सलियों से निपटने के प्रयासों पर उच्चाधिकारियों के साथ चर्चा की गई। इस विषय पर अमित शाह के नक्सल संबंधी मामलों के सलाहकार, आईपीएस अफसर के विजय कुमार ने कहा, “गृह मंत्री ने हाल ही में एक निरीक्षण बैठक का आयोजन किया, जहां नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल विरोधी गतिविधियों को लेकर किए गए कार्यों पर चर्चा की गई। कौन कैसे बर्ताव कर रहा है, किस राज्य में पर्याप्त एक्शन नहीं लिया जा रहा है, सभी पर चर्चा हुई।”
लेकिन इस बैठक का मूल उद्देश्य क्या था? सूत्रों की माने तो अब अमित शाह युद्धस्तर पर नक्सलियों को खत्म करने में जुट गए हैं, और वे चाहते हैं कि ये निर्णायक अभियान 2021 तक किसी भी स्थिति में होना चाहिए। इसीलिए उन्होंने इस बैठक का आयोजन किया, ताकि इस अभियान में आने वाली अड़चनों का पहले ही इलाज निकाल लिया जाए।
नक्सलवाद देश में इस्लामिक आतंकवाद के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या है, जिसने झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जमकर उत्पात मचाया हुआ है। न केवल सरकारी इन्फ्रस्ट्रक्चर संबंधी प्रोजेक्ट्स को ये नुकसान पहुंचाते हैं, अपितु ये किसी भी क्षेत्र में हो अवैध धर्मांतरण के आड़े आने वाले लोगों को भी मौत के घाट उतारते हैं, जैसा कि पालघर में देखने को मिला था।
अमित शाह की इस बैठक से नक्सली कितने भयभीत है, ये उनके वर्तमान बयानों से स्पष्ट समझ में आता है। हाल ही में सीपीआई माओवादी के बस्तर ब्यूरो द्वारा निकाले गए बयान के अनुसार, “मोदी सरकार छत्तीसगढ़ में प्रहार 3 जैसी योजना को लागू करेगी। जनता आंदोलन को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस वालों को तैनात करके युद्ध अभियान चलाने का फैसला किया है। ये अभियान नए तरीके का सलवा जुदूम जैसा है। मोदी और भूपेश बघेल की सरकारें एक सैन्य अभियान की तरह हजारों पैरा मिलिट्री फोर्स भेजेंगी। उनकी सहायता के लिए भेजे जाने वाले हेलिकाप्टर, शस्त्र और गोला बारूद के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा हैl”
बता दें कि सलवा जुदूम एक अनोखी योजना थी, जिसके अंतर्गत प्रशासन स्थानीय लोगों को नक्सलियों के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार करता था, पर दुर्भाग्यवश मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दबाव में इसे 2011 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त किया गया। परंतु बस्तर ब्यूरो वहीं पर नहीं रुका। अपने बयान में उन्होंने आगे कहा, “ये राज्य पुलिस, केन्द्रीय सशस्त्र बल, इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा उद्योगपतियों की सुरक्षा के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला प्लान है, जिसमें नए कैंप, नए पुल, नई सड़कें इत्यादि होंगे, जिससे सुरक्षाबलों को जनता आंदोलन का दमन करने में बहुत मदद मिलेगी।”
जब ऑपरेशन की चर्चा और निरीक्षण होने पर नक्सलियों के ऐसे हाथ-पाँव फूल रहे हैं, तो कल्पना कीजिए कि जब वाकई में ऐसा ऑपरेशन लॉन्च होगा, तब इन नक्सलियों की क्या हालत होगी? जिस प्रकार से अमित शाह ने इस बैठक का आयोजन किया है, उससे एक बात तो स्पष्ट है – अब नक्सलियों की खैर नहीं।