कोरोना के बाद जिस तरह से चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आर्थिक युद्ध शुरू किया था तब उसका एक ही मकसद था कि अन्य देशों के सामने एक उदाहरण पेश करना। चीन चाहता था कि चीन का विरोध करने वाले बाकी देश देखे कि चीन का विरोध करना कितना भारी पड़ता है। परंतु इसी कोशिश में अब वह स्वयं अन्य देशो के सामने उदाहरण बन चुका है। चीन के आर्थिक हमलों के बाद भी ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पटरी पर मजबूती के साथ लौट रही है। अब ऑस्ट्रेलिया ने चीन के सामने घुटने टेकने वाले अन्य देशों को यह उदाहरण पेश किया है कि चीन के शिकंजे से बाहर निकला जा सकता है, वह भी अपनी अर्थव्यवस्था को बर्बाद हुए बिना।
जारी आंकड़ों के अनुसार ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था ने तीसरी तिमाही में 3.3 प्रतिशत की तिमाही-दर-तिमाही की वापसी की, जो एक बहुत ही अलग तस्वीर पेश करती है। यानि सितंबर की तिमाही में अर्थव्यवस्था में 3.3 प्रतिशत का विस्तार हुआ जो कि 44 वर्षों में तीन महीने की सबसे मजबूत वृद्धि है।
सभी प्रतिबंधों के बाद भी, ऑस्ट्रेलियाई ट्रेड आंकड़ों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया को कोई खास क्षति नहीं दिखाई दे रही है। जिन आयातों पर चीन ने जानबूझकर प्रतिबंध लगाया था या इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाई थी अब उन आयातों को भारत में ग्राहक मिल रहे हैं, जिससे चीन के सामने पछताने के सिवा कोई उपाए नहीं है।
पिछले कुछ-एक दशक में जिस तरह से चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है और लगभग सभी देशों के व्यापार को अपने ऊपर आश्रित किया है उसके बाद से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को छोड़ कोई भी चीन के सामने खड़े होने की या विरोध करने साहस नहीं दिखाता था। परंतु कोरोना ने ऑस्ट्रेलिया को यह साहस दिया और चीन से ट्रेड डेफ़िसिट होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया ने चीन के खिलाफ जांच की मांग को प्रखर हो कर उठाया।
ऑस्ट्रेलिया ने ही सबसे पहले कोरोना वायरस की उत्पति की स्वतंत्र जांच की मांग की थी जिससे चीन काफी बुरी तरह बौखला गया था और ऑस्ट्रेलिया को खुलेआम धमकी देने लगा था। चीन ने ऑस्ट्रेलिया को धमकी दी थी कि यदि उसने चीन विरोधी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रखा तो फिर चीन उसका आर्थिक बहिष्कार भी कर सकता है। चीन ने न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया को धमकी दी, बल्कि डिप्लोमेटिक दबाव बनाने की भी कोशिश की जिससे उसका मनोबल टूट जाए।
चीन का इस तरह से खुलकर विरोध करना ऑस्ट्रेलिया के लिए आर्थिक दृष्टि से बेहद घातक साबित होगा, यह ऑस्ट्रेलिया भी जानता था क्योंकि चीन के साथ उसका ट्रेड सरप्लस है। चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है जो कि उसकी अर्थव्यवस्था में 194.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का आयात और निर्यात करता है। किसी भी स्थिति में नुकसान ऑस्ट्रेलिया को ही उठाना पड़ता। परंतु उसने अपना नुकसान नहीं बल्कि मानवता को चुना।
चीन ने ऑस्ट्रेलिया को चुप करने के लिए उसके खिलाफ एक्शन लेते हुए कई सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। चीन ने सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया से आने वाले बीफ़ पर प्रतिबंध लगाया जिससे बीफ़ निर्यात का लगभग 35% प्रभावित होने की संभावना थी। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया के barley के आयात पर भी चीन ने 80 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी लगा दी थी। यही नहीं ऑस्ट्रेलिया से आने वाले वाइन पर 200 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी। परंतु ऐसे समय में भारत ऑस्ट्रेलिया के किसानों के लिए मददगार के रूप में सामने आया जल्द ही 5 लाख टन जौ एक्सपोर्ट करने का फैसला किया था। इसके अलावा चीनी सरकारी विभागों ने ऑस्ट्रेलिया में जाने या अध्ययन करने के बारे में पहले ही चेतावनी जारी कर ऑस्ट्रेलिया के पर्यटन को प्रभावित करने की कोशिश की थी।
परंतु अब चीन की सभी कोशिशों पर पानी फिरता नजर आ रहा है और ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना तथा चीन के आर्थिक हमलों के बावजूद 3.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। इससे न सिर्फ अन्य देशों को चीन के सामने खड़े हो कर विरोध करने में बल मिलेगा, बल्कि वे चीन को उसी के अंदाज में जवाब भी दे सकेंगे। चाहे वो दक्षिण एशिया के देश हो या यूरोप के देश या फिर अफ्रीका के ही क्यों न हो। अब उनके सामने ऑस्ट्रेलिया के रूप में एक बेहतरीन उदाहरण है जो कोरोना और चीन दोनों के दोहरे मार से उबरा, बल्कि मजबूती से सकारात्मक वृद्धि दर्ज की। परंतु चीन के पंगा लेने के लिए अन्य देशों के एक होना होगा तभी सप्लाई चेन को चीन के नियंत्रण से मुक्त किया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के को भारत और जापान ने खुलकर मदद की। एक तरफ भारत ने अपने उपभोक्ता बाजार को ऑस्ट्रेलिया के लिए खोला तो वहीं जापान ने निवेश कर मदद की।
इसी तरह एक दूसरे की मदद कर चीन के प्लान को ध्वस्त किया जा सकता है। आने वाले समय में अन्य देश अवश्य ही इस उदाहरण से सीख लेंगे और चीन के चंगुल से मुक्त होने के लिए एक होंगे।