पिछले कुछ वर्षों में भारत की आईटी कंपनियों का ध्यान अब घरेलू मार्केट और एशिया पेसिफिक की ओर केंद्रित है। पिछले तीन दशकों में अमेरिका और यूरोप को अपनी सेवाएँ देकर भारत की आईटी कंपनियों ने करोड़ों रुपये भी कमाए और डबल डिजिट ग्रोथ भी दर्ज की। लेकिन अब इन मार्केटस में भारत की आईटी कंपनियां सैचुरेशन पॉइंट पर पहुँच चुकी है, जिसके कारण अब वे लाभ अर्जित करने के लिए नए मार्केटस की खोज कर रहे हैं, जो संभवत पूर्वी एशिया के देशों, विशेषकर एशिया पेसिफिक क्षेत्र पर जाके रुक सकती है।
पूर्वी एशिया के देशों में आर्थिक समृद्धि के अवसर ज्यादा मिलेंगे, क्योंकि इनके मार्केट अभी भी डिजिटाइज़ेशन की प्रक्रिया से गुजर रही हैं। यहाँ अंग्रेजी में निपुणता की कमी अहितकारी है – क्योंकि यही कंप्यूटर कोडिंग बहुत काम आती है। इसीलिए पूर्वी एशिया की कंपनियां अपने आईटी संबंधित कार्यों के लिए भारतीय आईटी इंजीनियर का सहारा ले रही हैं, जो भारतीय आईटी कंपनियों के लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं है।
विकसित मार्केटस में राजस्व के परिप्रेक्ष्य से आईटी कंपनियों की वृद्धि दर 2 से 3 प्रतिशत है, जबकि एशिया पेसिफिक में यही वृद्धि दर करीब 30 से 40 प्रतिशत तक जा सकती है। एक रिसर्च और कन्सलटिंग ग्रुप के पार्टनर सिड पाई के अनुसार, “एशिया पेसिफिक में अन्य मार्केटस जैसे जापान और भारत आम तौर पर आईटी क्षेत्र के बड़े खिलाड़ियों को केवल 5 प्रतिशत का योगदान देते हैं, जबकि इनकी क्षमता 30 से 40 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि की भी हो सकती है।”
इसी परिप्रेक्ष्य में जापानी ई कॉमर्स में अग्रणी कंपनियों में से एक Rakuten (राकुटेन) भारत में अपनी वर्कफोर्स को दोगुना करने की योजना पर काम कर रही है। निक्केई की रिपोर्ट इस कंपनी का algorithm भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स ने सेटअप किया है। वुहान वायरस के संकट का सामना करने के बाद इस महामारी से उभरने के लिए यह जापानी कंपनी भारत में अपने वर्कफोर्स को दोगुना करने में लगी हुई है। निक्केई से बात करते हुए राकुटेन के चीफ इनफार्मेशन ऑफिसर यासुफूमी हिराई ने कहा, “जापान में हमारी आवश्यकताओं के अनुसार लोग नहीं मिल रहे थे, इसीलिए हमें भारत की ओर मुड़ना पड़ा।”
जापान की कुल वर्क फोर्स 1 मिलियन है, जिसमें योग्य और कार्यकुशल सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की भारी कमी है, जबकि भारत में हर साल 1 मिलियन आईटी इंजीनियर्स विभिन्न संस्थानों से अपनी पढ़ाई पूरी करके निकलते हैं। ऐसे में जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देश भारत में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए बेहद उत्सुक है। इसी पर बात करते हुए हिराई ने आगे अपने साक्षात्कार में कहा, “क्या होगा अगर हमारी संख्या 2000 हो गई? तगड़े कॉम्पटीशन के चलते सिर्फ बेंगलुरू में 3000 तक पहुंचना मुश्किल होगा, और हमें अन्य शहरों में भी रिक्रूटमेंट बढ़ानी पड़ेगी”।
लेकिन ये कहानी राकुटेन तक ही सीमित नहीं है। पिछले वर्ष इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अग्रणी जापानी कंपनी सोनी ने मुंबई और बेंगलुरू में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यूनिट स्थापित कराई है। इसी प्रकार से हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की थी कि वे नोएडा में अपना तीसरा डेवलपमेंट सेंटर खोलने जा रहे हैं, जिसमें हजारों इंजीनियर्स होंगे। 2016 में अपना केंद्र हैदराबाद में स्थापित करने वाली एप्पल अब बेंगलुरू में दूसरा केंद्र स्थापित करने जा रही है। गूगल के पहले ही चार भारतीय शहरों में ऑफिस स्थित हैं। Greyhound रिसर्च के मुख्य एनालिस्ट संचित वीर गोगिया ने कहा, “एशिया पेसिफिक सबसे तेजी से उभरते मार्केटस में शामिल होगा, क्योंकि यहाँ हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध होगी”।
वुहान वायरस के कारण इंफॉर्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के साथ जुड़ने की आवश्यकता बहुत बढ़ चुकी है। भारत इस क्षेत्र में पहले से ही काफी नाम कमा चुका है, और उसका कुल व्यापार 200 बिलियन डॉलर के पार जा चुका है। ऐसे में एशिया पेसिफिक द्वारा भारी मात्रा में आईटी विशेषज्ञों की रिक्रूटमेंट करना इस बात का सूचक है कि भारत के आईटी क्षेत्र के दिन एक बार फिर से बहुरने वाले हैं।