बिहार विधानसभा चुनावों के बाद अब सभी की नजर पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों की ओर है। यहाँ मुकाबला और दिलचस्प होने वाला है क्योंकि एक तरफ ममता बनर्जी का 10 वर्षों का शासन है तो वहीं, बीजेपी के पास बिहार में मिली जीत का उत्साह है। कहा जाता है कि बिहार विधानसभा चुनावों पर सभी की नजर जनता पर होती है कि वो किस पक्ष में है। इस बार पश्चिम बंगाल की जीत का रास्ता बिहार से हो कर गुजरने वाला हैं क्योंकि बिहार में सम्पन्न हुए चुनाव पश्चिम बंगाल की जनता पर बेहद प्रभाव डालने वाले हैं। BJP को मिली जीत के कारण अब बंगाल को जीतना पहले से अधिक आसान दिखाई दे रहा है और इसके कई कारण है।
पहला कारण तो बिहार विधानसभा चुनावों का परिणाम ही है जो पश्चिम बंगाल की जनता पर एक अलग प्रकार का मनोवैज्ञानिक असर डालेगा जिससे फ़ैसला BJP के पक्ष में जाने वाला है। बिहार विधानसभा चुनावों में BJP के परचम लहराने के बाद जनता को संदेश गया है कि BJP विकास की राजनीति करती है और यही कारण है कि उसे जीत मिली है।
वहीं, दूसरा कारण ये है कि TMC अपने बागी नेताओं की बढ़ती संख्या से परेशान दिखाई दे रही है। कुछ दिनों पहले ही अमित शाह ने पश्चिम बंगाल का दौरा किया था और उसके कुछ दिनों बाद ही TMC में ममता के बाद सबसे कद्दावर नेता और परिवहन, जल और सिंचाई मंत्री शुभेंदु अधिकारी भी TMC छोड़ BJP में जाने का मन बना रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार TMC की कैबिनेट बैठक में वे और उनके साथ तीन अन्य मंत्री राजीव बनर्जी, गौतम देब और रवींद्र घोष भी बैठक में नहीं पहुंचे थे। इसे अमित शाह का ही असर कह सकते हैं कि ऐसे कद्द्ववर नेता भी ममता के खिलाफ हो गए हैं।
बिहार विधान सभा चुनावों में BJP के परचम लहराने के बाद न सिर्फ जनता को संदेश गया है, बल्कि पश्चिम बंगाल के जमीनी नेताओं को भी यह संदेश गया है कि इस बार BJP मजबूती के साथ पश्चिम बंगाल के चुनावों में उतरेगी और उसे ममता के खिलाफ एक जबरदस्त समर्थन मिलने वाला है। ऐसे में कोई भी जीत के घोड़े पर ही अपनी बाजी लगाना चाहेगा।
यही नहीं तीसरा कारण ममता बनर्जी के 10 वर्षों के शासन के खिलाफ विरोधी लहर भी है। जिस तरह से अपने कार्यकाल में TMC के गुंडों ने राजनीतिक हत्याएँ कर्रवाई है उससे जनता पूरी तरह से भड़की हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से अभी तक BJP के 120 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी है और इन हत्याओं के आरोप TMC पर ही लगते रहे हैं। वहीं, पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में NIA ने अलकायदा के आतंकियो को भी पकड़ा है।
और चौथा कारण कोई और नहीं बल्कि, असदुद्दीन ओवैसी की पश्चिम बंगाल में एंट्री है। जिस तरह से असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने बिहार विधानसभा चुनावों में 5 सीटों पर जीत दर्ज कर मुस्लिमों को एक राजनीतिक विकल्प देने की कोशिश की है, वो तुष्टीकरण की राजनीति कर मुसलमानों का वोट जीतने में सफल रही है जो ममता के लिए खतरे की घंटी है। ओवैसी सेक्युलर दलों के लिए गले की हड्डी बन गए हैं। पश्चिम बंगाल में लगभग 30 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समुदाय के हैं जो ममता बनर्जी तथा कांग्रेस के प्रमुख वोट बैंक हैं। अब ओवैसी के आने से यह वोट बैंक भी बिखरना तय दिखाई दे रहा है।
यानि देखा जाए तो BJP के लिए बिहार विधानसभा चुनावों में जीत ने पश्चिम बंगाल को फतह करने के उसके रास्ते को और आसान बना दिया है। अब यह देखना है कि वह कितने मार्जिन से जीतती है।