कोरोना फैलाने के बाद चीन ने कोरोना के बारे में प्रोपेगेंडा फैलाना अभी भी बंद नहीं किया है। अमेरिका और इटली को कोरोना के लिए दोषी ठहराने के बाद अब चीन के कुछ चीनी शोधकर्ताओं ने कोरोना की उत्पति के लिए भारत को जिम्मेदार बताया है। यह हास्यास्पद है कि चीन ऐसे प्रोपेगेंडा कर अब भारत को निशाना बनाना चाहता है जिससे उसकी छवि बच जाए।
रिपोर्ट के अनुसार चीनी शोधकर्ताओं ने चीन का बचाव करने के लिए दावा किया है कि कोरोनावायरस की उत्पत्ति भारत में हुई है।
Chinese Academy of Sciences की एक टीम ने यह तर्क दिया है कि 2019 की गर्मियों में ही भारत में से आए वायरस के उत्पन्न की संभावना है। यह भारत के गंदे पानी के माध्यम से पहले जानवरों और फिर उसके बाद जानवरों से मनुष्यों में ट्रांसफर हुआ।
चीनी शोधकर्ताओं के इस दावे को विश्व भर के वैज्ञानिकों ने तुरंत नकार दिया। ग्लासगो यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ डेविड रॉबर्टसन ने पेपर त्रुटिपूर्ण बताते हुए निष्कर्ष दिया कि यह शोध कोरोनोवायरस से जुड़ा हुआ प्रतीत नहीं होता है।
यह पहली बार नहीं है जब चीन ने अपनी जान बचाने के लिए कोरोना के दोष की उंगली कहीं और इंगित की है वह भी बिना किसी सबूत के। इससे पहले चीन ने इटली और अमेरिका दोनों को ही कोरोना के मूल संक्रमण के लिए दोषी बता दिया था।
भारत और चीन के बीच जिस तरह से बॉर्डर पर तनाव बढ़ा हुआ है उसे देखते हुए अगर यह कहा जाए कि चीन ने यह जानबूझकर भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाया है तो यह गलत नहीं होगा।
यह सभी को पता है कि WHO चीन के अंदर कोरोनोवायरस की उत्पति की तलाश कर रहा है। यही नहीं कई वैज्ञानिक साक्ष्य भी यह साबित कर चुके हैं कि बीमारी की उत्पत्ति चीन के वुहान में हुई थी।
चीनी शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध में कहा है कि वुहान में पाए जाने वाले वायरस को ‘मूल’ वायरस नहीं है। इसके बजाय आठ अन्य देशों: बांग्लादेश, यूएसए, ग्रीस, ऑस्ट्रेलिया, भारत, इटली, चेक गणराज्य, रूस या सर्बिया में इसकी उत्पति हो सकती है। शोधकर्ताओं का तर्क है कि क्योंकि भारत और बांग्लादेश दोनों देशों में कोरोना वायरस के सबसे कम Mutation वाले वायरस के नमूने दर्ज किए गए थे और दोनों भौगोलिक पड़ोसी हैं, इसलिए संभावना है कि कोरोना का पहला प्रसारण वहां हुआ। शोधकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि भारत की खराब स्वास्थ्य प्रणाली और युवा आबादी के कारण कई महीनों तक वायरस आपस में ही बिना किसी को पता चले फैलता रहा।
चीनी शोधकर्ताओं का यह तर्क उतना ही मजबूत है जितनी चीनी सामानों की जीवन अवधि होती है।
बता दें कि कोरोना वायरस पहली बार दिसंबर 2019 में चीन में ही फैला, जो वुहान शहर के एक seafood बाजार में ‘अज्ञात निमोनिया के कई मामलों से जुड़ा हुआ था। इसके बाद यह धीरे-धीरे पूरे चीन और फिर अन्य देशों तक पर्यटन के माध्यम से फैल गया और एक महामारी का कारण बना।
लेकिन आज तक चीन ने सबसे पहले कोरोना के रोगी की जानकारी बाहर नहीं आने दी। जिस डॉक्टर या पत्रकार ने कोरोना पर जानकारी विश्व के साथ साझा करने का प्रयास किया, उन्हें चीनी अधिकारियों ने या तो जेल में डाल दिया या गायब ही करवा दिया। जब महामारी की अपनी प्रतिक्रिया के कारण विश्व के सभी देशों एक सुर में WHO को चीनी एजेंट बताने लगे तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दबाव में आ कर एक 10-व्यक्ति टीम को जांच के लिए चीन भेजा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नमूनों के विश्लेषण में यह बात सामने आई कि 26 दिसंबर की शुरुआत से ही एक नए प्रकार का SARS चीनी बाजार में फैल रहा था और वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार वुहान को 22 जनवरी तक लॉकडाउन नहीं किया गया था।
हैरानी तो तब हुई जब चीन ने अमेरिकी सैनिकों पर ही कोरोना फैलाने का आरोप लगा दिया कि वुहान आए अमेरिकी सैनिक कोरोना ले कर आए थे जिन्होंने संक्रमण फैलाया। चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रमुख अधिकारी लिजियन झाओ ने 12 मार्च को दावा किया था। चीनी ने इटली पर भी आरोप मढ़ने की कोशिश की कि कोरोना इटली में उत्पन्न हुआ था।
सच्चाई यह है कि अमेरिकी चुनावों में ट्रम्प की हार के बाद चीन अब फिर से अपने प्रोपेगेंडे तंत्र को मजबूत करते हुए अपनी छवि सुधारने के लिए कोरोना का सारा दोष भारत पर मढ़ना चाहता है। हालांकि चीन का यह कदम उल्टे उसी पर भारी पड़ने वाला हैं क्योंकि विश्व भर के वैज्ञानिक चीन के इस दावे को नकार चुके हैं। यही नहीं भारत भी अब चीन द्वारा चले गए ऐसे चालों की काट जनता है।