लचर और सुस्त पड़ चुके भारतीय बैंकिंग सिस्टम में नई जान फूंकने के लिए बैंकिंग सिस्टम की नियामक संस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक नए नियम के साथ आई है, जिसके तहत देश के औद्योगिक घरानों को बैंकिंग का लाइसेंस दिया जाएगा। आरबीआई की तरफ से आए एक बयान में कहा गया कि अब देश के बैंकिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए कॉरपोरेट घरानों को मुख्य भूमिका में लाना आवश्यक हो गया है और इसके लिए केंद्रीय बैंक आरबीआई सभी तरह के ज़रूरी कानूनी संशोधन करने को तैयार है।
देश के केंद्रीय बैक आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम को लेकर रिफॉर्म की रूपरेखा तैयार की है। इसके साथ ही एक ऐलान किया है कि ऐसी गैर-बैकिंग कंपनियां जो पिछले दस सालों से मैदान में हैं और जिनकी कुल संपत्ति 50 हजार करोड़ से ज्यादा की है, जिनका व्यापार ऊंचाईयों की तरफ जा रहा है, उन्हें बैंक के रुप में मान्यता दी जाएगी। आरबीआई के इस कदम के बाद अब महिंद्रा एंड महिंद्रा, मुथहुट फाइनेंस, एलएंडटी फाइनेंस, टाटा कैपिटल्स, फाइनेंशियल सर्विसेज, आदित्य बिरला समूह बैंकिंग सिस्टम में आने पर काम कर सकेंगे।
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में किया गया था, लेकिन ये आज के दौर के अनुरूप विकसित नहीं है। 1990 में जब उदारवादी अर्थव्यवस्था के तहत भारत में नई क्रांति आई तब भी बैंकिंग सिस्टम कड़क ही था, जिसके चलते देश में आखिरी बैंकिंग की मान्यता प्राप्त कंपनी कोटक ही है, जिसे ये स्वीकृति 2003 में मिली थी। दूसरी ओर यूपीए सरकार ने बैंकिंग सिस्टम को मजबूत करने की ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया। जबकि मोदी सरकार ने आते ही एनपीए से जुड़े मसलों को हल करने की कोशिशें की, और गड़बड़ियों से बचते हुए बैंकिंग सिस्टम को सरल बनाने की ओर कदम उठाए।
इसमें कोई शक नहीं है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का यह कदम भी मोदी सरकार के इशारे पर ही उठाया जा रहा है, क्योंकि पिछले आर्थिक सर्वेक्षण ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण की आलोचना की थी। यह भी कहा गया था कि विश्व के 100 बड़े बैंकों में भारत के 6 बैंक जरूर शामिल होने चाहिए। जिसके बाद सरकार ने बैंकिंग सिस्टम में निजी क्षेत्र को आगे बढ़ाने के संकेत भी दिए थे और अब इन्हीं योजनाओं को मोदी सरकार आरबीआई के जरिए लागू करवा रही है।
रिजर्व बैंक की तरफ से ऐलान हुआ और टाटा समेत बिरला ने आवेदन करने की सोच ली है। टाटा समूह की एनबीएफसी, टाटा कैपिटल की कुल संपत्ति करीब 74500 करोड़ रुपए की है। जबकि बिरला समूह की बिरला कैपिटल की संपत्ति 59000 करोड़ रुपए की है। ऐसे में यह दोनों ही बैंकिंग सिस्टम में आने की रिजर्व बैंक की पात्रता को पूरा करते हैं। बजाज ग्रुप पहले आईसीआई के माध्यम से बैंकिंग सिस्टम में शामिल था, लेकिन अब वह भी मुख्यधारा में खुद आकर लाइसेंस के लिए आवेदन दे सकता है। इसके अलावा महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसे घराने भी आरबीआई के नए नियम के तहत बैंकिंग सिस्टम में जुड़ सकते हैं क्योंकि आरबीआई के नए नियम काफी उदारवादी हैं।
कोटक महिंद्रा पहले ही एक एनबीएफसी था जिसे 2003 में आरबीआई द्वारा बैंकिंग का लाइसेंस दिया गया था, कोटक एक उदाहरण था कि किस तरह से निजी खिलाड़ियों के जरिए बैंकिंग सिस्टम को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। इसी तरह एचडीएफसी ,एक्सिस बैंक उदाहरण है कि किस तरीके से निजी क्षेत्र के बैंक बैंकिंग सिस्टम को मजबूत दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं क्योंकि यह हमेशा ही अच्छा प्रदर्शन करते हैं जो देश को आर्थिक रूप से मजबूती देता है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारत को इटली के बाद सबसे बड़े बैंकिंग एनपीए का देश बना चुके हैं।
उदारीकरण की नई व्यवस्था से बैंकिंग क्षेत्र में एक आमूलचूल परिवर्तन आएगा जिससे सुस्त पड़ी बैंकिंग व्यवस्था समेत भारतीय अर्थव्यवस्था में भी एक उछाल देखने को मिलेगा। भारत का क्रेडिट जीडीपी का करीब 60% है जो कि सबसे कम है, जबकि पड़ोसी देश चीन का डेढ़ सौ प्रतिशत तक जाता है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि हमारे देश में आर्थिक गतिविधियां बढ़े तो हमें क्रेडिट को बढ़ाने के साथ ही रेल की पहुंच में आसानी की ओर ध्यान देना होगा, जिसमें निजी क्षेत्र की भूमिका सबसे अहम होगी।