एक बड़े खुलासे में पाकिस्तान और चीन द्वारा मिलकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर जासूसी गतिविधियों को अंजाम देने की बात सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय ने हाल ही में चीनी जासूसों के एक बड़े नेटवर्क का पता लगाया है, जो इस क्षेत्र की जियोपॉलिटिकल गतिशीलता को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था। अफगानिस्तान की NDS ने 10 दिसंबर को चीनी जासूसों के इस नेटवर्क के बारे में पता लगाया था। इसी दौरान एक चीनी खुफिया ऑपरेटर Li Yangyang को गिरफ्तार किया था जो इस साल जुलाई से देश में जासूसी कर रहा था। Yangyang को उनके काबुल निवास से गिरफ्तार किया गया था। एनडीएस ने उसके निवास से केटामाइन पाउडर सहित हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक भी बरामद किए।
अफगान एनडीएस ने काबुल में उसी दिन एक अन्य चीनी जासूस Sha Hung को भी गिरफ्तार किया था। तलाशी अभियान के दौरान, Hungके निवास से विस्फोटक और अन्य अत्यधिक आपत्तिजनक सामग्री बरामद की गई।
इसके अलावा, एनडीएस द्वारा एक थाई नागरिक के साथ सात और चीनी जासूसों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार किए गए सभी लोग अफगानिस्तान में चीनी जासूस के रूप में काम कर रहे थे।
अफगान सुरक्षा बलों और इस मामले से जुड़े लोगों ने खुलासा किया है कि ली यांगयांग और शा हंग जासूसी नेटवर्क के किंगपिन थे और ये दोनों हक्कानी नेटवर्क (HQN) के कमांडरों से मिलते रहे थे। यानि इस नेटवर्क में सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि पाकिस्तान भी था। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तानी एजेंसी ISI हक्कानी नेटवर्क और चीनी खुफिया एजेंटों के बीच मध्यस्थ के रूप में काम कर रही थी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन पाकिस्तान की ISI और उनके द्वारा समर्थित आतंकी संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है। HQN के साथ काम करने के अलावा, चीन अमेरिकी प्रभाव से निपटने के लिए पाकिस्तान के माध्यम से तालिबान का वित्तपोषण भी कर रहा है। ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार आरोप है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके जासूस पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ “अफगान शांति वार्ता पर प्रभाव जमाने और खुद का वर्चस्व स्थापित करने तथा तालिबान और अल-कायदा के माध्यम से अफगानिस्तान को प्रभावित करने के लिए सहयोग कर रहे हैं।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी जासूस तालिबानी कमांडरों से मिलने के लिए जाते रहे हैं। यानि चीन और पाकिस्तान की पूरी योजना किसी भी तरह से जियोपॉलिटिक्स पर अपने प्रभाव को बढ़ाने की है जिससे उनकी कम होती प्रासंगिकता की समस्या को सुलझाया जा सके।
बता दें कि चीन अपने शोधकर्ताओं और छात्रों के माध्यम से बड़ी संख्या में अमेरिका, भारत, जापान समेत पूरी दुनिया में अपने लिए जासूसी कराता हैं और वहाँ के नीतिनिर्धारकों को प्रभावित करता है। इसी के चलते अब अमेरिका और भारत ने चीन के शोधकर्ताओं औऱ छात्रों को लेकर अपने वीजा नियमों को और अधिक सख्त कर दिया है जिससे ये लोग देश में प्रवेश ही न कर सकें। ऑस्ट्रेलिया में सीसीपी के लोग टैलेंट औऱ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने के नाम पर ऑस्ट्रेलिया के हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं। यही लोग सीसीपी और पीएलए के लिए जासूसी भी करते हैं। चीन भी यहां के विश्वविद्यालयों के माध्यम से क्षेत्र को प्रभावित करने में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
हाल ही में यह रिपोर्ट भी सामने आई थी कि चीन ने UK, अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों के संस्थानों, विश्वविद्यालयों, कंपनियों और सरकारी दफ्तरों में करीब 20 लाख CCP कार्यकर्ताओं को तैनात किया हुआ है, जो पार्टी के कहने पर किसी भी प्रकार की जासूसी गतिविधि को अंजाम देने की क्षमता रखते हैं।
अफगानिस्तान में इस तरह से चीनी जासूसों के नेटवर्क का भंडाफोड़ के बाद अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि चीन किसी को भी नहीं छोड़ने वाला है चाहे वो कितना ही छोटा या बड़ा देश क्यों न हो। हालांकि कोरोना के बाद लगभग सभी देश अब धीरे-धीरे सतर्क हो चुके हैं और कई चीनी जासूसों के पकड़े जाने की खबर आई है। रूस से ले कर ऑस्ट्रेलिया और अब अफगानिस्तान तक। यानि देखा जाए तो अब चीन की पोल खुलती जा रही है और चीनी जासूसों का भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है।