कोरोना के बाद चीन को रणनीतिक रूप से जो सबसे बड़ा झटका लगा है वह है उसके और रूस के साथ संबंधो में बढ़ी तकरार। अब यह तकरार एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुकी है और चीन के मध्य एशिया में बढ़ते कदम को रोकने के लिए रूस ने चीन के खिलाफ शोध कार्यो की फंडिंग शुरू कर दी है।
दरअसल, चीन अपने BRI जैसे अहम प्रोजेक्ट्स का फायदा उठा कर 60 से अधिक देशों में अपना प्रभुत्व बढ़ा चुका है जिसमें मध्य एशिया के देश भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर देश USSR के हिस्से थे, ऐसे में रूस उन्हें अपना मानता है और अपना प्रभुत्व कायम करने की मंशा रखता है।
अब तक रूस ने चीन के बढ़ते कदम को इसलिए नहीं रोका था क्योंकि वह अभी उतना ताकतवर नहीं है कि अकेले पश्चिमी देशों के खिलाफ खड़ा हो सके, और इसके साथ ही उसे यह विश्वास था कि चीन को रोकने के लिए पश्चिमी देश उसकी मदद लेंगे, ऐसे में उसका काम निकलता रहेगा।
मॉस्को अब चिंतित हो गया है कि चीन मध्य एशियाई और Caucasus क्षेत्र में सांस्कृतिक मानचित्र को बदलने के लिए सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल कर रहा है और जल्द ही साइबेरिया और पूर्वी क्षेत्र में भी ऐसी सॉफ्ट पावर की रणनीतियों से वह प्रभाव जमा लेगा।
इसके परिणामस्वरूप, अब मॉस्को में चीन के खिलाफ आवाज उठने लगी है और कहा जाने लगा है कि USSR के टूटने के बाद चीन द्वारा उठाए गए कदम रूस के लिए खतरा बन रहे हैं। रूस की ये चिंता जाहिर भी है क्योंकि अब बीजिंग अपने BRI कार्यक्रम से आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ सांस्कृतिक और सुरक्षा क्षेत्र में भी प्रभाव बढ़ा रहा है। चीन रूस के भी शहरों पर अपना प्रभुत्व जमा कर हड़पने की फिराक में भी है, उदाहरण के लिए व्लादिवोस्टोक को चीनियों ने अपना शहर बता दिया था।
कई शोधकर्ताओं का मानना है कि अब रूस को चीन के खिलाफ शिनजियांग मामले पर खुल कर बोलना चाहिए और खास कर मध्य एशिया के देशों और Caucasus क्षेत्र में जिससे चीन के खिलाफ माहौल बने और उसका सांस्कृतिक प्रभाव कमजोर हो।
इसी क्रम में रूस में ऐसे ही कई चीन विरोधी शोध कार्यों को सीधे सरकार से भी समर्थन मिल रहा है। ऐसे ही एक शोधकर्ता Vita Slivak हैं जो Moscow State University में चीनी विशेषज्ञ हैं। वे एक राष्ट्रपति के अनुदान के तहत “The Levers of Chinese Influence: ‘Sinification’ in Central Asia and Russia के विषय पर शोध कर रहीं है। उनके शोध कार्य सीधे रूसी नीति निर्धारकों के पास जाते हैं लेकिन एक-दो इंटरव्यू में ही उन्होंने अपने विचार रखे हैं। उन्होंने बताया है कि “sinicization” के माध्यम से चीन अन्य देशों में व्यापार के विस्तार या सुरक्षा मामलों में सहयोग जैसी गतिविधियों से कहीं आगे प्रभाव जमा रहा है; और यह चीन केन्द्रित संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। उन्होंने बताया कि चीन इन देशों के लोगों को रूस या पश्चिम देशों के बजाय चीन को वैश्विक केंद्र के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
Slivak ने अपने शोध में बताया है कि चीन BRI के माध्यम से मध्य एशिया के देशों से पहले रूस के प्रभाव को समाप्त करेगा और फिर अमेरिका तथा अन्य देशों का।
कई यूरोपीय देश चीन के कई कन्फ्यूशियस संस्थानों को बंद कर चुके हैं, जो CCP का प्रोपोगेंडा फैलाते थे।
Slivak ने बताया कि यूरोप और अमेरिका चीन के खिलाफ ट्रेड वार शुरू कर चुके हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने ताइवान, शिनजियांग और तिब्बत जैसे मुद्दों को उठाया है जिससे बीजिंग की नकारात्मक छवि सामने आए।
हालांकि, Slivak ने स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं कहा, लेकिन उनका संदेश स्पष्ट है, मॉस्को को पूर्व सोवियत गणराज्यों में ऐसे चीनी संस्थानों को बंद करने और चीन के साथ अपने सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को सीमित करने की पहल करनी चाहिए। ऐसा लगता है कि अब रूस चीन के खिलाफ खुल कर सामने आने की पूरी तैयारी कर रहा है।